शौर्य की अमर कहानी: शहीद प्रभुनाथ पाण्डेय की मूर्ति का जीर्णोद्धार और अनावरण

कार्यक्रम में शहीद पाण्डेय के परिजनों की उपस्थिति ने माहौल को और भावुक कर दिया। उनकी बेटी विशाखा, जो मूर्ति पर माल्यार्पण के दौरान अपने आंसू रोक नहीं सकीं, अपने पिता की याद में पूरी तरह गमगीन नजर आईं। उनके साथ उनके पति अशोक दुबे भी मौजूद रहे।

पहाड़ी / चित्रकूट : जनपद चित्रकूट के थाना पहाड़ी मे शहीद थानाध्यक्ष की मूर्ति जीर्णोद्धार का कार्यक्रम गुरूवार को संपन्न हुआ।

शहीद थानाध्यक्ष प्रभुनाथ पाण्डेय की स्मृति को नमन करते हुए उनकी मूर्ति का जीर्णोद्धार और अनावरण एक गरिमामय कार्यक्रम में किया गया। इस अवसर पर पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार सिंह ने मूर्ति का अनावरण किया।

प्रभुनाथ पाण्डेय ने अपने कर्तव्य और साहस की मिसाल पेश करते हुए 28 फरवरी 1985 को तत्कालीन जनपद बांदा (अब चित्रकूट) के ओरा गांव में बदमाशों से मुठभेड़ में वीरगति प्राप्त की थी। उनके शौर्य और बलिदान को याद करते हुए आयोजित इस कार्यक्रम में भावनाओं का सैलाब देखने को मिला।

कार्यक्रम में शहीद पाण्डेय के परिजनों की उपस्थिति ने माहौल को और भावुक कर दिया। उनकी बेटी विशाखा, जो मूर्ति पर माल्यार्पण के दौरान अपने आंसू रोक नहीं सकीं, अपने पिता की याद में पूरी तरह गमगीन नजर आईं। उनके साथ उनके पति अशोक दुबे भी मौजूद रहे।

थाना पहाड़ी की प्रभारी निरीक्षक रीता सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी का आभार व्यक्त किया। इस दौरान शहीद प्रभुनाथ पाण्डेय के साहस और कर्तव्यनिष्ठा का विस्तार से वर्णन किया गया। उनके संपूर्ण जीवन का परिचय सुनकर वहां उपस्थित हर व्यक्ति के मन में गर्व और श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ा।

कार्यक्रम में पुलिस उपाधीक्षक चक्रपाणि त्रिपाठी, क्षेत्राधिकारी चित्रकूट समेत पुलिस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे। सभी ने मिलकर शहीद पाण्डेय को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके अदम्य साहस को सलाम किया।

शहीद थानाध्यक्ष प्रभुनाथ पाण्डेय का जीवन देश सेवा और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। ऐसे आयोजन न केवल शहीदों के बलिदान को अमर बनाए रखने में सहायक होते हैं, बल्कि समाज को उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने का संदेश भी देते हैं। शहीद पाण्डेय की मूर्ति का जीर्णोद्धार और उनकी स्मृति में आयोजित यह कार्यक्रम पुलिस बल और समाज के बीच मजबूत संबंधों को स्थापित करने का प्रतीक है।

यह कार्यक्रम न केवल शहीद के परिजनों के लिए सम्मान और सांत्वना का स्रोत है, बल्कि यह संदेश देता है कि समाज और प्रशासन अपने नायकों को कभी नहीं भूलता।