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गांव पर चर्चा

@Saurabh Dwivedi

लाकडाऊन मे मिली छूट के उपरांत ग्राम नोनार में सुबह के आठ बजकर अठ्ठावन मिनट पर बाइक पर सवार फेरी वाला देखा गया। हमारे समाज मे एक ऐसा वर्ग है जिसका जीवन यापन फेरी लगाकर संभव हो पाता है। पहले लोग साइकिल से फेरी लगाते थे तो वह स्वास्थ्य के लिए ठीक था , प्रदूषण की दृष्टि से भी ठीक था।

लेकिन अब बहुत से फेरी वाले मोटर साइकिल से फेरी लगाते हैं। कोरोना वायरस के समय में मोटर साइकिल और फेरी का बड़ा संबंध है। ये लोग एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंचते हैं। इनका सीधा संपर्क निम्न आय वर्ग मे होता है और गांव के लगभग प्रत्येक घर मे जरूरत के सामान के लिए महिलाएं इनसे खरीदारी अमूमन कर लेती हैं। ऐसे में संक्रमण पूरी तरह से समाप्त होने के पूर्व बड़ी रफ्तार से संक्रमण फैलने के खतरे की बड़ी संभावना नजर आने लगती है।

जनपद चित्रकूट के गांव मे नोनार की इस तस्वीर से अंदाजा लगाया जा सकता है। साफ नजर आ रहा है कि फेरी वाले ने गले पर पड़ी हुई साफी चेहरे पर नहीं बांध रखी है , मास्क भी नहीं लगा हुआ है। यहाँ तक की मास्क भी इनके पास मौजूद नहीं था।

हमने इनसे जब सवाल किया कि आपके पास सैनेटाइजर है ? तो इन्होंने कहा कि ‘ हाँ ‘ है पर लेकर नहीं आया !

हमारा दूसरा सवाल था कि सैनेटाइजर कैसा होता है ? इनका जवाब था कि इतना बड़ा होता है ! एक हथेली भर भरकर इशारा किए कि इतना बड़ा होता है !

अब ऐसे जवाब सुनकर आप मुस्कुरा सकते हैं , किन्तु यह चिंता की बात है तो हमने इनसे आगे भी सवाल किए। वह सवाल था कि सैनेटाइजर लगाते ही कैसा महसूस होता है ?

इन्होंने जवाब दिया कि मैं अनपढ़ हूँ। मैंने पुनः कहा कि आदमी चाहे अनपढ़ हो या पढ़ा लिखा सब में महसूस करने की क्षमता जन्म के साथ ही होती है। जैसे आप ठंडा पानी हाथ में डालो तो उसकी तासीर महसूस हो जाएगी , सामान्य भाषा मे मैने कहा कि गर्म पानी हथेली में डालोगे तो गर्म महसूस होगा और ठंडा डालोगे तो ठंडा महसूस होगा फिर सैनेटाइजर लगाते ही कुछ ना कुछ महसूस होता है , वह बताइए आप ?

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अब इनके पास कोई जवाब नहीं था। तो इन्होंने कहा कि मैं गरीब आदमी हूँ। ऐसे सुनते ही मैंने कहा कि बेशक गरीब हो , पर कम से कम पचास हजार की बाइक में फेरी लगा रहे हो और दिन भर मे कुछ ना कुछ कमाते होगे तो पचास – सौ ₹ का ” सौ एमएल ” का सेनैटाइजर ले सकते थे।

एक सैनेटाइजर से आप संक्रमण से बचेंगे और जिस गांव के ग्राहक को चद्दर और साड़ी वगैरा बेचोगे उसे भी संक्रमण से बचाओगे।

मैंने इनसे पुनः कहा कि हमारी मान्यता में ग्राहक को देवता कहते हैं। इन्होंने भी मान लिया कि हाँ ग्राहक को देवता कहते हैं। फिर मैंने कहा कि अपने देवता को वायरस से संक्रमित क्यों करना चाहोगे ? कोई अपने देवता को वायरस से संक्रमित क्यों करेगा ? इन्होंने कहा कि हाँ आप सही कह रहे हैं !

मैंने गांव पर चर्चा मे भ्रमण के दौरान बेशक सही कहा है। लेकिन पालन करना और पालन करवाना शासन – प्रशासन की जिम्मेदारी है। गांव में पुनः प्रधान बनने का सपना पाले हुए लोगों की जिम्मेदारी है और जो लोग प्रधान बनने की सोच रहे हैं , यदि इतने ही उम्मीद से बने हुए अघोषित प्रत्याशी वायरस के खिलाफ चौकीदार बन जाएं और बाहरी गतिविधियों पर सटीक नजर रखी जाए तो वायरस के खिलाफ हमारी जंग बड़ी तीव्र रहेगी व वायरस अपनी मौत मरने को मजबूर हो सकता है। फिर शायद जनता आपकी उम्मीदवारी पर कुछ विचार करने भी लगे।

जीवन को बचाने का यह बड़ा सरल सा अवसर है। प्रशासन को अभी भी सोचना चाहिए कि गांव के प्रधानों की जागरूकता बैठक कर कड़े निर्देश दिए जाएं ताकि फेरी वालों का व्यापार चल सके लेकिन वह मास्क और सैनेटाइजर का प्रयोग लगातार करें व लेन – देन के समय करवाएं।

जिस प्रकार से अन्ना पशु की तरह फेरी वाले गांव मे घूम रहे हैं। उससे गांव की निगरानी समिति पर भी बड़े गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं ! किन्तु शासन – प्रशासन से इतर गांव के युवाओं व जिम्मेदार नागरिकों को प्रयास लगातार करना चाहिए , जिससे उनका गांव संक्रमण मुक्त रह सके।

इस जंग को इटली और अमेरिका जैसी बर्बादी बनने से पूर्व हमें सजगता से जीतना ही होगा। भारत के गांव कोरोना मुक्त रहें , इसके लिए प्रयास में तनिक सी चूक घातक साबित हो सकती है। इसलिए गांव को लगातार जागरूक करने की जरूरत है ताकि फेरी वाले से लेकर प्रत्येक नागरिक नियमों का पालन करे।

इस घटना ने यह साबित किया है कि खतरा अभी टला नहीं है और सच है कि ग्रामीण स्तर में साबुन लगाकर हाथ धुलने से लेकर सैनेटाइजर और मास्क की उपयोगिता को गंभीरता से नहीं लिया गया है। यह भी सच है कि इनके मोबाइल में आरोग्य सेतु एप नहीं था , इनको इस एप की खास जानकारी भी नहीं थी। यदि कहीं से भी संक्रमण के संपर्क मे आते हैं तो एक ही दिन – रात मे संक्रमण बाइक की रफ्तार से फैल जाएगा। अतः सावधानी बरतने के लिए जनपद शासन – प्रशासन के जिम्मेदारों को सघनता से प्रयास करना चाहिए।

कृपया ” सोशल केयर फंड ” में 100, 200, 500 और 1000 ₹ तक ऐच्छिक राशि का सहयोग कर शोध परक लेखन / पत्रकारिता के लिए दान करें।
(Saurabh chandra Dwivedi
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karwi Chitrakoot )

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