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By – Saurabh Dwivedi

आप कितने भी बड़े पद पर हो जाओ , आप जितने भी अमीर हो जाओ। पेज थ्री पार्टी में जाओ , आसपास मनोरंजन के समस्त साधन उपलब्ध हों और अमीरी के संसाधनों से सराबोर जिंदगी हो फिर भी घटनाएं सिद्ध करती हैं कि एक दिन आदमी थक हार , हताश हो जिंदगी खत्म कर लेता है।

बाहर की चकाचौंध दुनिया , लोगों की दिखती हाई प्रोफाइल लाइफ , मानों इनकी अपनी जिंदगी में कहीं कोई कमी रह ही नहीं गई। भारत में आइएएस एंड आईपीएस जैसी नौकरी किसी स्वर्ग की दुनिया से कम नहीं मानी जाती। एक युवा अगर आईएएस बन जाए , आईपीएस हो जाए तो माता-पिता और परिजनों की सारी मुरादें पूरी होने तथा ईश्वर के अस्तित्व की परिकल्पना का सिद्ध होना होता है अथवा ईश्वर ना महसूस हों तो कम से कम एक ऐसा जीवन साकार हो जाता है कि बस अब कमी किस बात की ? सारे सुख , ऐश – आराम तलुवों पर हाजिर रहेंगे मुलाजिम की तरह।

ऐसे ही बड़ा सा व्यापार और पीढ़ियों की संपदा होती है तो नौकरी भी मात खा जाती है। सामान्य सा जीवन है ही किसलिए ? इस दुनिया में हर सुख सुविधा भोगने के लिए , प्रकृति प्रदत्त दैहिक सुख भोगने के लिए ! एक सामान्य जीवन इस तरह ही व्यतीत किए जाने की परिकल्पना में समय गुजारते हुए हर संघर्ष करने को भी तैयार रहता है।

कुछ जिंदगियों को सुख – सुविधा उपहार में मिल जाती है। जन्मजात सुख भोगने के अधिकारी होते हैं। उनके इर्द-गिर्द बचपन से ही सारी संपन्नता नजर आती है।

फिर भी एक दिन किसी व्यक्ति के जीवन में ऐसा आता है कि वह आत्महत्या कर लेता है ? या प्रयत्न करता है और बच जाता है , जो बच गया वो जीवन को समझ जाता है या यूं कहें वो पुनर्जन्म प्राप्त कर लेता है। यहीं से आत्मज्ञान की यात्रा शुरू होती है। संसार से मोह खत्म हो समझ में वृद्धि की संभावना हो जाती है या यूं कहें कि जीवन रूपांतरण हो जाता है।

जिसके लिए कोई सोचता नहीं और पता चलता है कि अरे ये आत्महत्या कर लिया ? जिसके कंधे पर स्टार हैं , वो भी आत्महत्या कर लिया ? जो जिले का सबसे बड़ा मालिक है , वह भी आत्महत्या कर चुका है। इतिहास में बड़ा सा आंदोलन खड़ा कर देने वाला व्यक्ति भी आत्महत्या कर चुका है। कोई नक्सली था , वह भी !

असल में धन की संपन्नता समस्त सुखों का कारक होती तो कम से कम अमीर लोगों की आत्महत्या सुनने में नहीं आती। किन्तु जीवन में धन संसाधन तो है पर जीवन की संपूर्णता नहीं है।

जिंदगी को मन और आत्मा का सुख चाहिए और हमारे घर – परिवार व रिश्तों में व्यापारी भावना प्रबल हो चुकी है , साथ ही कुत्सित स्वार्थ ने जगह घेर रखी है। हम रक्त वाले एक गर्भ से जन्में रिश्तों में भी आत्मीय सुख नहीं महसूस कर पा रहे हैं। अपवाद को छोड़कर।

बहुत सारा खेल मन का है। एक गर्भ से जन्म ले सकते हैं पर मन एक जैसा हो , यह आवश्यक नहीं है। एक परिवार के अंदर भाई – बहन के अलग अलग प्रकृति के मन , पिता – पुत्र के बीच मन की प्रकृति से जमीन आसमान का अंतर और रिश्तेदारी तो दहेज ले – देकर बनाई जाती है।

मन अगर सजातीय नहीं है , फिर भी रिश्तों में मन से जुड़ाव और समझ जरूरी है। पल भर में मन की वजह से चेहरे के भाव बदल जाते हैं और जिंदगी की समझ में अंतर महसूस होने लगता है। सर्वप्रथम जरूरी है कि रक्त और गर्भ के रिश्तों में भी मन की समझ हो , जोकि भारत में बहुत कम सोचा गया और शोध भी नहीं हुआ। हमारे यहाँ से ज्यादा विदेशी धरती में मन पर शोध हुआ है।

मन अगर अपनत्व , प्रेम के सुख से अमीर नहीं है , तो खतरा है मतलब जिंदगी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। जीवन में कोई एक शख्स भी आत्मीय सुख महसूस कराता हो तो यकीनन गरीबी और अंधकार के समय भी जीवन जीने की चाह बढ़ती चली जाती है और मौत का ख्याल भी नहीं आता। कितनी भी संपन्नता हो , आप मन बहला सकते हैं और जीने की कोशिश कर सकते हैं , पर यह कोशिश कब तक ?

यदि महसूस हो गया कि अरे कोई समझने वाला नहीं तो जिस तरह से खुले आसमान में रखा हुआ दीपक तेज हवा से बुझ जाता है , लाख उसमें बत्ती और घी की मात्रा अधिक हो और जलना चाहे पर वह बुझ जाता है अंधकार कायम हो जाता है। ऐसे ही जीवन खुले आसमान के नीचे रखे दीपक की तरह है।

आईपीएस सुरेन्द्र दास की आत्महत्या के पीछे भी मन का रहस्य है। यूं तो वर्दी और स्टार दिख रहा है पर मन के स्टार कमजोर थे और मैं समझ नहीं सकता कि मामला सिर्फ पत्नी द्वारा मांस खा लेने भर का हो या फिर हो भी सकता है , क्योंकि पल भर में संभल नहीं सके तो जिंदगी का खेल फाऊल होकर खत्म हो जाता है।

जीवन प्रदर्शन से अधिक दर्शन है और आडंबर व दकियानूसी से परे मन – दर्शन को महसूस करना होगा। उस सुख को महसूस कर जीवन को समझ सकते हैं। जीवन का लक्ष्य भी आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है , सबका अपना अस्तित्व है। इसलिये जीवन के अस्तित्व को महसूस करना चाहिए और रिश्तों में मन का संसर्ग होना चाहिए। अन्यथा हम जिंदगी तो जीते ही हैं और यूं ही एक दिन चले जाना है , ऐसे या वैसे ! फिर भी कोशिश करें कि आत्मज्ञान प्राप्त हो जाए।

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