आंतरिक सत्ता से सांसारिक वाह्य सत्ता के निर्धारण का सिद्धांत.

[email protected]

मनुष्य के अंदर भाव की प्रवृत्ति होती है। हंसी – खुशी और दुख – दर्द जैसे भाव जन्मते – मरते रहते हैं। समय-समय पर हम क्रोधित भी होते रहते हैं। उम्र बीतने को हो जाती है , एक उम्र के बाद अंत समय निकट आने लगता है कि कब जीवन खत्म होगा और दुनिया से अलविदा कह जाएंगे ?

किन्तु अगर कुछ नहीं खत्म होता तो वह क्रोध और उसकी सत्ता है। मनुष्य मात्र के अंदर क्रोध की अपनी सत्ता कायम हो जाती है। इस समय विवेक शून्य हो जाता है। क्रोध के वक्त आसमान तक निशाना साधने लगते हैं और अपशब्दों की मिसाइल छोड़ने लगते हैं।

मिसाइल अगर लक्ष्य का भेदन करती है तो धुंआ भी जमीं की ओर प्रवाहमान रहता है। किसी भी लक्ष्य को नष्ट करती है तो स्वयं भी नष्ट हो जाती है। धुंआ की दिशा से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आंतरिक रूप से बड़ा नुकसान होता है।

जिसे क्रोधित व्यक्ति ना समझ पाता है और ना समझने पाता है। क्रोध का अपना पक्ष होता है और विपक्ष पर क्रोध गाज की तरह गिरता है परंतु स्वयं के व्यक्तित्व का क्षरण भी होता है।

आंतरिक सत्ता से वाह्य सत्ता का निर्धारण होता है। कहा गया है , जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ! हमारे अंदर की विकृत सत्ता ही वाह्य सत्ता का विकृत स्वरूप है। अगर देश की राजनीतिक सत्ता संक्रमित और बुरी दशा में है तो निश्चित ही नागरिकों की आंतरिक सत्ता संक्रमित व विकृत है।

स्वविवेक से सुंदर सृष्टि का सृजन किया जा सकता है। किन्तु जहाँ विवेकहीन हुए स्वार्थों में संलिप्त लोग गलत चुनाव लगातार करते हैं तब वाह्य सांसारिक सत्ता का स्वरूप विकृत होता चला जाता है।

स्वयं से ही आकलन करने योग्य होता है कि कब – कब गुस्सा आने पर महसूस किया कि गुस्से की जरूरत नहीं थी और समभाव रहना चाहिए। जिंदगी में आत्मज्ञान की ओर कितनी यात्रा की और कितनी तय कर ली सिवाय इसके की सांसारिक यात्रा में तमाम ज्ञान – विज्ञान और न्याय – अन्याय की बातें कर के स्व – जिंदगी से कब न्याय किया ?

क्रोध पर विजय प्राप्त कर लें तो यकीनन समभाव होकर स्वविवेक द्वारा ही अच्छी आंतरिक सत्ता से अच्छी वाह्य सत्ता का निर्धारण किया जा सकता है। विचारणीय यही है तमाम वाद – प्रतिवाद के सिवाय एक जिंदगी से सांसारिक अपनी जैसी जिंदगियों के लिए ताकि अच्छी दृष्टि से अच्छी सृष्टि का निर्माण हो सके पर सवाल वही है कि मृत्यु के सन्निकट आकर भी क्रोध पर काबू पाया क्या ? यह आंतरिक सत्ता से वाह्य सांसारिक सत्ता का सिद्धांत है , जिसे समझकर ही नागरिक कुछ अच्छा कर सकते हैं।