तुम रक्षक काहू को डरना। सच है कि पुलिस रक्षक होती है।
” तुम रक्षक काहू को डरना ” हनुमान चालीसा की चौपाई का अंश रक्षक समूह पर लागू होता है। हनुमान जी महराज की कृपा तन , मन , चित्त और मति पर ऐसी हो कि दीन – हीन पीड़ित को ऐसे ही लाभ मिले जैसी उम्मीद हमेशा कोतवाली कर्वी इंस्पेक्टर अवधेश कुमार मिश्र जी से रहती है।
मुझे इनसे हो चुकी पहली मुलाकात याद है। ठंड के दिन थे लेकिन कोहरा इतना था कि शाम लग रही थी। दो बच्चे अखबार बांट रहे थे। उनके तन पर कोई खास ऊनी वस्त्र नही था। इन्होंने बच्चों के देखा और मन मे कहीं से प्रेरणा जगी तो बच्चों को स्वेटर / जैकेट दिलाने ले गए।
इत्तेफाक से मैं इस पल का गवाह बना। और मुझे पुलिस का समाजसेवी स्वरूप दिखा था। उस समय आप से मेरी बात हो सकी थी। फिर एक मुलाकात के बाद कुछ मुलाकातें होती रहीं लेकिन लंबे समय बाद एक खास मुलाकात सुन्दरकाण्ड भेट करने के उद्देश्य से हुई।
हनुमान जी ने मानसिक प्रेरणा दी कि जाओ एक रक्षक को जो समाजसेवी भी है , उन्हें शीघ्र भेट कर आओ। मैं सोच रहा था लिखूंगा क्या ? तब स्मरण हुआ ” सब सुख लहैं तुम्हारी सरना | तुम रक्षक काहू को डरना | ” इस भाव से जन सेवा किए जाने पर पीड़ित जनता को सुख लाभ मिलता है और अपराधी को लंका के राक्षसों जैसा दंड मिलना चाहिए। और चित्रकूट मे वनवासी राम , कामतानाथ और मत्तगजेन्द्रनाथ खुद न्याय के देवता हैं।
आपने कहा अपनी किताब कब ला रहे हो ? मैंने कहा सर फाइनल टच बांकी है। सोशल काॅकटेल के समय तो दिल्ली दंगा हुआ फिर कोरोना आ गया तो जैसी मेरी इच्छा थी कि किताब और विषय पर बात करूंगा वो नही हो पाया। इसका मलाल बहुत है मुझे। लेकिन अब तीसरी किताब जब आएगी तो सचमुच ऐसा कुछ हो पाएगा।
सुन्दरकाण्ड और मुलाकात का दौर व संत समाज से आशीर्वाद लेने की यात्रा शुरू रहेगी , धर्म जागरण जन जागरण यात्रा जारी रहेगी। ऐसी ही मुलाकात के मंथन से कुछ उपयोगी तत्व सामने आएंगे।
जय हनुमान।।