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By :- Saurabh Dwivedi

हाल ही में जनपद चित्रकूट के अंतर्गत एक महिला का शव मिला। उस महिला का भी अंत उसी प्रकार से हुआ जैसे बलात्कार के बाद पीड़ित की हत्या जलाकर अथवा गला घोटकर कर दी जाती है। किसी अपराधी के पास हथियार हुआ तो वह गोली मारकर भी छलनी – छलनी कर देता है। सूचना मिलने के बाद प्रशासन हरकत में आता है और शासन आदेश फरमानी में जुट जाता है।

चित्रकूट का यह मामला भी दिल्ली की सियासी जुबान में पहुंच चुका है तो वहीं हैदराबाद , उन्नाव और चित्रकूट के संदिग्ध मामले की छाया में राजधानी में राज दरबार के सामने आम महिलाएं रेप से आजादी की गुहार लगा रही हैं , जबकि चित्रकूट के मामले में अभी तक बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है।

हाल ही में संविधान दिवस था और नए वर्ष के स्वागत के साथ गणतंत्र दिवस आने वाला है। किन्तु देश के अंदर रेप से आजादी के नारे लग रहे हैं। अब कहा जा रहा है कि बेटों से बेटियों को बचाओ !

ये वही बेटे हैं जो बेटियों के भाई कहलाते हैं। इन्हीं बेटों मे से कोई एक कुंठित मानसिकता का बेटा एक बेटी के साथ दुष्कर्म करता है और घृणित शब्द प्रत्येक आत्मा के लिए मारक हो जाता है , वह है ” बलात्कार “।

जिस शब्द को समाज के सामने प्रकाशित नहीं होना चाहिए। अफसोस है कि अनेक बार हर महीने , हफ्ते और वर्ष में यही शब्द संभवतः सबसे ज्यादा आम जुबान का शृंगार बन रहा है। यह शृंगरित शब्द जुबान के लिए शर्मनाक होने के बावजूद पुनरावृत्ति में महारत हासिल किए है , वजह एक संक्रमित समाज है ! जो इस समाज के अंदर ही पल बढ़ रहा है।

वैसे इस घृणित समस्या का अंत आसपास नजर नहीं आता फिर भी दुरुस्त कानून व्यवस्था से अंकुश लगने की आशा आम जन को होती है। इन समस्याओं में कड़ा कानून ही अंकुश लगा सकता है। साथ ही कानून के रक्षक इस मामले में वाकई संवेदनशील हो जाएं तो उनकी नजरों में अपराधी शायद पहले ही आ जाए। किन्तु यह सच है कि कानून के सामने भी समस्याएं होती हैं , फिर भी इस भयावह सच्चाई को झूठी साबित करने के लिए समाज और कानून को मिलकर कुछ करना होगा।

वैसे यह पूरा प्रकरण सामाजिक क्षरण होने की बड़ी वजह है। जिस ओर समाज अब चिंतन करना भूल चुका है। समाज के कुछ जागरूक लोग संसद और विधानसभा से आशान्वित रहते हैं कि वह इस अपराध का अंत कर दें , पर आत्मा से सवाल हो तो जवाब मिल जाएगा कि नहीं विधायी संस्थाएं सिर्फ कानून पारित कर कार्रवाई की बात कह सकती हैं। यही होता भी है और इसके बावजूद निर्भया के आरोपियों को अब तक फांसी नहीं मिली।

विचार फांसी पर हो तो यह भी समाज पर निर्भर है। जिसका एक वर्ग फांसी के विरोध मे रहता है तो एक वर्ग फांसी का पक्षधर है। वैसे एक बड़ा वर्ग बलात्कार के दरिंदो को फांसी दिए जाने के पक्ष मे है। इसलिये सरकार विचार कर सकती है कि एक बार फांसी देकर अपराधियों को संदेश दिया जाए। वैसे भय सिर्फ जेल जाने का भी बहुत होता है परंतु ऐसा लगता है कि जैसे अपराधी मानसिकता को कोई भय ही ना हो !

इधर सड़क से संसद तक बलात्कार पर चीख पुकार मची हुई है। संसद पर महिला सांसदों का गला रूंध गया। वहीं सबने गुस्सा आम जनता की तरह ही जाहिर किया। उन्होंने भी फांसी देने और आम जनता को सौंप देने की बात की !

सड़क पर बेटे निकल चुके हैं। कुछ युवाओं ने कैंडिल लिया और उस पर आग लगा दी। आग लगी कैंडिल लेकर मार्च करने लगे। इन्हें उम्मीद है कि कैंडिल मार्च से बलात्कार जैसी घटना रूक जाएगी। यह हर बार की पुनरावृत्ति है।

जैसे की चित्रकूट के पहाड़ी कस्बें में ही हिन्दू राष्ट्रवादी युवा वाहिनी के बनैर तले कुछ युवा इकट्ठे हुए। उन्होंने कैंडिल मार्च कर रेप के खिलाफ आवाज दी। इस प्रकार की आवाज उठना आवश्यक है और अंधेरे मे प्रकाश होना भी आवश्यक है। कस्बा पहाड़ी के युवाओं का वही प्रयास है जो हमेशा से होता आया है। इसमे नया कुछ वैसे ही नहीं है जैसे हर दुष्कर्म की घटना के बाद एक और घटना घटित हो जाती है।

युवाओं के इस प्रयास के लिए साधुवाद होना चाहिए। चूंकि घर के बड़े – बुजुर्ग मुट्ठी बांधकर गर्दन झुकाकर शांत चित बैठे हुए हैं तो कम से कम युवाओं की आवाज का महत्व है। किन्तु यह युवा भी समझें कि भविष्य में किसी राह चलती बहन पर गंदी निगाह नहीं रखेंगे एवं गंदी टिप्पणी नहीं करेंगे , युवाओं को इस हेतु शपथ लेनी चाहिए ताकि कैंडिल मार्च की सफलता का व्यक्तिगत जीवन में मृत्यु तक जश्न मना सकें। चूंकि यह व्यक्तिगत जिम्मेदारी है और व्यक्तिगत सुधार हो गया तो समझिए कि समाज का स्वरूप बदल जाएगा और बलात्कार बंद हो जाएंगे !

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