बिन प्रेम का विवाह और सेक्स था वो .
द्वारा : अज्ञात मन
उसने पहली रात को ही होठ नहीं चूमे। पहली रात अर्थात विवाह के बाद की पहली रात , जब एक औरत पत्नी के रूप में पति से पहली रात को मिलती है। इस पहली रात की प्रतीक्षा हर एक आदमी और औरत को विशेष रूप से रहती है।
कल्पनाओं मे सही पर ऐसी इच्छा फलती – फूलती रहती है। विवाह किसी ना किसी प्रकार से हर किसी का एक दिन होता है। वो पहली रात भी एक रात आ जाती है।
उसकी अरेंज मैरिज थी ! वो विवाह उसी पल तोड़ देता पर खुद को व परिवार को दहेज जैसे जालिम कानून से बचाने के लिए सौम्य मन से विवाह संपन्न करा डाला। खैर विवाह का किस्सा ही अलग है जो किसी भी औरत और आदमी के जीवन मे घटित होता है।
विवाह हो जाने के उपरांत पहली रात को ही उसने सोच लिया कि जीवन इसके साथ जीना होगा। एक औरत को उसका सम्मान और हक देना होगा। मन ही मन उसने सोच लिया संभवतः बदलाव हो सके तो भविष्य के लिए अच्छा होगा।
यह सोचकर ; उसने बगैर अपमानित किए पहली रात अर्थात जिसे लोग सुहाग रात कहते हैं , को मनाना शुरू कर दिया। उसे प्रेम नहीं था परंतु दैहिक इच्छा और पहली रात की इच्छा पूर्ति जरूर शुरू कर दी गई।
प्रेम ना होना बड़ी वजह थी। उसने पत्नी रूपी औरत के होठों को अपने होठो से नहीं भींचा। वो नहीं भींच सका , चूंकि जब प्रेम नहीं तो होठ से होठ का मिलन कहाँ ?
उसका मन कहता है कि होठों का मिलन प्रेम और अपनत्व का मिलन है। एक गहरा अनुराग जो उसकी जिंदगी मे अधूरा ही रहा। लेकिन वैवाहिक जीवन चलता रहा …… चलता रहा। ऐसे संभवतः तमाम वैवाहिक जीवन वाहन की गति की तरह चलते हैं।
उसके वैवाहिक जीवन की शुरूआत व अंत उसे अवश्य पता है। जो शुरू होकर भी अंत जैसे था। जिसका अंत अलगाव मे निश्चित रहा , लेकिन संसार के सामने तमाम वैवाहिक जीवन की तरह उसकी भी पुष्टि है।
जीवन मे ऐसे ही घटित हो जाता है , एक विवाह भी ! यहीं से प्रेम अपनत्व का मर्म भी समझ आता है कि उसके लिए होठों का आलिंगन प्रेम – अपनत्व का द्योतक है। जिसमे साँसो का आलिंगन स्वयमेव हो जाता है।
इस संसार मे मानव जीवन में विवाह और सेक्स अर्थात संसर्ग जो वास्तव मे मन और आत्मा की अनुभूति से हो तो वास्तविक रूप से मनुष्य को मानसिक सुख और ऊर्जा मिलती है। किन्तु वह ऊर्जा उससे ही मिलती है जो आपकी सजातीय आत्मा सा हो , सजातीय आत्मा सी हो ! तत्व अपनी तरह महसूस हो , वो प्रेयसी हो या पत्नी हो यह आवश्यक नहीं कि पत्नी से आपको ऊर्जा मिले ही या फिर पति से पत्नी को सुखमय ऊर्जा मिले ही। चूंकि विवाह हो जाते हैं।
हाँ जहाँ वास्तव में प्रेम पनप जाए विवाह के बाद वह बात अलग है। पर ऐसा बहुत कम होता है। हाँ जिन्होंने आत्मीय प्रेम महसूस कर विवाह रचाया हो , वह बात अलग है कि उन्होंने जिंदगी मे संसर्ग के वास्तविक सुख को भोगा हो।
संसर्ग का सुख प्रेम मे ही है। जिनमे भावनात्मक लगाव है , अपनत्व है और स्वभाव से सजातीय हैं। प्रेम महसूस होता है। एक खास पल मे एक – दूसरे के समीप आ गए। साँसो की रफ्तार और मानसिक स्वीकृति से समा लिया हो , ऐसे पल में प्रेमियों को संसर्ग का सुख मिलता है। यह आवश्यक नहीं कि विवाह मे संसर्ग का सुख हो , इसलिए उसने पहली रात को वासनापूर्ति की पर होठ से होठ का मिलन ना होना प्रेम ना होने का प्रमाण था। बिन प्रेम का विवाह और सेक्स था वो ! एक जिम्मेदारी और कर्तव्य की पूर्ति। ऐसी भी जिंदगियां होती हैं।