एक किसान के बेटे का लोकसभा तक का सफरनामा , जानिए सांसद आरके सिंह पटेल की पाॅलिटिकल बायोग्राफी

A plotical biography sansad R. K. Singh patel ( banda loksabha 48 )

नब्बे के दशक से राजनीति के क्षेत्र मे उतरा हुआ एक व्यक्ति इक्कीसवीं सदी में एक बिग पॉलिटिकल फेस है , जिनका नाम है आर के सिंह पटेल।

खेती किसानी वाले परिवार की पृष्ठभूमि मे जन्में आरके सिंह पटेल किसान नेता / जन नेता के रूप मे जाने जाते हैं जिनका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है जो राजनीति मे अपना करियर बनाना चाहते हैं।

एक ऐसे ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का संपूर्ण परिचय एवं राजनीतिक यात्रा का वह विवरण जिसे जानकर हैरान हो जाएंगे कि एक राजनेता की यात्रा कैसी होती है ? जो जनसेवा के लिए सत्ता के माध्यम से गरीब , मध्यमवर्गीय और दलित – आदिवासी व पिछड़े समाज के उत्थान तथा उच्च वर्ग के सम्मान को साधते हुए राजनीति कर समाजसेवा का संकल्प पूरा करते हैं।

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■ जीवन का पहला चुनाव और महत्वपूर्ण निर्णय :

एडीसी डिग्री कालेज इलाहाबाद ( प्रयागराज ) मे स्नातक की पढ़ाई के दौरान आरके सिंह पटेल मंत्री पद का चुनाव लड़ते हैं लेकिन परंपरा के अनुसार छात्र नेताओं ने हुडदंग की ओर मतपेटी गायब कर दी गईं तो वह चुनाव रद्द कर दिया गया।

कालेज मे पुनः चुनाव शुरू हुआ लेकिन इन्होंने अपने साथी को चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया जो चुनाव जीते भी और मंत्री बनने से लेकर वह कालेज के अध्यक्ष भी बने। उस समय के आरके सिंह पटेल का यह निर्णय बताता है कि साथी का साथ देने वाला व्यक्तित्व शुरूआत से हैं और खुद बनने से ज्यादा दूसरों को बनाने के बारे मे सोचते रहे यही कारण है कि अब तक की राजनीति मे इनके व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलू सबसे ज्यादा चर्चित रहते हैं।

■ किसानी का कार्य किए : स्नातक की पढ़ाई के बाद घर लौटकर दो से तीन साल तक किसानी का कार्य किए। तीन वर्षों में एजुकेशन मे स्नातक की डिग्री मान्य हो जाती है इस दृष्टि से आरके सिंह पटेल को किसानी में स्नातक भी कहा जाता है। थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल नॉलेज होना महत्वपूर्ण होता तो इनको किसानी का प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस है और इसी अनुभव के बदौलत अक्सर अपने भाषणों में खेती की बातें कर किसानों से डायरेक्ट कनेक्ट हो जाते हैं। जैसे मिलेट्स पर सरकार ने काम शुरू किया तो इन्होंनो सांवा , कोदो और बाजरा जैसे मिलेट्स की इस तरह बात रखी कि किसानों ने मोटे अनाज की खेती करने पर पुनर्विचार शुरू किया।

■ कालीन का व्यापार कर हुनरमंद बनाने का काम किए : कहते हैं पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं जिन्होंने सोचा नही रहा होगा कि एक दिन मुझे राजनीति में इंद्रधनुष जैसे रंग बिखेरने होंगे वे आरके सिंह पटेल किसानी का कार्य करने के बाद व्यापार की दुनिया मे कदम रखने को सोचते हैं तो कालीन का व्यापार करने लगते हैं। अपनी भूमि से लगाव होने के कारण बांदा जनपद से एक्सपोर्ट / इंपोर्ट का काम करने लगे।

सबसे पहले खुद हुनरमंद बने। रंगीन कालीन कैसे बनानी है और ब्लैक एंड व्हाइट कालीन कैसे आकर्षक होगी इस कला में पारंगत हो चुके आरके सिंह पटेल ने बांदा और धर्म नगरी चित्रकूट को व्यापार की नगरी भी बनाने की सोच लेकर ” शिव कार्पोरेट ” नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई और वोकल फाॅर लोकल उस समय ही जमीन पर साकार कर दिया था।

उस समय बांदा जनपद के सैकड़ो गांवो के बेरोजगारों को कालीन के रोजगार से जोड़ने का काम किया और कर्वी तहसील के तरौंहा , सोनेपुर , डिलौरा , सीतापुर , कर्वी माफी , कसहाई रोड सहित दर्जनों गांवो में कालीन का काम बहुत से युवा करने लगे थे। इनकी इस पहल से लोकल मे बनी कालीन बाहर भेजी जाने लगी।

