अफसरों की उदासीनता बेटी की शादी को चिंतित है पीड़ित गरीब.
गरीबी एक प्रोडक्ट की तरह हो गई है। यह राजनीति और नेताओं के साथ साथ पेशेवरों के पंजो का खिलौना बन चुकी है।
अब चित्रकूट के हन्ना निवासी प्रहलाद की व्यथा भी कुछ ऐसी है कि घर जलकर खाक हो गया और बेटी की शादी पहले ही तय हो चुकी थी। बेटी के हाथ पीले करने के चक्कर में बैंक से लेकर लेखपाल और अफसरों के चक्कर काट रहा है।
अपनी व्यथा कहते हुए इनकी आंखो में आसूं आ जाते हैं। जांचकर्ता अफसरों ने नुकसान तो लगभग 2 लाख 50 हजार का ठीक-ठाक दिखा दिया है। किन्तु मुआवजे की राशि पर गृहण सा लगा हुआ है। यह पता ही नहीं चल रहा कि मिलेगा या नहीं ? और मिलेगा तो कब तक ?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इनके वोट से बना हुआ प्रधान उदासीन हैं। आग लगने के तीन दिन बाद हालचाल लेने आए थे। उसके बाद से कागजी कार्रवाई ही पूरी हो रही है।
सबसे बड़ी चिंता बेटी की शादी की है। गेंदिया की शादी रगौली गांव के गेंदा ( काल्पनिक नाम) से तय कर चुके हैं। किन्तु अफसरशाही और गरीबी की मार से गेंदिया और गेंदा के फेरे हो सकेंगें ? यह गर्भ का विषय है।
इन्हें जिलाधिकारी से आशाएं हैं , परंतु अभी तक जिलाधिकारी से मिल नहीं सके और शायद किसी उचित माध्यम की तलाश में थे। आशाएं हैं कि जिलाधिकारी इस गरीब की गरीब आवाज को अवश्य सुनेंगे और गेदिया संग गेंदा के विवाह के साक्षी बनेंगे।
हमारे समाज में मानवता के दृष्टांत जीवन समर्पित करने वाले व्यक्तित्व भी तमाम हैं। एक गरीब और पीडि़त पिता को बेटी की शादी हेतु मदद की जरूरत तो है। यह मानवता के लिए भी बड़ा अवसर है कि गृहों की अंतर्दशा को धता बताकर गेंदिया की शादी भी धूमधाम से रचाई जा सके। गरीब पिता और गरीब बेटी के चेहरे की मुस्कान वाली अनुभूति ही मानवता का सूरजमुखी खिलाए रख सकती है।