खट्टे-मीठे से रिश्ते : उपराष्ट्रपति ने की विषय वस्तु की सराहना.

By :- Saurabh Dwivedi

आतंक के साए में एवं स्मृतियां जैसे दो मनोवैज्ञानिक उपन्यास की लेखिका की कलम से खट्टे-मीठे से रिश्ते नामक उपन्यास निकलना भी भारतीय परिवार का स्पष्ट दर्शन कराता है। उपन्यास पढ़ते हुए महसूस होता है कि भौतिक विकास की परिकल्पना में मानव ने कितनी भी प्रगति कर ली हो परंतु आज भी जिंदगी प्रेम और शादी के मध्य के संघर्ष में चल रही हो !

प्रेम और विवाह ऐसा संघर्ष है जिसके उपरांत ही किसी भी प्रकार के सुख सुविधापूर्ण विकास की परिकल्पना का साकार होना सुखद हो सकता है। ऐसी ही विषय वस्तु पर सरसरी निगाह डालते हुए उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने लेखिका के प्रयास की सराहना की। साथ ही उन्होंने कहा कि मैं हिन्दी धीरे-धीरे पढ़ लेता हूँ। दक्षिण भारत से ताल्लुक रखने वाले उपराष्ट्रपति का हिन्दी पढ़ने – समझने को लेकर यह वक्तव्य उनके हिन्दी प्रेम को जाहिर करता है।

इस उपन्यास में सास , सम्धन , ननद , भाई और ससुर व ब्रदरइनलाॅ के रिश्ते को मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य से भावपूर्ण लहजे में उकेरा गया है। कहानी का सारांश यही कहा जा सकता है कि लेखिका द्वारा प्रत्येक पाठक के मन को स्पर्श कर लेने का उत्तम प्रयास किया गया है।

उपन्यास प्रत्येक जिंदगी को खूबसूरती से स्पर्श कर लेगी। चूंकि इसमें अहम की जंग भी है तो इस जंग में प्रेम और पति-पत्नी के रिश्ते का दमन होना भी दर्द के साथ झलक रहा है। ऐसी कहानी हर जिंदगी में घटित होती है , बेशक वह पल भर को किसी की जिंदगी में घटित हुई महसूस हो।

बेमेल विवाह के संदर्भ में बेबाक वाक्य है कि ” कुछ लोगों की बेमेल शादी होने से लोग अकेले ही जिंदगी काट देते हैं ! ”

ये सच है कि भारतीय परिवेश में विवाह उपरांत बहुत से लोग स्वयं को संसार के सक्षम सुखमय प्रस्तुत करते हैं। जैसे कि सोशल मीडिया में एक चलन खूब देखने को मिलता है पति-पत्नी की तस्वीर के साथ एनिवर्सरी के दिन लिखा पाया जाता है , ” बीस साल बीत गए पता ना चला ” ! पर आवश्यक नहीं कि उनकी जिंदगी में प्रेम का चरमोत्कर्ष हो ही अथवा उन्होंने वास्तव में प्रेम जैसी अद्भुत अनुभूति को महसूस किया हो और जिंदगी सुखमय ही हो ; बल्कि इसका विलोम भी खूब पाया जाता है। ऐसे ही बेमेल विवाह की रूदन कहानियां खूब बिखरी मिल जाती हैं जो अंतस में रिसती रहती हैं।

एक सफल सुखमय जिंदगी के लिए उपन्यास अच्छा संदेश प्रदान करती है। भावुक पाठक उपन्यास को पढ़ते हुए कब अश्रुमय हो जाएं इसका कयास लगाना आसान नहीं है। चूंकि उपन्यास अनेक जगह रोने को सहज मजबूर कर देती है।

( किताब Amazon , kindal एवं प्रभात प्रकाशन की वेबसाइट पर उपलब्ध है )