आत्महत्या : शोक का विषय है अपरिपक्व उम्र में बच्चों का जीवन से पलायन.

By :- padma sharma

आगरा के पास सोमवार रात एक 13 वर्षीय बैडमिंटन खिलाड़ी सलोनी शर्मा ने आत्महत्या कर ली..! आत्महत्या, रोज़ाना की आम खबरों में से एक..! पर एक 13 वर्षीय बच्ची.? और आत्महत्या.?? बात भी इतनी सी कि लगातार कई टूर्नामेंट्स जीतने वाली बच्ची पिछले माह एक टूर्नामेंट में हार गई और किसी ने उसे कोई अप्रिय कमेंट दे दिया.! एक हार बच्ची बर्दाश्त नहीं कर पाई.? फिर क्या गारंटी है आगे जीवन में वो सदा सफ़ल ही रहती..यानी आत्महत्या उसे करनी ही थी।

ये कैसी मानसिकता पैदा हो रही है बच्चों में आज जो केवल जीत चाहती है? एक शब्द किसी का बर्दाश्त नहीं कर पाते..हार इन्हें स्वीकार नहीं.!
छोटी सी उम्र से ही दबाव और तनाव शब्द पहचानने लगते हैं.. जीने लगते हैं उन्हीं के साथ.! कितनी बार छोटे बच्चों के रियलिटी शोज़ में भी यही देखने को मिलता है..6–7 साल के बच्चे भी, यदि उन्हें अच्छे कमेंट न मिलें तो रोने लगते हैं क्योंकि सबको केवल जीतना है, टॉप पर रहना है।

कहीं न कहीं इसमें माता पिता भी दोषी हैं..वो भी बच्चों पर लगातार दबाव बना कर रखते हैं जीतने का.! रहम आता है उन बच्चों पर.. एक बेफ़िक्र रहने वाली उम्र में फ़िक्र को लादे घूमते हैं.!

कई बार ये भी देखा गया है ज़्यादा लाड़ प्यार और हर ज़िद पूरी करने की आदत भी बच्चों में केवल “हाँ” सुनने की आदत पैदा करती है “ना” तो वो सुनना ही नहीं चाहते..उन्हें बस अपनी हर इच्छा, हर ज़िद को पूरा करना ही है, और जब नहीं हो पाती तो कुछ अप्रिय कर बैठते हैं.!
सलोनी भी अपने काफ़ी बड़े परिवार में 16 भाइयों के बीच एक ही बहन थी, पूरा परिवार उसकी हर इच्छा को पूरा करने को सदा तत्पर रहता था.! ज़िंदगी की एक चुनौती को स्वीकार नहीं कर पाई और एक नासमझ उम्र में वो कर बैठी जो इस उम्र की सोच नहीं थी.! बड़े शोक का विषय है इस तरह एक अपरिपक्व उम्र में बच्चों का जीवन से पलायन..! ज़रा सी भी सहनशीलता नहीं बची.!

छोटी छोटी बातों को दिल से लगा लेना, घर से भाग जाना या आत्महत्या कर लेना ..ये इस उम्र की माँग तो नहीं है..!!

ज़रूरत है इस मनोभावना के पीछे छिपे कारणों का विश्लेषण करने की.. हार जीत दोनों जीवन का हिस्सा हैं, ये बात शुरू से बच्चों को समझाने की, उन पर किसी प्रकार का दबाव न बनाने की, अपेक्षाओं के तले उन्हें न रौंदने की..! बच्चे हैं उन्हें बच्चों की ही तरह बढ़ने देने की, उन्हें सुरक्षित महसूस कराने की, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने की मगर बिना किसी दबाव या तनाव के..!

समाज में परिवर्तन आते हैं.. परिवर्तन समय की माँग हैं.. पर ये कैसा परिवर्तन है जो हमारे बच्चों को निगल रहा है.?

सोचिए एक बार..!!