By :- Saurabh Dwivedi
एक दोस्त , जिसने इनबॉक्स मे कहा कि भइया आपकी किताब मिल गई। अभी बहुत दिन नहीं हुए इनसे जुड़े हुए , फेसबुक मित्रता किए हुए !
लगभग महीने भर की ही बात होगी , जब शुभम जी को रिक्वेस्ट भेजी थी। इतने दिनों की फेसबुक मित्रता से उम्मीद नहीं की जा सकती थी , कि वे विश्व पुस्तक मेला मे पहुंच कर ना सिर्फ किताब लेंगे बल्कि स्नेह और उमंग से सेल्फी लेकर मैसेंजर पर सुखद – उत्साही संदेश देंगे।
यह संदेश आते ही मेरा मन खिल उठा। भइया शब्द बड़ा मीठा लगा , पल भर को लगा मानो किसी जन्म का बिछड़ा हुआ भाई मिल गया। तब से यह संदेश मेरे मन मे रमता रहा और रग रग में प्रवाहित होता रहा।
मुझे बस इनकी मुस्कान से मुहब्बत महसूस हुई। स्वयं को धन्य महसूस किया और अहसास हुआ कि फेसबुक से कम दिनों की आभासी मित्रता से जीवन भर की खुशी मिल जाया करती है।
यह क्या कम खुशी है। सोशल काॅकटेल आई और शुभम ने हाथों मे लेकर ऊर्जा तरंगित कर दी। एक युवा मन के हाथों मे सोशल काॅकटेल का होना जीवन और सियासत के क्षेत्र मे बदलाव लाने की शुरूआत है।
शुभम स्वयं बड़े वैचारिक हैं , ऐसा मैंने उनकी फेसबुक पोस्ट से महसूस किया है। आपका कार्यक्षेत्र भी समाज के लिए है। एक युवा जब अध्ययन और वास्तविक दर्शन कराने के पेशेवर क्षेत्र मे हो तो भी वह देशभक्ति का नागरिक कर्तव्य निभा रहा होता है। जो अधिकार मांगने के साथ देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाने में सजग है। उसकी चेतना ही राष्ट्र और समाज के हित मे है।
मैं ऐसी अनूठी अद्वितीय मित्रता अहसास कर ऊर्जावान हो जाता हूँ। अहसास है कि सोशल काॅकटेल और आप सभी के साथ की यात्रा जीवन की एक सुखद यात्रा होगी। किताब के संग मेरे भी लिखने – पढ़ने को नया जीवन मिल सकेगा।
जब कोई किताब मूल्य चुकता कर लेता है और पढ़कर सुझाव व संदेश देता है तब संजीवनी मिल जाया करती है , मुझे ! जब – जब मुझे शक्ति लगने से मूर्छा आएगी विश्वास है कि ऐसे ही कोई शुभम जैसी मित्रता , रिश्ता और आभासी संसार की सामान्य मित्रता से सोशल काॅकटेल के संग वाली तस्वीर सोशल मीडिया पर मेरी संजीवनी बनकर चेतना जागृत कर देगी।
मैं खुश होऊंगा , अधिक पढूंगा और अधिक उत्तम लिखने / करने की कोशिश करूंगा।
( सोशल काॅकटेल फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है , एक बार अवश्य पढ़ें और जिंदगी की राह मिल जाए तो अवगत कराएं )