ये कार बनी कोरोना वारियर कार .

By : Saurabh Dwivedi

टार्जन कार का नाम बच्चे – बच्चे की जुबान पर था। वो एक मूवी की काल्पनिक कार थी। उसकी अपनी विशेषता थी पर इस कार की अपनी विशेषता है। ये हकीकत की कार है और हकीकत की दुनिया में हकीकत की सड़क पर दौड़ लगाती है फिर बन जाती है एक सेवा कार !

ये कार स्वास्थ्य आपातकाल में ड्यूटी कर रहे पुलिस कर्मियों की प्यास बुझाती है – भूख तृप्त करती है। जहाँ एक ओर वीरान सड़के और गलियां हैं वहीं एक छोर में पुलिसकर्मी जीवन रक्षा की नजर दौड़ाते हैं। एक अदृश्य वायरस से हमारी जंग है , यह जीवन के लिए जीवन बचाने की जंग है।

इस वक्त सारी दुनिया की तरह हम सभी मृत्यु को हराने के लिए जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए संकल्प बद्ध हैं। ऐसे ही एक युवा व्यापारी हैं। युवा व्यापारी सौरभ की कहानी है।

युवा व्यापारी सौरभ जायसवाल कोरोना काल मे सेवा कर बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। सौरभ इस देश के युवा हैं। जनपद चित्रकूट के युवाओं में उनकी अलग पहचान है। वे स्वयं सेवा के लिए सोचते हैं , दिखावे से दूर चुपचाप मनुष्य जीवन की सेवा करते हैं।

कहते हैं कि अच्छी कहानियां ज्यादा देर तक पर्दे पर नहीं टिक सकतीं। वे स्वयं नजरों के सामने आ जाती हैं। लाकडाऊन के साथ सौरभ धूप में खड़े पुलिसकर्मियों को चाय लेकर पहुंचने लगे।

इन्होंने इंसानी स्वाद और स्वभाव का ध्यान रखा। कभी छाछ – कभी फ्रूट रायता और ब्रेड आदि लेकर भी सेवारत होने लगे। इंसान का स्वभाव बदल – बदल कर खाने-पीने का होता है और सौरभ ने ऐसा ही किया।

इनके इस कार्य में बराबर की सहयोगी यही एक मशीन। यदि इंसान मशीन हो जाए तो बड़ा गलत हो जाता है। फिर वह मशीन की तरह काम करता है और शोहरत कमाता है पर करूणा खो देता है। मशीनी कलपुर्जों की तरह एक दिन कबाड़ हो जाता है।

वही मशीन की सवारी कर इंसान ना स्वयं को बल्कि मशीन की उपयोगिता को सिद्ध कर देता है। इंसान और मशीन का ये संगम मन के विकार नष्ट कर देता है। इंसान के सेवा भाव से मशीन का कार्य ऐतिहासिक हो जाता है।

सौरभ की Beat कार कोरोना वारियर बन चुकी है। वो सौरभ के हाथ – पैर से चलती जरूर है पर हृदय के अनुकूल साथ निभाती है। अब जैसे ही यह कार हाइवे से दौड़ती है वैसे ही नजर पड़ते ही जुबां पर आ जाता है कि सांझ ढलने वाली है और सेवा कार आ गई।

जब युवा भूख – प्यास मिटाने का काम करने लगते हैं तब मानवता के सामने दुष्ट विकार टिक नहीं पाते। आजकल शाम ढलते ही प्यार परवान चढ़ने लगता है , भला इससे प्यारा रिश्ता क्या हो सकता है ?

जब एक आम युवा देश और जिंदगी की सलामती के लिए दायित्व बोध की आहूति दे रहा हो। कुछ बहुत ज्यादा नहीं पर प्रतिदिन का औसतन 700 ₹ खर्च करके सौरभ बड़ी सेवा का काम कर रहे हैं , पिछले एक महीने और पांच दिन से !

अपनी व्यक्तिगत आय से लगातार सेवा करना सेवा भाव का बड़ा उदाहरण है। सौरभ कहते हैं कि वे अकेले ही सेवा करने को सोचते हैं। मुश्किल यह है है कि किसी का साथ लें फिर वो एक दिन ना आने को बोले तो मुझे भी आलस आ जाए। इसलिए मैं स्वयं तैयार रहता हूँ और कोई साथी आ गया तो सोने पे सुहागा हो जाता।

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सौरभ और सौरभ की कार प्यास और भूख की छोटी सी उम्मीद हो चुके हैं। बात पुलिसकर्मी की नहीं बल्कि जिंदगी की है और जिंदगी सांस जैसी उम्मीद लगा लेती है। कुछ सफाई कर्मियों से भी इनकी मुलाकात होती है और वह भी बंद होटल और लाकडाऊन ठेलों के बीच सेवा का प्रसाद पा लेते हैं।

ऐसे ही युवा समाज का नेतृत्व करते हैं और गैर जनप्रतिनिधि युवाओं ने नेतृत्व की असल परिभाषा समाज के लिए प्रस्तुत की है। कोरोना मुक्त होने के बाद सोच मे बदलाव आने का विश्वास हो चला है।

टार्जन कार के बाद सौरभ की सेवा कार मानवता के लिए जानी जाएगी। और कोरोना से जंग में मशीन और इंसानी सहयोग के संगम की कहानी ऐतिहासिक होगी। 
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