स्किल डेवलपमेंट का यह शानदार कार्यक्रम था जो एक व्यवसाय था लेकिन युवा व्यापारी धन कमा रहा था और हुनरमंद बन रहा था। गुणवत्तायुक्त कार्य देखकर कालीन निर्माता संवर्धन बोर्ड द्वारा 1998 – 99 मे शिव कार्पोरेट को सर्वश्रेष्ठ कालीन निर्माता का प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया तथा बोर्ड द्वारा एक मारुति वैन भी भेट की दी गई थी। महज 50,000 ₹ का लोन लेकर व्यवसाय शुरू करने वाले तब के आरके सिंह पटेल को प्रशस्ति पत्र दिया गया , लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था तो वह अब एक राजनेता हैं।

■ राजनीति मे कदम : 1993 में ददुआ एवं दादुओं के खिलाफ बसपा से विधानसभा का चुनाव लड़ा तब कम्युनिस्ट पार्टी के कद्दावर नेताओं की राजनीति को समाप्त कर के मात्र 165 वोट से हार का सामना किया। पहली बार चुनाव लड़े लेकिन इसकी वजह बड़ी गहरी थी , युवा उम्र में मंतव्य स्पष्ट था कि जनसेवा करनी है भाव प्रबल था साथियों के उत्थान के लिए काम करना है लेकिन मौजूदा राजनीतिक हालात मे उन्हें हार नसीब हुई। उस समय दादू और दंबगों के बीच एक लड़का चुनाव लड़ रहा था , यही कहा जा रहा था कि बहुत अच्छा लड़का है जो हार के बावजूद हीरो बनकर उभरा था।

वर्ष 1993 मे इनके विरोधियों द्वारा एक नारा दिया गया

” राजनीति खेलवाड़ नही है , कालीन का व्यापार नही है। “

इस नारे को चुनौती मानकर यह कसम खाई थी कि आज से कालीन का कारोबार बंद कर दूंगा अब जनता की सेवा अंतिम दम तक करूंगा।

समय सेकंड की सूई की तरह आगे बढ़ता है तो सन 1996 आ जाता है और इस वर्ष आप पहली बार बसपा से विधायक बनते हैं। इसी वर्ष समाज कल्याण निर्माण निगम के चेयरमैन बनाए जाते हैं जिस पद को राज्य मंत्री का दर्जा था। तो इस वर्ष ही राज्य मंत्री बनने का अवसर प्राप्त हो गया।

जिसके बाद का दिलचस्प राजनीतिक सफर है कि कहीं टिकट काट दिया गया तो दूसरे दल ने बुलाकर टिकट दिया चूंकि दलों को यह अहसास हो गया था कि जनपद चित्रकूट में एक लोकप्रिय नेता अगर कोई है तो वह आरके सिंह पटेल हैं इसलिए चुनाव हमेशा संघर्षशील व दिलचस्प रहे।

इसके बाद 2002 मे विधायक बनने के साथ ही कैबिनेट मंत्री बने और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग मिला। बाद में बसपा सुप्रीमो मायावती के निर्देश पर 2004 मे ही प्रयागराज से लोकसभा का पहला चुनाव लड़ना पड़ा जहां हार तय थी।

सन् 2007 चित्रकूट जनपद की राजनीति का सबसे ज्यादा तनातनी वाला वर्ष था। राजनीति का माहौल एकदम गर्म था। बसपा ने इनका टिकट काटा तो सपा ने टिकट थमा दिया और फिर जो जुलूस जो काफिला निकला उसके बाद तो चुनाव कांटे का हो गया जिसमें बसपा के प्रत्याशी से सिर्फ 1100 वोट से हारे लेकिन जनसेवा के मैदान मे डटे रहे तो सपा ने 2009 मे सांसद का टिकट दे दिया और पहली बार लोकसभा सदस्य बनकर चित्रकूट से दिल्ली तक का राजनीतिक सफर तय हुआ।

इतनी दिलचस्प चुनावी राजनीतिक यात्रा मे 2014 का वह समय भी आया जब देश मे परिवर्तन की लहर चल रही थी , तब इन्होंने बसपा से सांसद का चुनाव लड़ा तो परिणाम हार का ही प्राप्त हुआ। इस चुनाव मे हार के बावजूद भी लोकप्रियता का स्तर बढ़ा हुआ नजर आया तो भाजपा के बड़े नेताओं के संपर्क मे आ गए।

सन् 2017 मे भाजपा की सदस्यता ली और मऊ मानिकपुर विधानसभा जनपद चित्रकूट से भाजपा के टिकट पर विधायक का चुनाव लड़े तो बसपा के कैबिनेट मंत्री दद्दू प्रसाद और बसपा के ही निवर्तमान विधायक चंद्रभान सिंह को 50 % से ज्यादा 52 % मत प्राप्त कर चुनाव हराया तो यहां दलीय राजनीति और नेतृत्व की व्यक्तिगत लोकप्रियता का समावेश राजनीतिक पंडितों को नजर आया।

एक बार फिर चुनावी चक्र चला तो भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया और जीतने के बाद मऊ मानिकपुर विधायक पद की सीट खाली हुई तो वहां उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव मे पार्टी प्रत्याशी को विजयी बनाने के लिए अनवरत डटे रहे।

तो बुन्देलखण्ड और उत्तर प्रदेश की धर्म नगरी चित्रकूट के राजनीति में चर्चित व्यक्तित्व वर्तमान सांसद आरके सिंह पटेल कि चुनावी यात्रा और राजनीतिक कार्यों का यह विवरण रोचक है और समय की पहचान कर समय के साथ चलने की सीख देने वाला है।

जिनके भाषणों से उद्धृत कुछ ऐसे अंश भी पढ़िए जो युवाओं और किसानों सहित व्यापार मे रूचि रखने वाले लोगों के लिए लाभदायक सिद्ध होंगे …….

