शिव समस्त रसों का केन्द्र बिन्दु हैं : शिवेन्द्र सिंह
प्रसन्न हुवे तो भोलेनाथ और नाराज हुवे तो भैरवनाथ
शान्त हैं तो सोम अवतार
उग्र हुवे तो रुद्र अवतार
ऐसे ही 1008 नामों से सुसज्जित हैं हमारे भगवान कहते है, पृथ्वी की सम्पूर्ण शक्ति इसी पंचाक्षर मंत्र में ही समाहित है।
त्रिदेवों में ब्रह्म देव सृष्टि के रचयिता है, तो श्री हरि पालनहार हैं, भगवान भोलेनाथ संहारक हैं। भोलेनाथ आशुतोष भी हैं, जल्द ही प्रसन्न हो जाते है। शिव का प्रेम भी अटल है, उनके साथ जब तक शक्ति अर्थात पार्वती है, तभी तक वो शिव कहलाते है, बिना शक्ति के शव के समान हो जाते है।
हिन्दू धर्म के सबसे बड़े देवता तथा चार युगों के राजसी भगवान शिव को कैलाश पर्वत का मालिक माना जाता है. इसलिए शिवजी को कैलाशपति कहते है.
मान्यता ऐसी की लोग कहते हैं काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का यानी शिव के भक्त का काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है –
भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में पूज्यनीय हैं भगवान विश्वनाथ और विश्व में ही नहीं अपितु मैं यदि कहूँ की समस्त ब्रम्हाण्ड में विराजमान है मेरे भगवान तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
नभ पर जाएं तो ओमकार की आवाज़ औऱ थल में जगह जगह बने शिवालय तो जल से प्राप्त होने वाली शिवलिंग प्रतिमाएँ, कंकर कंकर में शंकर की उपस्थिति पर मोहर लगातीं हैं |
पुरुषों में उत्तम , मर्यादा के प्रतीक, पुरुषोत्तम भगवान राम भी जिनके भक्त हैं औऱ जिनके लिये वह अपने भक्तों को भी स्पष्ट उपदेश देते हैं कि-
‘ शिव द्रोही मम दास कहावा
सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा ‘
अर्थात यदि मेरा कोई भक्त शिव का विरोधी होगा तो वह मुझे सपने में भी नहीं पा सकता है |
‘ कहते हैं जग में, सुन्दर हैं दो नाम
सिया राम, सिया राम, सिया राम ‘
औऱ यह सिया राम भी जिनका नाम लिये नहीं अघाते वह हैं मेरे देवादिदेव महादेव
जिनकी भक्ति से ही शक्ति और मुक्ति प्राप्त होती है।
देवादिदेव महादेव आप सभी का कल्याण करें |
ॐ नमा: पार्वती पतिये हर हर महादेव
( लेखक भाजयुमो उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय मंत्री हैं )