जीत का फार्मूला कार्यकर्ताओं को माला.
By – Saurabh Dwivedi
हाँ ! आरके पटेल के इर्द-गिर्द रहकर महसूस हुआ कि ये व्यक्ति जिताऊ प्रत्याशी की भूमिका में राजनीतिक दल को कैसे पसंद आ जाता है ? जनता अनेको बार अपना जनप्रतिनिधि क्यों चुन लेती है ? जबकि मानवीय हकीकत है कि सब्जी का स्वाद कमजोर हो तो लोग सब्जी बदल देते हैं और बाहर कहीं होटल की बात हो तो उसका तिरस्कार कर देते हैं। किन्तु इनका जादुई व्यक्तित्व ही है कि चुनावी राजनीति में ना सिर्फ जनता की पसंद हैं बल्कि नेताओं की भी पसंद बन जाते हैं।
भाजपा के मंडल स्तरीय कार्यक्रम के दौरान देखने को मिला कि स्वयं माला ना पहनकर कार्यकर्ताओं को माला पहनाते हैं और कान में हल्के से मंत्र फूंकते हैं कि ” म्वा माला 23 मई का लऊटा देहेव ” ! बड़े ही सहज भाव से कहते हैं और कहने के साथ ही प्रेम भरा स्पर्श महसूस करा देते हैं। ये सहज भाव और प्रेमिल स्पर्श जीत का जादू बन जाता है। ये बांदा लोकसभा प्रत्याशी की दिलचस्प अदा है कि प्रत्येक कार्यकर्ता का सीना 56 इंची कर देते हैं।
मनोविज्ञान के नजरिए से देखें तो यह बहुत प्रभावशाली बात है कि स्वयं माला ना पहनकर विजय संकल्प की जिम्मेदारी का अहसास कार्यकर्ता व आम जन को हो जाए। ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव जीतने की जिम्मेदारी बांटना आरके पटेल जानते हैं। जिस कला में विपक्षी प्रत्याशी कहीं ना कहीं असफल हो जाता है। यही एक बड़ी वजह है कि जीत का फार्मूला यही है कि कार्यकर्ता को प्रसन्न करो , विजय प्राप्त करने को प्रेरित करो और नरम स्वभाव से यह संभव है। इनका नरम स्वभाव ही है जो लोकप्रियता का सूचकांक वर्तमान समय मे भी उच्च स्तर पर है।
( बांदा लोकसभा प्रत्याशी आरके पटेल के साथ बिताए गए समय के आधार पर )