By :- Ashok tiwari
जब से मानव सभ्यता का विकास हुआ है तब से हम पानी को जानते व समझते आए हैं ऐसा माना जाता है कि मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है तथा पला-बढ़ा विकसित हुआ है। इस तथ्य से जल व नदियों की महत्ता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। विश्व के अधिकतर प्रमुख शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं क्योंकि नदियों से जीवन दायक जल तो मिलता ही है साथ ही यात्रा मार्ग तथा आजीविका के साधन भी उपलब्ध होते हैं पर अब इंसानी विकास की आँधी ने प्राकृतिक जलस्रोतों व नदियों के अस्तित्व को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है। इसी स्थिति में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के चित्रकूट में बहने वाली मन्दाकिनी नदी अब संकटमय स्थिति में नजर आ रही है। चित्रकूट से 15 किमी. दूर सती अनुसुइया से निकलने वाली यह नदी चित्रकूट, कर्वी से होते हुए बाँदा के राजापुर गाँव के पास यमुना में विलय हो जाती है। लगभग इस 50 किमी. के सफर में मन्दाकिनी कहीं नाले में तब्दील दिखाई देती है तो कहीं बिल्कुल सूखी हुई नजर आती है। पहले यह नदी सदानीरा रही है और इसके 2003 की बाढ़ के रौद्र रूप के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए हैं पर अब यह नदी नाले के रूप में सिकुड़ चुकी है। पूरे चित्रकट का लगभग 70% पीने का पानी इसी सप्लाई होता है। पर इसकी हालत को देखते हुए अब यह कितने दिन तक यह लोंगों की प्यास बुझाएगी कहा नहीं जा सकता। दिनों-दिन नदी के कैचमेंट एरिया में नयी-नयी इमारतें बनती नजर आती हैं जिससे इसके बहाव में तो फर्क आता ही है साथ ही नदी के पारिस्थितिकी में भी बदलाव आ रहा है और बड़ी बात यह है कि यह सब मानव स्वार्थ का ही उदाहरण है।
नदी का पौराणिक महत्त्व :-
मन्दाकिनी को लोग पवित्र नदी का दर्जा देते हैं साथ ही श्रद्धा और भक्ति की मिसाल भी मानी जाती है। पौराणिक किवदन्ती के अनुसार ऋषि अत्री को बहुत प्यास लगी थी तो उनकी पत्नी माता अनुसुइया के प्रयासों से इस नदी का उदगार किया गया। चित्रकूट से लगभग 15 किमी़ दूर सती अनुसुइया मन्दिर के पास ही इसका उदगम केंद्र माना जाता है जोकि पहाड़ो से निकली स्प्रिंग्स (झरनों) के पानी से निकलती है। आगे लगातार जंगल के अन्य स्प्रिंग्स का मिलने वाला पानी इसके बहाव को तय करता है। मान्यता के अनुसार भगवान राम, सीता और लक्ष्मण अपने जंगल प्रवास के दौरान यहीं चित्रकूट में ही मन्दाकिनी के तट पर रहे थे। स्वामी तुलसीदास जी ने यहीं मन्दाकिनी के घाट पर रहते हुए रामचरित मानस की रचना की। श्रद्धालु दूर-दूर से भक्ति-भाव से यहाँ आते हैं और मन्दाकिनी में स्नान करने के लिये आते हैं।
जीविका की साधन :-
चित्रकूट एक पर्यटन शहर है और चित्रकूट की पहचान पौराणिक होने के साथ-साथ मन्दाकिनी नदी से ही जुड़ी है। जो भी चित्रकूट आता है वह मन्दाकिनी की सैर जरूर करता है। जिससे मल्लाहों व नाविकों की रोजी-रोटी चलती है। पर्यटन केंद्र होने के कारण इससे रोजगार में भारी इजाफा होता है और पर्यटन यहाँ के लोगों की आय का प्रमुख जरिया है।
शहर की गन्दगी को ढोती मन्दाकिनी :-
