सम्मानित हुए पत्रकार ने पत्रकार सम्मान निधि का उठाया मुद्दा

लखनऊ मे आयोजित एक कार्यक्रम मे पहाड़ी चित्रकूट निवासी हिन्दी पत्रकार अखिलेश दीक्षित को भागीरथ सम्मान से सम्मानित किया गया , यह कार्यक्रम भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार संघ की ओर से राष्ट्रीय स्तर का आयोजन था। जिसमे हिन्दी पत्रकारिता के जरूरी मुद्दों पर विमर्श हुआ।

कार्यक्रम मे शिरकत करने पहुंचे पत्रकार अखिलेश दीक्षित ने बताया कि पत्रकारों के मुद्दे पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को अवगत कराए गए हैं। उनका कहना है कि पत्रकारों को टोल फीस नही लगनी चाहिए यह एक जरूरी मुद्दा लगता है ताकि पत्रकार कम खर्चे मे ज्यादा घूम फिर सके।

इस संबंध मे एक विश्लेषक कहते हैं कि अगर याद हो तो रोडवेज बस मे पत्रकार के लिए एक सीट रिजर्व रखी जाती थी। अब वो सीट रिजर्व रहती है या नही लेकिन तब पत्रकार रोडवेज बस मे चलते रहे होंगे किन्तु अब बस मे पत्रकार चलते नही तो शायद वो सीट भी ना रहती हो फिर भी पत्नकारों को सुविधाएं मिलनी चाहिए लेकिन यह एक जटिल प्रक्रिया है कि आखिर सरकार किसे पत्रकार माने और किसे ना माने ?

विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 19 ( A ) कहता है कि भारत का हर नागरिक आवाज उठाने एवं मुद्दों पर लिखने व सवाल करने का अधिकार रखता है तो उस अनुसार भारत मे अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा होती है , अब पत्रकारों के अनेक खेमे हैं जैसे कोई मान्यता प्राप्त पत्रकार लिखता है और बहुत से पत्रकार शासन द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार बनने के लिए तमाम नियम कानून का पालन करते हैं और इस सम्मान को प्राप्त भी कर लेते हैं तो अगर शासन कोई सुविधा दे तो किसे दे ? मान्यता प्राप्त को या गैर मान्यता प्राप्त को ? अथवा उन्हें दे जो अनुच्छेद 19 ( A ) के तहत सवाल करते हैं इसलिए पत्रकारों की यह लड़ाई आधी अधूरी रह जाती है और अगर इन मांग के अनुसार एक बार लकीर खिंच गई तो सच मानिए अंदेशा यह भी है कि चीन जैसे सरकार की मीडिया बस भारत मे रह जाएगी !

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परंतु महत्वपूर्ण यह है कि भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ ने पत्रकार सम्मान निधि की मांग उठाई तो यह मांग शायद किसान सम्मान निधि की तरह है और पत्रकार तो वैसे भी मजदूर से कम नही होता है। नेशनल टेलीविजन की पत्रकारिता करने वाले वर्ग के अतिरिक्त जनपद और ग्रामीण स्तर पर जर्नलिस्ट एक ऐसी लेवर है जिसको मनरेगा जैसी मजदूरी भी नही मिल पाती है इसलिए पत्रकार महासंघ का यह मंथन सबको पसंद आना चाहिए कि सम्मान निधि की व्यवस्था हो लेकिन यह भी बहुत जटिल प्रक्रिया है कि एक पत्रकार की सम्मान निधि कितनी हो सकती है ?

चूंकि पत्रकारिता के क्षेत्र मे हर पत्रकार का सम्मान भी अलग-अगल है। सम्मान के प्रकार अलग-अगल हैं। कोई कितने सम्मान मे संतुष्ट हो जाता है यह सरकार के लिए शोध का विषय होगा जिसे भारत सरकार कोई कमेटी बनाकर करवा सकती है जैसे मुसलमानों के लिए सच्चर कमेटी बनी थी वैसे ही पत्रकारों के हालात जानने के लिए सरकार को विशेषज्ञों की टीम बनाकर उनके घर कच्चे हैं कि पक्के हैं और आय का स्रोत क्या है ? विज्ञापन मिलने मे कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और किसी प्रकार की योजनाएं बनाकर समृद्ध पत्रकार तैयार किए जाएं।

वास्तव मे यह बड़ी चिंता का विषय है जिस पर भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ ने चिंतन किया है और पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को अवगत कराया। पत्रकार अखिलेश दीक्षित को भागीरथी सम्मान मिलने से उनके तमाम साथी पत्रकारों मे खुशी की लहर है जैसे भागीरथ मां गंगा को धरती पर लाए थे वैसे पत्रकारिता के क्षेत्र मे अखिलेश दीक्षित ने काम किया है जिससे संगठन के शीर्ष नेतृत्व ने भागीरथ सम्मान से नवाजने का काम किया कि पुनः इस ऊर्जा से काम करेंगे जिससे जनहित की पत्रकारिता की झलक मिलेगी।

कुलमिलाकर कुछ तो ऐसा होना चाहिए कि पत्रकार आर्थिक रूप से समृद्घ हो और सशक्त हो लेकिन यह काम सरकार करे या समाज करेगा चूंकि जिस समाज के पास अपना समृद्ध सशक्त पत्रकार ना हो वह लूला लंगड़ा समाज होता है।