जीवन का नेतृत्व संभाल रहे युवा .

By :- Saurabh Dwivedi

आज का दौर हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रहा है। चारो तरफ जिंदगी जीने की जिजीविषा काम कर रही है और कोरोना – मौत को हराना चाहते हैं। यह मौत इंसानी आत्मबल से हारेगी , किसी भी दवा की अपेक्षा भारत में आत्मबल की अत्यधिक आवश्यकता होगी।

इस आत्मबल को बनाए रखने के लिए हमें एक – दूसरे का साथ देना ही होगा। जो जैसे सक्षम है , हर तरह से जीवन का दीप अखंड प्रज्वलित रखने के लिए दीप में बाती और ईधन डालना ही होगा। वह ईधन तेल , घी या जल के साथ गुलाब का पुष्प भी हो सकता है।

हमें सोशल मीडिया का सदुपयोग भी करना होगा। यहाँ हम बहुतायत अच्छी बातें करें। एक – दूसरे को मानसिक ताकत प्रदान करने के लिए आत्मीय सूक्ष्म स्वरूप से जुड़ सकें। चूंकि भारत में कोरोना से पहले जिंदगियों मे कोरोना वायरस से कम समस्याएं नहीं हैं ?

यह सभी को अहसास होगा कि हमारे देश में रोजगार और व्यवसाय की लंबे समय कैसी और कितनी आदर्श स्थिति रही है। इसके साथ ही अन्य पारिवारिक – सामाजिक समस्याओं तालाब सा ढबढबाता भारत है , जहाँ युवा वर्ग की अलग समस्या है तो बुजुर्गों की जिंदगियों की अलग मानसिक समस्या !

हमारे देश में अलगाव और अकेलेपन की बड़ी व्यापक समस्या है। रिश्तों में आंतरिक अपनापन ना होना भी मूलभूत समस्या है। सामाजिक – पारिवारिक सहयोग के अभाव में प्रतिभाओं की हत्या खूब हुई है। राजनीतिक – सामाजिक कारण से भी भारत में प्रतिभाओं का जबरदस्त हनन हुआ है।

यदि ऐसा सोचा जाए कि हम सिर्फ कोरोना से लड़ रहे हैं , तो यह बड़ी भारी भूल है। हमारी अनेकों मानसिक समस्याए हैं। जैसे कि लाकडाऊन के बाद बची हुई जिंदगियों के सामने पुनः ” शून्य ” से शुरूआत करने की चुनौती।

क्या हम यह विश्वास कर सकते हैं कि सरकार के बल पर और सरकार के भरोसे एक सहज – सरल जिंदगी की शुरूआत कर पाएंगे ? क्या युवा घर – परिवार के भरोसे पुनः व्यवसाय आदि की वैसी शुरूआत कर पाएंगे , जैसे कि लाकडाऊन के पहले की स्थिति रही हो। संभवतः यहाँ हर सवाल का जवाब ” ना ” ही मिलेगा।

जैसे कि जानते हैं कि देश भर में कोरोना से अधिक मृत्यु आत्महत्या की अवश्य हो सकती हैं। आत्महत्या के अलग – अलग कारणों के साथ किसान आत्महत्या का मुद्दा आजादी के बाद से ही लगातार जारी रहा और अब तक के कोरोना मृत्यु के रिकार्ड से आकलन किया जाए तो आत्महत्या के मामलों की अधिकता मिल जाएगी।

यह महामारी है और इसने जिंदगियों को मुफ्त की जेल मुहैया कराई है। अपने घरों मे कैद होकर और एक-दूसरे से दूरी बनाकर जिंदगी बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं , ऊपर से बढ़ते मामलों के साथ अनिश्चितता का अंधकार हर रोज छाने लगता है।

अहसास है कि युवाओं के मन – मस्तिष्क में अनेकों सवाल जन्म ले रहे होंगे ! पहले बचें तो फिर आगे का जीवन संघर्ष समझा जाएगा , यह भी आंतरिक मानसिक संघर्ष अंतर्मन में चल रहा होता है।

जिन युवाओं को स्वयं के साथ देश और समाज की पड़ी है और दूसरी जिंदगियों के बचने की चाहत मन में जिंदा है , उनकी चौतरफा मानसिक समस्या जायज है। बहुत से युवा जीवन – नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने जिंदगी बचाने की ठान रखी है और जिंदगी बचाने के लिए सभी को अंशदान करना ही होगा। तभी हम सभी बच पाएंगे और बचना बस जीवन कहाँ ? जीवन की शुरूआत उमंग से हो और कोरोना वारियर शौर्य का अहसास कर जिंदगी के युद्ध में सामाजिक प्रयास कर सकें , इसके लिए सामाजिक सहयोग राजा हरिश्चंद्र के स्वभाव से मिलना चाहिए।

हमारा एक सबसे बड़ा सामाजिक सहयोग सभी के आत्मबल को ताकत प्रदान करना। जैसे कि अपनों को काॅल और मैसेज कर लें , अपनत्व के शब्द कह कर प्रेम भाव को प्रबल कर दें। ऐसा महसूस हो कि हाँ सबके सहयोग से ना सिर्फ मेरा जीवन सृजन बल्कि सृष्टि का सृजन पुनः सुचारू रूप से हो सकेगा।

इतनी ताकत रहे कि जो लिख रहे हैं ,वो युद्ध में गनमशीन चलाने वाले सैनिक की तरह शब्द गति प्रदान कर आसपास के सभी लोगों को जीवन ऊर्जा महसूस करा सके। हमें हमारा भविष्य अंतिम सांस से पहले उज्ज्वल ही महसूस हो , यह काम सरकार और समाज दोनो का है।

जो लोग सामाजिक जागरण में डटे हुए हैं , कम से कम उनका मनोबल बढ़ाइए। उन्हें महसूस हो कि वह जीवन का युद्ध कोरोना सामरिक क्षेत्र में बहुत अच्छे से लड़ सकते हैं , फिर उनका स्वर्णिम भविष्य सामने है। चूंकि भारत की तमाम राजनीतिक समस्याएं हल नहीं होंगी और फंसी हुई जिंदगियां कोरोना – जाल में और फंस चुकी हैं।

एक बार जिंदगी का अमरत्व प्राप्त करना है अर्थात कोरोना से अमरत्व प्राप्त करना है और इसके लिए हमें जीवन से संपर्क केन्द्र महानगर – नगर , कस्बा और गांव तक मानसिक रूप से स्थापित करना होगा। एक खुशबूदार सुंदर फलदार बागीचे से संसार की कल्पना को साकार करने के लिए मानसिक हृदय के पट खोलकर सभी का स्वागत करना चाहिए।

कोशिश है कि इस दौरान हम अच्छा उदाहरण पेश कर सकें और जिंदगी की जंग आत्मबल से जीत सकें। अहसास होना चाहिए कि इस वक्त हम सभी को एक – दूसरे की जरूरत है।

” सोशल केयर फंड “ कृष्ण धाम ट्रस्ट ( रजि. सं. – 3 /2020 ) हेतु ऐच्छिक मदद प्रदान करें। हम ” गांव पर चर्चा “ और अन्य मदद भी जरूरतमंद को समय – समय पर प्रदान करते हैं। लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से जागरण यात्रा शुरू किए हैं।
[ Saurabh chandra Dwivedi
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