■ सबसे बड़ी बात कि ग्राउंड हो मजबूत :

एक साक्षात्कार और भाषण मे सांसद आरके सिंह पटेल कहते हुए नजर आते हैं कि राजनीति करना अच्छी बात है जो जनसेवा और देश सेवा का सबसे उपयुक्त माध्यम है।

सवाल यह था कि यूथ पालिटिक्स की ओर खूब आकर्षित हो रहा है , आप उनके लिए क्या कहेंगे तो उनका जो जवाब यह था कि बहुत अच्छी बात है जिनके पास साधन – संसाधन हैं उन्हें राजनीति के माध्यम से जनसेवा करनी चाहिए और जो युवा राजनीति मे आना चाहते हैं उनके लिए मुझे अपना शुरूआती दौर याद आता है जब मैं कालीन का व्यापार करता था।

भदोही के दिन याद आते हैं और चित्रकूट मे भी मैंने कालीन का व्यापार शुरू किया था। एक अच्छा व्यापार करने के बाद मैंने इस क्षेत्र मे कदम रखा था तो उस वक्त आर्थिक रूप से मजबूत हो चुका था और मित्रों का साथ था , दोस्त बहुत काम आते हैं मैं आज जो कुछ भी हूं अपने साथ देने वाले साथियों की वजह से हूं तो राजनीति मे लोक व्यवहार , रिश्तेदारी – नातेदारी और साथियों का साथ सफलता मे सबसे ज्यादा प्रभावी साबित होते हैं इसलिए युवाओं को राजनीति करने के लिए इन बारीक जानकारियों को अवश्य अपनाना चाहिए जिसे हमे हमारे देश और समाज को अच्छे नेता मिलेंगे चूंकि यूथ ही राष्ट्र का भविष्य है।

■ जैविक खेती और मोटा अनाज किसानों की बात :

अस्सी – नब्बे के दशक तक भारत देश व उत्तर प्रदेश के किसान पारंपरिक खेती करने के लिए जाने जाते थे। मोटे अनाज का उत्पादन और खान – पान मे ज्यादा महत्व था , जिससे स्वास्थ्य की दृष्टि से भी किसान और युवा समृद्घ थे। लेकिन नब्बे के दशक के अंत तक रसायनिक खेती का दौर आया और अधिक पैदावार लेने के चलते इक्कीसवीं सदी तक इसके नुकसान समझ मे आने लगे।

अब भारत सरकार मोटे अनाज के उत्पादन और जैविक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन राशि दे रही है तो अनेक कार्यक्रम मे देशी अंदाज मे सांसद आरके सिंह पटेल बोलते हुए नजर आए जिसमे उनका एक वाक्य खूब वायरल हुआ जो देहात की कहावत है…..

” राम की चिरइया राम का खेत अउ खाओ चिरइया भर भर पेट। “

संदेश साफ है कि किसान फसल उजड़ जाने के डर से मोटे अनाज का उत्पादन बंद कर दिए लेकिन सांसद बांदा ने कहा कि पहले की तरह सामूहिक रूप से मोटे अनाज का उत्पादन होगा तो चिरइया चाहे जितना खाए किसान की फसल उजाड़ नही पाएंगी। ऐसा बोलकर जैविक खेती करने एवं मोटे अनाज के उत्पादन हेतु किसानों को जागरूक करते हैं।

अपने खास अंदाज के लिए प्रसिद्ध बांदा सांसद आरके सिंह पटेल भाषण से लेकर सामान्य बातचीत तक हर वर्ग के लोगों से मधुर रिश्ता स्थापित करना जानते हैं जो नेतृत्व की विशेष कला के अंतर्गत आता है……..

” सांसद आरके सिंह पटेल एक बात जरूर कहते हैं कि राजनीति मे अवसरवादिता नही बल्कि अस्तित्व की लड़ाई होती है मैंने कालीन का कारोबार बंद कर कसम खाई थी कि सक्रिय राजनीति कर जनसेवा का लक्ष्य पूरा करूंगा और आज उस लक्ष्य को पूरा कर रहा हूं। ”

( इस बायोग्राफी के समस्त अधिकार लेखक / पत्रकार saurabh dwivedi के पास सुरक्षित हैं , काॅपी करना दण्डनीय अपराध है )