टापर्स के बहाने स्कूलों की ब्रांडिंग कितनी गलत है ! फेल बच्चों की जिम्मेदारी कौन लेगा ?
बच्चे जब मेहनत करते हैं और घर , कोचिंग और फिर स्कूल मे पढ़ाई करते हैं। कोचिंग और घर के बाद तीसरे नंबर पर स्कूल का नंबर आता है तो तीसरे नंबर के स्कूल / कालेज की ब्रांडिंग क्यों ?
ज्यादातर निजी स्कूल / कालेज इस ब्रांडिंग मे हर वर्ष आगे दिखते हैं। जो बच्चे अच्छे अंक प्राप्त कर लेते हैं उन बाल विद्यार्थियों का जमकर प्रयोग करते हैं जैसे अखबार एवं डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म पर उन छात्रों की फोटो समाचार स्कूल के नाम सहित आना फिर एक एडमिशन का कम्पटीशन शुरू होता है कि हमारे यहाँ के बच्चे टाप करते हैं इसलिए यहीं प्रवेश कराइए और बच्चे का उज्जवल भविष्य पाइए।
लेकिन वे स्कूल / कालेज वाले कम अंक लाने वाले छात्रों की जिम्मेदारी नही लेते और उनको गदहा कि श्रेणी मे ला देते हैं कि ये गधा है , याद होगा आपको कि जो लोग आज अभिभावक हैं कभी छात्र रहे होंगे तो पढ़ने लिखने मे कमजोर होने पर गधे हो गए रहे होंगे और गुरु जी हमेशा घोड़े की तरह होशियार रहे होंगे।
एजुकेशन के बाजार को समझिए कि ब्रांडिंग का कितना खतरनाक खेल खेलते हैं गांधी डिवीजन हासिल किए हुए स्कूल चूंकि जो छात्र टापर हैं वे किसी ना किसी कोचिंग संस्थान मे पढ़ने गए हैं फिर घर मे कोचिंग का पढ़ाया हुआ पढ़े हैं और उसके बाद सुबह स्कूल / कालेज पढ़ने गए हैं तो इन प्राइवेट शिक्षण संस्थान की भूमिका तो तीसरे नंबर की हुई।
अब सोचिए कि खर्च कितना बढ़ता है पहले तीसरे नंबर वाले स्कूल / कालेज की भारी भरकम फीस दीजिए फिर फर्स्ट नंबर वाले कोचिंग संस्थान मे हर एक सब्जेक्ट की कोचिंग की फीस दीजिए और कम से कम तीन से चार विषय की कोचिंग पढ़ लेते हैं छात्र , अगर ये स्कूल / कालेज सफल होते नंबर वन तो कोचिंग संस्थान क्यों खुलते ?
बच्चों की सफलता और असफलता ध्यान आकर्षित करता हुआ एक ट्विट पुलिस अधीक्षक चित्रकूट वृंदा शुक्ला ने किया कि असफल बच्चों का ध्यान रखना होगा और वे हतोत्साहित ना होने पाएं जो इस प्रकार है….
” UP बोर्ड परिणाम के दृष्टिगत सभी से अनुरोध है कि रिजल्ट पाने वाले बच्चों पर ध्यान देंl उनके जीवन या आत्म सम्मान से बढ़कर कोई परिणाम नहीं है | परिणाम से हतोत्साहित होकर घर छोड़ के जाने या कोई अप्रिय कदम उठाने की संभावना से इंकार नहिं किया जा सकता | ऐसे में तुरंत पुलिस को सूचना दें | “
यहाँ बचपन बचाना कितना जरूरी है ? बच्चों का आधार बनाकर खुद की ब्रांडिंग करने वाले लोग और स्कूल को सीखना होगा कि बचपन का हनन ना होने पाए चूंकि जीवन या आत्मसम्मान से बढ़कर कोई सम्मान नही होता।
सवाल है कि क्या यही स्कूल / कालेज टाप करने वाले बच्चों की पूरी शुल्क हर तरह की माफ कर उनको सम्मान देंगे ? वहीं कोचिंग संस्थान वाले भी कहते हुए मिल जाते हैं कि हमने पढ़ाया है तो बच्चे ना टाप किया है फिर स्कूल और कोचिंग संस्थान मे किसने पढ़ाया ? शिक्षा के इस बाजारीकरण से बचपन को बचाना चाहिए और कम से कम बड़े अफसरों के बीच बचपन का हनन तो ना होने पाए।
एक अधिकारी का यह गंभीर ट्विट हर अभिभावक के जेहन मे छा जाना चाहिए और सजगता से सभी को जीवन और आत्मसम्मान के लिए ध्यान रखना होगा।