लघुकथा : बेटी ही कुल को रोशन करेगी.

By – Chhaya singh

” दीप जल उठे”
‘आज छठी होई नातिन की.. खाली धोती नाहीं …हम चिन्हारी लैबे मलकिन’ , सद्यःप्रसूता बहू की मालिश करते हुए रामरती इठलाई।
‘ लड़का होता तो जरूर चिन्हारी देते तुमको…लड़की में क्या खुसी मनाएं..’ काँता नें मुंह बिचकाया।
‘ जमाना बदल गा है मलकिन … अब तौ बिटिया भये मा भी सब कोऊ खुसी मनावत है।’
‘ ज्यादा बकबक मत कर , साधारण तरीके से बस छठी पूज लेंगे।’, कांता ने आँखें तरेरीं।
रामरती सिटपिटा गयी।
सीधी सरल रजनी की आँखें भर आयीं। उसने पास लेटी अपनी नवजात बच्ची के सिर पर हाथ फेरा।
‘ नहीं माँ, कुछ फंक्शन नहीं होना है…बस छठी पूजा है।बेटी देखकर मम्मीजी का मुंह फूला है।’, अपनी माँ से फ़ोन पर बात करते हुए रजनी का दिल भर आया था।
शाम को अचानक बैण्ड की आवाज़ अहाते में गूंज उठी।
‘ भाभी तुमको बहुत सारी बधाई और धन्यवाद … हमें प्यारी सी भतीजी देने के लिये। आज देखना …हम कैसे धूमधाम से अपनी राजकुमारी की छठी मनाते हैं।’ ।दोनों ननदें खिलखिलाते हुए कमरे में आ गयीं।
रजनी अपलक देख रही थी अपनी प्रसन्नवदन ननदों को जो कि सामने के टेबल पर बच्ची के कपड़े,जेवर,खिलौने,साड़ी ,पायल,फल ,मेवा और मिठाई आदि करीने से सजा रहीं थीं।
‘ इतना सब ……और बैण्ड बाजा…’ कांता चकरा गयीं।
‘ क्यों नहीं अम्माँ …तुमने हमेशा हम बहनों और भाई में भेदभाव किया ।हमारे पैदा होने पर खुशी नहीं मनायी पर भाई के पैदा होने पर बड़ा जलसा किया था। जैसी उपेक्षा हमारी हुई ,हम अपनी भतीजी की नहीं होने देंगे।अपनी गुड़िया को हम राजकुमारी की तरह पालेंगे।’ ,बच्ची को गोद में लेकर चूमती हुई बड़ी ननद ने कहा ।

‘ बिल्कुल ठीक कह रही हैं दीदी । मेरी बेटी पूरे लाड़ प्यार के साथ पलेगी और मैंने निश्चय किया है कि हम दूसरी संतान नहीं करेंगे। बेटी ही हमारे कुल को रोशन करेगी।’ ,अन्दर आते हुए अविजित ने कहा।
रजनी की आँसू भरी आँखों में खुशी के असंख्य दीप जल उठे।