जीवन में दृष्टि के विकास के लिए कब और कितना अभ्यास किया ?

By :- Saurabh Dwivedi

मनुष्य मे दृष्टि का अंतर होता है। एक सूक्ति वाक्य भी है कि ” जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि “। इसके अनेक अर्थ निकाले जा सकते हैं , किन्तु एकदम सरल सी बात है कि व्यक्ति की दृष्टि जैसी होगी वैसी सृष्टि दिखेगी। दृष्टि जितनी क्षमतावान है उतना ही आकलन कर सकेगा।

हम मनुष्य शारीरिक विकास के लिए अनेको उपाय आजमाते हैं। स्वयं को सुंदर दिखाने के लिए उत्तम गुणवत्ता के सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग करते हैं , इसी का परिणाम है कि सौंदर्य बाजार अरबो – खरबो का है। सुडौल तन के लिए व्यायामशाला जाते हैं। इस प्रकार से स्वयं को अत्यधिक आकर्षक बनाने के लिए समस्त प्रकार के जतन करने के लिए तैयार रहते हैं।

इस प्रकार के मनुष्यों को आकर्षित करने हेतु टेलीविजन पर ऐसे प्रचार भी आते हैं कि पहले मैं देखने मे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। लड़कियां मेरा मजाक उड़ाती थीं। कोई लड़की मेरी मित्र नहीं बनती थी और प्रेमिका बनना बड़ी दूर की बात थी।

फिर उसके जीवन मे चमत्कार होता है। वह बाॅडी बिल्डो पाऊडर का सेवन करता है और एकदम सुडौल बाॅडी देखकर महाविद्यालय की लड़कियां चकित रह जाती हैं। अंत मे वह बताता है कि आज महाविद्यालय की सबसे खूबसूरती लड़की उसकी प्रेमिका है। जाने क्यों लड़कियों के लिए यह बताया जाता है कि वह बाॅडी देखकर ही प्रेम कर बैठती हैं ? शारीरिक प्रेम ( आकर्षण) और आत्मीय प्रेम में अंतर होता ही है।

देह के आकर्षण से प्रेम होना भी सिद्ध कर दिया जाता है। एक और बात है कि वह खूब अमीर हो तो भी प्रेम उसे मिल जाता है। यह सब वाह्य दृष्टि का आकर्षण है।

वाह्य दृष्टि का अर्थ कुछ इस प्रकार लिया जा सकता है जो व्यक्ति तैराक है। वह तालाब हो या नदी अथवा महासागर बाहरी तत्व से ही परिचित होगा। वह इनके जल की गुणवत्ता बता सकता है परंतु गहराई और तलहटी के बारे में कुछ भी नहीं कह सकता।

एक दृष्टि आंतरिक दृष्टि , इसे सूक्ष्म दृष्टि से भी समझा जा सकता है। यदि दृष्टि आंतरिक है तो अवश्य सूक्ष्म होगी। इस दृष्टि को गोताखोर स्वभाव से महसूस किया जा सकता है। कोई गोताखोर ही समुद्र की तलहटी , गहराई और उसके अंदर के बहुतायत तत्व से परिचित करा सकता है। चूंकि वह तैराक नहीं गोताखोर है और कुछ लोग तैराक भी नहीं होते।

अतः शारीरिक विकास के लिए सोचते हैं तो सोचिए। स्वस्थ रहने के लिए शरीर की सेवा करना भी आवश्यक है। किन्तु मनुष्यों को सोचना चाहिए कि जीवन में दृष्टि के विकास के लिए कब और कितना अभ्यास किया ?

दृष्टि के विकास का साधन विभिन्न प्रकार की किताबे हैं। किताबों के संसार मे भी अच्छी और बुरी किताबे हैं। किन्तु जिस किताब का अध्ययन करेंगे वैसा ही विकास प्राप्त करेंगे।

साहित्य के क्षेत्र में जिंदगी , प्रेम , समय , समाज और राजनीति से लेकर आध्यात्मिक किताबें अमृत की तरह संग्रहित हैं। किताबों के कलश को लेकर पान करने से क्लेश समाप्त होने लगता है। अच्छाई की ओर मार्ग प्रशस्त होने लगता है।

मनुष्य को सूक्ष्म दृष्टि के विकास हेतु उतना ही अध्ययन करना चाहिए जितना कि शरीर के लिए। जिनकी अंतर्दृष्टि विकसित है या विकसित करने की साधना मे रत हैं , वे सन्मार्ग मे हैं और अंतर्दृष्टि से प्रेम , मित्रता और रिश्तों को महसूस करते हैं। इसलिए इनकी दुनिया अलग होती है और वाह्य दृष्टि वालों की दुनिया अलग होती है। इस संसार मे अनेक संसार है और अंतर दृष्टि का है।

कोई दैहिक सुंदरता , कुरूपता को देखकर फैसला लेता है तो कोई आत्मा से महसूस कर निर्णय स्वीकार करता है। आंतरिक बल आत्मिक बल होता है। आंतरिक दृष्टि आत्मीय दृष्टि होती है। शेष संसार देखने के लिए प्रकृति ( परमात्मा ) ने आंखे ( दृष्टि ) दी हैं।

( जिंदगी से जुड़े आलेख के प्रायोजक हैं मान्या कलेक्शन , शान से जाइए शान से आइए , दृष्टि बदलिए अच्छे तन पर अच्छे कपड़े सिर्फ और सिर्फ मान्या कलेक्शन कर्वी चित्रकूट से)