अंतर्मन संवाद की शंका !
महाराज जी के हस्त कमल मे सुन्दरकाण्ड पहुंच गई और महाराज जी पाठ करने लगे तो पृष्ठ दर पृष्ठ पढ़ते जा रहे थे।
इधर मेरे मन मे बाईक चोरी की घटना कि याद उभर आई कि अभी बाईक सड़क किनारे खड़ी है , एक बार सामने से चोरी हो चुकी थी तो डर लग रहा था।
मैं मन ही मन चिंतन करने लगा कि महाराज जी अगर पूरी सुन्दरकाण्ड पढ़े तो बहुत समय लग जाएगा। इतने समय मे बाईक सुरक्षित रहेगी या नही !
मन मे सवाल का जवाब आया कि जब मैं हूं तो क्यों चिंता कर रहा है ? सच है कि जब रक्षक स्वयं विधाता हों तो क्यों चिंता करना लेकिन एक बार घटना पल भर मे घट चुकी थी !
कुछ ही देर मे महाराज जी ने सुन्दरकाण्ड का पाठ करना बंद कर दिया और आशीर्वाद देते हुए धन्यवाद बोले…..
चूंकि प्रेमदास जी महाराज ज्यादा बोलते नही हैं इसलिए धन्यवाद क्यों और किसलिए पूछा नही जा सकता था , सिर्फ और सिर्फ समझने की बात है।
वे मुस्कुराए और मुझे ऊर्जा का आभास हुआ बाद मे विवेक और मैंने साष्टांग प्रणाम किया और चल पड़े बाईक की ओर…..
दिलचस्प घटना ये है कि मेरी बाईक के पास मे ही एयरपोर्ट मे लगी हुई पुलिस का एक जवान बैठा हुआ था। मैने विवेक से कहा कि देखो रक्षक यहाँ बैठे हैं लेकिन मैं बाईक की चिंता कर रहा था !
फिर मैने मन की वो बात कही कि मन ही मन जवाब मिल रहा था कि जब मैं हूं तो चिंता क्यों कर रहा है ? सच मे जब हनुमान जी ऐसा कह दें तो अतीत याद आने पर भी वर्तमान और भविष्य की चिंता नही करनी चाहिए।
पम्पापुर मे आज भी साक्षात हनुमान जी की जीवंतता का आभास होता है तो यकीनन यह अविस्मरणीय पल तन मन और मस्तिष्क मे सदा के लिए जीवंत हो गए।
हनुमंत लाल की जय / जय श्रीराम
” written by writer & Journalist saurabh dwivedi “