मानवीय जिज्ञासा का लाभ उठाते ज्योतिष.
By – Saurabh Dwivedi
हिन्दुस्तान अखबार के रोजनामचा में नजर पड़ी तो पढ़ा कि भगवान ने क्या लिखा है ? , यह जानने के लिए डाऊनलोड करें ! मैं हतप्रभ रह गया कि भगवान को जानने के लिए कहाँ कहाँ ताक झांक करते हैं , आसमान की तरफ देखते हैं तो अपने सीने के अंदर भी ईश्वर के अस्तित्व को महसूस करने की कोशिश करते हैं।
हाथ की हथेलियों में अपनी रेखाओं को पढ़ने में असमर्थ इंसान मृत्यु का वरण कर लेता है , पर अपनी किस्मत स्वयं नहीं पढ़ पाता। कोई भी मनुष्य अपना भविष्य नहीं जान पाता। यहाँ तक की जिंदगी में घटित हुई घटनाओं का तारतम्य भी नहीं बिठा पाते।
जिंदगी में कुछ रिश्ते बनते हैं और बनकर बिछड जाते हैं। वक्त मिलाता है और वक्त ही विदाई का गवाह होता है। वजहें तमाम सामाजिक – असमाजिक होती हैं पर वास्तव में पूर्व जन्म को मानने वाले , गहराई में उतरने वाले बन रहे रिश्तों की कुछ वजह तो समझ लेते हैं। किसी के हिस्से में दर्द की मात्रा ज्यादा हो जाती है और किसी के हिस्से में खुशी की मात्रा ज्यादा हो सकती है पर दर्द का अस्तित्व रहता है। चूंकि दर्द के बिना कोई रिश्ता नहीं बन सकता। माँ और संतान का रिश्ता भी दर्द से है।
इधर अखबार हो या टेलीविजन हो सब जगह भविष्य बताने वाले ज्योतिष विद्यमान हैं। यहाँ तक की हथेली से प्ले स्टोर में किस्मत कैद हो चुकी है। मानवीय जिज्ञासा की कमजोरी का लाभ उठाते ज्योतिषों की दुकान खूब चल पड़ी है। यदि मनुष्य चाह ले स्वयं अपने भविष्य और रिश्तों के रहस्य को सुलझा सकता है अथवा कम से कम रहस्य के करीब पहुंच सकता है। शर्त इतनी सी है कि जिंदगी का गोताखोर बनना होगा , सनद रहे कि गोताखोर के पास आक्सीजन होती है। सरल कुछ भी नहीं बल्कि कठिनाई का सामना कर सफर को सरल बनाना होता है।
अपवाद को छोड़कर मनुष्य का भविष्य कोई नहीं बता सकता और बताने वाले भी इत्तेफाकन आभास बताते हैं , जो घटना के आधार पर सिद्ध हो जाया करता है। स्वयं को जानने की यात्रा के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।