ऐसा वर्णन किया है कि सुनकर लगता है यार बात तो सही है , वे कहते हैं कि वृंदावन के बंदर चश्मा क्यों निकालते हैं और चित्रकूट के बंदर जूते चप्पल क्यों उठा ले जाते हैं ?
चित्रकूट : प्रिया मसाला इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर बृजेश त्रिपाठी इस समय अपने गांव खण्डेहा अर्जुनपुर मे मां एवं स्वर्गीय पिता को कथा सुनवा रहे हैं। श्रीमद्भागवत कथा का मनुष्य के जीवन मे बड़ा महत्व है और ऐसी कथाओं से कुछ ऐसी बातें निकलकर सामने आती हैं जो मनुष्य की जिंदगी मे क्रांतिकारी परिवर्तन लाती हैं।
कथा कह रहे चंदन दीक्षित जी महराज ने बंदर का ऐसा वर्णन किया है कि सुनकर लगता है यार बात तो सही है , वे कहते हैं कि वृंदावन के बंदर चश्मा क्यों निकालते हैं और चित्रकूट के बंदर जूते चप्पल क्यों उठा ले जाते हैं ? सवाल मन को छू लेने वाला है।
जब उन्होंने जवाब दिया तो होठ मुस्कुराने लगे और अंदर आत्मा को अहसान हुआ कि हमारा ज्ञान कितना कम है अभी जो इतना भी नही जानते थे। इसलिए कथा सुनना महत्त्वपूर्ण है कि कब जीवन भर का आत्मज्ञान मिल जाए , परमात्मा कौन सी बात कह दें जो आत्मा को जागृत कर दे। और मनुष्य का लक्ष्य है चैतन्य आत्मा बनना अर्थात चेतना जागृत रहनी चाहिए अन्यथा जीवन मे अंधकार व्याप्त रहेगा और जीते जी मुक्ति ज्ञान से मिलती है अंदर के प्रकाश से मिलती है।
महाराज जी ऐसा ही वर्णन करते हैं कि चित्रकूट अमावस्या के दिन ही क्यों आते हैं , इसका भी तात्पर्य स्पष्ट किया है। अमावस्या का अंधकार और ईश्वर के ज्ञान का प्रकाश जिसका मानव जीवन मे महत्व है। गहन अंधकार के दिन मे लोग कामतानाथ के दर्शन करते हैं और राम जी कृपा प्राप्त कर जीवन का अंधकार समाप्त करते हैं और ऐसे ही वृंदावन पूर्णिमा का महत्व बताता है कि पूर्णिमा के दिन वृंदावन की परिक्रमा करना महत्त्वपूर्ण माना गया है।
यहीं पर वह बंदर के माध्यम से प्रभु के प्रेम और कृपा का वर्णन करते हैं कि देखो वृंदावन के बंदर कहते हैं कि चश्मा हटा दो फिर दर्शन करो क्योंकि माया का पर्दा हटेगा तभी श्रीकृष्ण के दर्शन होंगे। वहां के बंदर लोगों का चश्मा छीन कर यह संदेश देते हैं कि माया का पर्दा हटाकर प्रभु की शरण प्राप्त होगी।
और चित्रकूट के बंदर जूते-चप्पल और कपड़े ले जाकर इस बात का संदेश देते हैं कि मेरे प्रभु श्रीराम साढ़े ग्यारह वर्ष तक बिना चप्पल के रहे हैं और कपड़ो के नाम पर साधारण धोती अंग वस्त्र लपेटकर जीवन निर्वाह किए हैं। इसलिए बंदर ऐसा करके बार बार स्मरण कराते हैं कि चित्रकूट मे इस तरह आकर रहना है और नंगे पैर परिक्रमा करना है।
एक बार दिल्ली से कुछ महिलाएं चित्रकूट आईं थीं तो देर रात का समय था और वो लोग चप्पल पहनकर परिक्रमा कर रही थीं तो बंदर बाबा मौका पाकर मंदिर के पास चप्पल लेकर निकल लिए। फिर काफी अनुनय-विनय के बाद उन्होंने चप्पल वापस किए थे। तो ऐसी घटनाएं कथा की प्रामाणिकता की ओर संकेत करती हैं।
प्रिया मसाला कंपनी के डायरेक्टर बृजेश त्रिपाठी ने कथा सुनने को आए सभी श्रोता भक्तों का आभार प्रकट किया है। 11 फरवरी से शुरू कथा मे गुरूवार को कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से हुआ और हर समापन की 17 तारीख तक आध्यात्मिक माहौल व्याप्त रहा। और 18 फरवरी के भंडारा प्रसाद ग्रहण करने के साथ सबको जीवन मे परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त हो ऐसी उन्होंने सबके लिए प्रार्थना की।