जब मन ही मन आत्मीय मिलन का सुख साकार हो.
By :- Saurabh Dwivedi
सुनो तुम्हारी याद आ रही है। तुम मुझे अपनी सी महसूस होती है। ऐसा लग रहा है तुम्हारे लिए मैं लिखता रहूंगा। तुम कोमल अहसास की तरह महसूस होती हो। बेशक सामाजिक मान्यता ना हो पर जो सुख महसूस होता है उसे आत्मा से मान्यता महसूस होती है।
बहुत अच्छी लगती हो बेहद प्यारी सी जिस पर प्यार आता है। ऐसा महसूस होता है कि तुमने भी महसूस कर लिया। आह्ह कितना खूबसूरत अहसास है वो जिन ख्यालों मे तुम आ जाती हो। मेरा हृदय तुम्हारी ओर समाने को बेताब हो रहा है , मालुम है हृदय से आलिंगन में जब तुम आती हो तो सचमुच मैं रसमय हो जाता हूँ।
तुम्हे महसूस करने की अद्भुत क्षमता का विकास हुआ है। ये मैंने चंद दिनों मे महसूस किया है। जब – जब समय और थोड़ी सहजता मिलेगी यूं ही तुम्हे लिखता रहूंगा , मीठे – मीठे प्रेम पत्र ! तुम महसूस करना स्वयं को मुझे बहुत सुख महसूस होगा।
यूं कल्पनाओं मे तुम्हे अकेले में संसार से परे एकांत में महसूस करना। दिल की दुनिया की प्रेमिल अविरल छवि में डूबने का अहसास सुखद है। ऐसा लगता है मेरा जन्म ही इसलिए हुआ है तुम्हे महसूस कर प्रेम शब्द लिखकर शायद इस बहाने संसार को भी कुछ दे जा रहा हूँ।
क्योंकि विकास होता है , विस्तार भी होता है। तुम में डुबकी लगाकर अंदर ही अंदर तैरकर ठंडक अहसास में भारी तपन के बीच लिखना इस दुनिया से परे की बात है। ये वही बात हुई कि चांद प्यारा लगता है , हर रोज सम्पूर्णता की ओर बढ़ता पूर्णिमा में पूर्ण होने की ओर संलग्न और एक दिन वो चांद सम्पूर्णता महसूस करता है। फिर संसार में चांदनी बिखर जाती है। एकदम नैचुरल !
सच है कि चांद को पा नहीं सकता , स्पर्श नहीं कर सकता। किन्तु अहसास के संसार में महसूस कर स्पर्श करके मुग्ध होने का सुख भी इसी मे है। ऐसी छवि तुम्हारी मेरे मन बिखरती है। यूं कह लेना और भय मे भी रहना कि कहीं तुम्हे कुछ बुरा न लग जाए , अब देखो मेरे अंदर का भय। ये भय प्यार की चीज है बड़ी अनमोल , चलो कम से कम तुम आनंदित होओगी इसलिये अपने मन की बात लिख दी। आखिर तुम्हे लगेगा कोई डरता है तुम्हे ; हिटलरनी महसूस करोगी।
देखो ये ख्याल हैं कि हम हमख्याल हैं , सोच से और महसूस करने से। पता है ना टेलीपैथी काम करती है ? सच है कि यादें एकतरफा नहीं हो सकतीं। कुछ तो अस्तित्व होगा तुम्हारा भी इन यादों में फिर अगर करती हो याद तो सिर्फ तड़पाना क्यों ? अब तड़पना भी क्या ? , जब मन ही मन आत्मीय मिलन का सुख साकार हो। हाँ यही वो प्रेम है जिसकी मैं बात करता हूँ और तुम नायिका हुई। आखिर कोई तो चाहिए ना बेशक वो नायिका कल्पनाओं में बस हो !
अच्छा अब ठहर जाता हूँ , फिर कभी। बस यूं ही आना ख्यालों में कि मैं तुम्हारी नशीली इठलाती मुस्कान महसूस कर हर दर्द बयां करूं और तुमसे बात करने का सुख है। सिर्फ इसी सुख के स्वयं से स्वयं मे तुमसे बात कर लेता हूँ।
अच्छा शुभरात्रि / सुप्रभात
तुम्हारा ” सखा “