पूरा शहर जिस नदी का पानी पीता है जिसे पूजता है, उसी नदी में अपनी सारी गन्दगी को भी उड़ेलता है। राज और समाज को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है कि जो जीवनदायिनी है उसे हम तिल-तिल मार रहे हैं, उसके गर्भ में लगातार जहर डाल रहे हैं। समूचे चित्रकूट के घरों व सीवेज का गन्दा पानी नाली-नालों के माध्यम से मन्दाकिनी में मिलता है जिससे नदी के पानी की गुणवत्ता में तेजी से बदलाव आ रहे हैं और यह नदी अब एक नाले में तब्दील होती जा रही है। इस बारे में सरकार ने भी चुप्पी साधी हुई है जिसके पास न ही इसे रोकने के कोई ठोस इंतजाम हैं और न ही नदी को उसके पुराने स्वरूप में लाने के। रामघाट तक आते-आते मन्दाकिनी एक नाले जैसी देने लगी है जो आगे चलकर कर्वी के पास और सिकुड़ जाती है जिसमें ढेरों गन्दगियाँ समायी हुई हैं।
चित्रकूट एक मध्यम बड़ा शहर है जिसकी अपनी पानी की एक जरूरत है तथा गन्दे जल-मल निकासी की भी एक आवश्यकता है। समूचे चित्रकूट का जल-मल नालों के माध्यम से आकर मन्दाकिनी में मिलता है और उसे दूषित करता है। जिस तेजी से मन्दाकिनी का स्वरूप बिगड़ता जा रहा है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि सरकारों ने न तो पहले कोई काम किया न अब उसके पास कोई ठोस योजना है जिससे मन्दाकिनी में मल-जल को सीधे मिलने से रोका जा सके। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी अभी चित्रकूट को पूर्ण रूप से नहीं मिल सका है जिससे कुछ न कुछ गन्दगी में लगाम लग सके। पौराणिक व धार्मिक मान्यताओं के चलते चित्रकूट में आय दिन मेले लगते रहते हैं व हर अमावश्या व पूर्णिमा को यहाँ भारी भीड़ का जमावड़ा दिखाई पड़ता है। जिससे यहाँ गन्दगी का असर दोगुना बढ़ जाता है। लोगों की भक्ति का असर मन्दाकिनी के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट दर्ज करता है। शहर को जीवन देने व शहर की गतिविधियों को सक्रिय करने वाली मन्दाकिनी की अपनी सक्रियता पर संदेह होने लगा है। साल के बारह महीने वाली मन्दाकिनी, कर्वी के आगे निकलते ही गर्मियों के महीनों में सूखी सी नजर आती है।
कैचमेंट एरिया में बसाहट :-
हर नदी का अपना कैचमेंट एरिया होता है जिससे बारिश का पानी बहकर नदी में आता है और नदी बहने के साथ भूजल को भी रीचार्ज करती है। मन्दाकिनी सती अनुसुइया से निकलकर राजापुर गाँव के पास यमुना में मिलती है। इसका अधिकतम कैचमेंट एरिया पहाड़ी है। पर पहले जहाँ इसके आसपास पहाड़ियाँ थीं वहाँ बड़ी-बड़ी इमारतें, होटल व घर बने नजर आते हैं जिससे इसका कैचमेंट एरिया प्रभावित हुआ है। इसी वजह से इसके बेस फ्लो में भी गिरावट दर्ज हुई है साथ ही चित्रकूट का भूजल स्तर भी गिरा है। पहले जहाँ से पानी बहकर आता था अब वहाँ इमारतें बन जाने से या कहें विकास हो जाने से नदी का विनाश हो रहा है जिसका अन्दाजा राज और समाज कोई नहीं लगा पा रहा है।
नदी तो बचानी ही होगी :-
जैसा कि हम मानते हैं नदियों के किनारे ही हमारी सभ्यताओं उदय तथा विकास हुआ है तो अगर नदियों पर संकट आता है तो यह संपूर्ण सभ्यताओं पर भी एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। अगर कोई नदी मृत या खत्म होती है तो वह केवल एक नदी नहीं मरती, मरता है उसके साथ एक कल्चर, एक सभ्यता, एक फ्लोरा और फौना का संसार..। इसलिये मन्दाकिनी को हर हाल में बचाना होगा क्योंकि मन्दाकिनी नहीं रही तो चित्रकूट का अस्तित्व भी नहीं रहेगा।
मन्दाकिनी को बचाने का संकल्प किसी अकेले का नहीं होना चाहिये यह हम सबकी जिम्मेवारी है जिसे समाज और सत्ता दोनों को समझनी चाहिए। काल के ग्रास में खड़ी मन्दाकिनी को उसके पुरातन स्परूप में वापस लाना होगा जिसके लिये ठोस योजना के साथ काम करने की जरूरत है।
( लेखक चित्रकूट योग संस्थान में योग प्रशिक्षक हैं तथा पर्यावरण शोधार्थी हैं )