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By :- Saurabh Dwivedi

मैं
सूक्ष्मता से
महसूस करता हूँ

वो सबकुछ
जो देखता सुनता हूँ
आत्मविश्लेण करता हूँ

तुमसे
तुम्हारे अहसासों से
वरदान मिला कि
सूक्ष्म विश्लेषण करने की
क्षमता का जन्म हो जाना

हाँ यही है
आत्मीय प्रेम
जिसको मैं
इसी बहाने
बयां किया करता हूँ

प्रेम जब
अपने शीर्षस्थ स्तर पर
पहुंच जाता है
वहीं से मीलो की दूरी
समग्रता से समीप महसूस होती है

ऐसे ही प्रेम मे
हो जाना होता है
” अर्द्धनारीश्वर ” ।

तुम्हारा ” सखा “

( जिंदगी में प्रेम सर्वोपरि सुख है , प्रेम के चरम सुख को महसूस कर शब्द बह पड़ते हैं। हृदय की धमनियों से डिजिटल होते शब्द प्रेम पत्र का स्वरूप धारण कर आत्मीय प्रेम तक संदेश पहुंचाने बेताबी से हवा मे मिश्रित हो अनंत तक यात्रा करते हैं , ऐसा ही कुछ तुम्हारा सखा )

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