जब तक समस्या का अंत नहीं तब तक अनशन का अंत नहीं .

@Saurabh Dwivedi

( गांव पर चर्चा )

पराको / रामनगर : संविधान कहता है गांव के विकास का मुद्दा मुख्यधारा मे लिया जाएगा , इसके बावजूद विकास के मामले में गांव की दिशा – दशा अत्यंत पिछड़ी नजर आती है। गांव के किसान का मुद्दा हो या युवाओं की जिंदगी से संबंधित मुद्दे हों सबके सब कराह रहे हैं। बदलते समय के साथ युवाओं की आवाज की आवाज के लिए मुखर हो रही है। ब्लाक मुख्यालय रामनगर के पराको गांव के अनशनकारी युवा नेता कुलदीप मिश्रा से हुई बातचीत में मुद्दों की विशालता व गहनता का व्यापक दर्शन मिला।

कुलदीप मिश्रा व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से बदहाली झेलता पराकों एवं गांव की आवाज जैसा ग्रुप बनाकर युवाओं को एक मंच पर लाते हैं। वहाँ धीरे-धीरे गांव की आवाज विकास व सुरक्षा की आवाज बनकर युवाओं मे चेतना जागृत करने का माध्यम बनती है। इसी का असर रहा कि गांव के युवा समस्याओं को लेकर अनशन करने के लिए आत्मबल संजो सके हैं।

उन्होंने हमसे बातचीत मे कहा कि अन्ना पशुओं की वजह से खेत की फसल पूर्व की तरह बर्बाद हो रही है। अन्ना पशु दिन – रात के किसी भी पहर में किसान के खेत तक पहुंच जाते हैं , पहुंचते ही लहलहाती फसल को चट कर जाते हैं फिर किसान के सामने माथा पीटने के सिवाय कोई और विकल्प शेष नहीं रह जाता है।

अन्ना पशुओं के नाम पर शासन द्वारा अपार धन आवंटित किया गया है। प्रत्येक गांव मे पशु आश्रय स्थल बनाकर पशुओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम किया जाना था , परंतु प्रशासन व गांव के वर्तमान नेतृत्व की उदासीनता के चलते वह धन कहीं गुम सा नजर आ रहा है। यदि धन होता या धन है तो पशु बाहर क्यों हैं ? वे फसल क्यों चट कर रहे हैं ?

इन्हीं सवालों के साथ कुलदीप मिश्रा कहते हैं कि अन्ना पशुओं और आश्रय स्थल को लेकर एक बड़े भ्रष्टाचार की बू नजर आती है। चूंकि जब पंचायत के प्रतिनिधि से बात की जाती है तो उनका कहना रहता है कि छः महीने से खाते मे धन नहीं आया है , करीब – करीब हर प्रधान यह रोना रोते हुए मिल जाता है और यही हाल पराकों के प्रधान के हैं। जो पशुओं का संरक्षण ठीक ढंग से करने मे पूर्ण नाकामयाब हुए हैं।

उन्होंने बड़ा आरोप लगाया यदि धन सरकार द्वारा आ रहा है तो वह डंप कहाँ है ? जनपद के खाते में डंप है या खंड विकास स्तर पर डंप है ? यदि प्रधानों की बात मान ली जाए तो अधिकारी धन समय से आवंटित क्यों नहीं करते ? या फिर प्रधान किसानों को गुमराह कर रहे हैं। ऊपर से जनता पर बड़ा अहसान जताते हैं कि लंबे समय तक पशुओं को व्यक्तिगत धन से खिला – पिला कर संरक्षण करने का काम किया है। हर प्रधान की जुबान यही है फिर आश्चर्यजनक है कि झोल कहाँ है ?

युवाओं के साथ अनशन पर बैठे श्री मिश्रा का कहना है कि हम युवाओं की ऊर्जा ने ठाना है कि तब तक अनशन से नहीं उठेंगे जब तक समस्या का स्थाई हल प्रशासन द्वारा नहीं कर दिया जाता है। अन्ना पशुओं के सिवाय स्वच्छता का मुद्दा प्रमुख है जैसे कि जल निकासी की व्यवस्था ठीक ढंग से नाली निर्माण कर नहीं किया गया व सड़कों की बुरी दशा है। घटिया सामग्री के प्रयोग होने से नाली हो या सड़क सब जर्जर हैं और सफाई कागजी है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि गांव से युवाओं की आवाज का मुखर होना बड़ा शुभ संकेत है। पंचायत स्तर से ही बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। यदि युवा एक समान ऊर्जा के साथ प्रयास करेंगे तो निश्चित है कि बड़ा व्यापक बदलाव शीघ्र ही गांव से नजर आने लगेगा। ग्राम पंचायत के बजट का सदुपयोग युवाओं की सोच से ही संभव है और देश – प्रदेश की राजनीति में भी यहीं से बदलाव आएगा।

अनशनकारी युवाओं का कथन है कि हम एक सुंदर – सुसज्जित गांव बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और यह अभी शुरूआत है , भविष्य मे ऐसे ही संगठित होकर हमेशा आवाज उठायी जाएगी , अब अधिकारियों के आश्वासन से संतोष नहीं किया जा सकता जब तक समस्या का अंत नहीं तब तक अनशन का अंत नहीं , ऐसी हुंकार युवाओं ने भरी है।
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