रामलीला भवन का प्रकरण राजनीतिक काकटेल भी है.
By – Saurabh Dwivedi
राजनीति की बुराई प्रदर्शित होने लगी और इसलिए कहावत चरितार्थ है कि राजनीति बुरी चीज है। राजनीति है तो चुनाव होते हैं और चुनाव के बाद रंजिश भुनाई जाएगी , भले उससे संस्कृति और परंपरा पर ही हमला क्यों ना करना पड़े ! अतः राजनीति अब काकटेल हो चुकी है , जिससे समाज संक्रमित हो रहा है।
जनपद चित्रकूट की नगरपालिका कर्वी विवादों की पालिका बनती जा रही है। मामला मंदाकिनी नदी का हो या फिर रामलीला भवन का हो , यहाँ समूहगत दबंगई और धनबल का बोलबाला चलता है। वर्तमान में रामलीला भवन को लेकर ही लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व का जिन्न जाग गया है।
कुलमिलाकर रामलीला भवन जर्जर हालत में रहता और किसी दिन कोई घटना घटित होती , तो कोई भी सामने नहीं आता और उस घटना की जिम्मेदारी ले कानून के शिकंजे पर नहीं चढ़ता। परंतु रामलीला भवन की वर्तमान समिति ने चिंता करते हुए नवनिर्माण कराकर रामलीला आयोजन को भव्य बनाने की कोशिश क्या करने लगे कि उसके मालिक जाग चुके हैं।
अब रामलीला भवन पर दावा ठोक कर हस्तक्षेप शुरू हो चुका है और प्रथम कोशिश यह है कि निर्माण कार्य बंद होना चाहिए। ये वो लोग हैं , जो निर्माण कार्य कराने को जागरूक नहीं रहे। किन्तु जीर्णोद्धार में परेशानी खड़ी करने के लिए मालिकाना हक की बात हो रही है। इनका कहना है कि इनके बुजुर्गों का हक है।
इसके पहले विगत चार दशक से रामलीला के आयोजन एवं भवन के रख रखाव आदि से इनका कोई संबंध नहीं था। अब अचानक से भवन की चिंता करना और रामलीला कराने की गुफ्तगू होने का मतलब स्पष्ट है कि असल बात मुद्दे के पीछे की राजनीति और छुपे रूस्तम किसी चुनावी नेता की नीति है। जिनको कर्वी नगर के अंदर एकछत्र राज के गुलाबी सपने खुली आंखो रूहानियत से दिखाई पड़ते हैं।
एक समिति जो हिन्दू धर्म की पौराणिक कथा और संस्कृति को जिंदा रखने के लिए लगातार प्रयासरत रही और सामूहिक रूप से धार्मिक आयोजन कर आत्माओं को जागृत करने के प्रयास तत्पर रही , उसे ही कुछ लोग कब्जा जमाने वाले बता रहे हों तो समझिए कि धर्म व ईमान की कितनी हानि हो चुकी है।
लोग वस्तुस्थिति का वर्णन ना करके किसी का लिखा हुआ और बोला हुआ बयान जुबानी या लिखित किसी भी माध्यम से रखें तो चिंतनीय है कि नगर के अंदर का सच भी रख नहीं सकते और सच के साथ खड़े नहीं हो सकते , फिर कैसे समाज के जिम्मेदार नागरिक , सोशल एक्टिविस्ट , जनप्रतिनिधि व पत्रकार हुए !
न्यायिक बात है कि अनहोनी होती तो समिति पर दोष मढ़ा जाता , फिर जो लोग आज बुजुर्गों के हक की बात कह रहे हैं तो यह निजी संपत्ति भी नहीं है कि कोई हक की बात जायज होती। रामलीला भवन की प्रबंध समिति अनेकों वर्ष से काम कर रही है तो हर बुरे और अच्छे की जिम्मेदार भी वही है। इसलिये आवश्यक है कि नगर की जनता नगर के अंदर के सामंती विचारधारा और धनबल से लबरेज लोगों को पहचाने जो समाज हित की बात कर अपना राजतंत्र चलाने का गुलाबी सपना देखते हैं। अभी वक्त है और जागरूक जनता आवाज देकर बहुत कुछ कर सकती है। न्याय और सही का साथ जनता देगी तो शासन – प्रशासन का पलड़ा भी न्याय की तरफ ही झुकेगा।