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सुनो
तुम कहानी बन जाती
कब का ” द इंड ” हो जाता
हर कहानी की तरह
इस कहानी का भी
अंत हो जाता

तुम कविता हो
इसलिये अपरिमित हो
एहसास के अंकुरण में
धधकते सीने से
शब्द मय हो
रच जाती हो

ताउम्र
साँस दर साँस
रचती जाओगी
इन्हीं एहसास से
आत्मीय प्रेम को
जीता रहूंगा
चूंकि तुम कविता हो

अगर होती कहानी
तुम्हारे अंत के साथ
कोई करता समीक्षा
चंद रोज के चर्चे के साथ
पन्नों में विराजमान रहती
अपने अंतिम हश्र के साथ

पर तुम कविता हो
साँसो से उपजती हो
रची जाती हो
आंसुओं से बहती हो
सीने में अंगार बनती हो
हृदय में अपनेपन से
विराजमान हो
क्योंकि तुम कविता हो
कविता होना
खुशकिस्मत होना है कि नहीं ?

अब तुम ही बता दो !

तुम्हारा ” सखा ”

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