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By :- Saurabh Dwivedi

सड़क से सभी गुजरते हैं पर किसी इंसानियत के जिम्मेदार शख्सियत ने कहा कि गुजरने वालों की संख्या लाकडाऊन के दौरान भी खूब है , पर बात नजर की है ! जिस नजर में मानवता होती है , वही गरीब – मजबूर और जरूरतमंद की भूख को महसूस कर सकती है।

उनकी इस बात से ही मैं अपनी बात को आगे बढ़ा रहा हूँ। मैं भंडारे के आयोजन से वापस घर की ओर आ रहा था। यह भंडारा कांग्रेस नेता रजनीश पाण्डेय ने मानवता की सेवा हेतु शुरू किया है। चौदह अप्रैल तक लाकडाऊन में गरीब – मजबूर परिवार तक भोजन पहुंचाने के लिए भंडारे का आयोजन। भंडारा इसलिये कि सभी को प्रसाद स्वरूप भोजन मिलेगा।

सेधना बाबा के हनुमानजी में पूड़ी – सब्जी समर्पित युवाओं द्वारा बनाया जाता है और वही प्रसाद बांटने का कार्य करते हैं। मुझे भी प्रसाद मिला और मैं घर की ओर चल पड़ा।

यह महज इत्तेफाक था या परमात्मा की परीक्षा। मेरे हाथ में दो लंच पैकेट थे और मेरे सामने से यह भटकता हुआ इंसान गुजर रहा था। मैंने मन की गहराई से इसकी ओर देखा , फिर मेरे मन मे आया कि एक बार भंडारे के आयोजक रजनीश पाण्डेय जी से इजाजत ले लूं ,  चूंकि वह प्रसाद मुझे मिला था।

मैंने उनसे मोबाइल द्वारा बात की और इजाजत मिलने पर इस अनजान शख्स के पास पहुंचा। जैसे ही उसे कहा कि खाना खाओगे ? उसका उत्साह देखते बन रहा था , जैसे कि उसमे नई जान आ गई हो।

पूड़ी – सब्जी देने के साथ ही वह आदेश देने की तरह बोल पड़ा कि पानी ? पानी दो ? खाली बोतल थी। मैंने आसपास देखा तो कहीं कोई पानी का साधन दिख नहीं रहा था।

आसपास कुछ एक घर दिख रहे थे। सामने से एक घर दिखा तो मेरी उम्मीद जगी कि यहाँ से पानी मिल जाएगा। उम्मीद अधिक तब प्रबल हुई , जब एक बुजुर्ग बाहर छांव मे लेटे दिखे।

मैंने उनसे पानी देने का आग्रह किया और इस व्यक्ति की मजबूरी बताई। उन्होंने मुझे जवाब दिया कि आसपास बहुत से हैंडपंप लगे हैं। उसे पानी खूब मिल जाएगा अर्थात वो घर से पानी देेने को मना कर चुके थे।

मैंने आसपास नजर दौड़ाई तो दूर एक हैंडपंप दिख गया। इत्तेफाक से एक युवा पैदल चले आ रहे थे। मैंने उनसे आग्रह किया कि पानी दे ला सकते हैं ? उन्होंने मेरे आग्रह को स्वीकार किया। इस तरह इस भूखे व्यक्ति की भूख शांत करने का सौभाग्य मिला।

यही जीवन है कि हमें सेवा कार्य इत्तेफाक से मिल जाता है या फिर परमात्मा की कोई परीक्षा रही हो कि इसके पास खाना है और समय ने मुलाकात इसलिये कराई हो कि देखते हैं कि यह उसे फूड पैकेट देता है कि नहीं ?

यही सौभाग्य है कि प्रसाद स्वरूप भोजन राष्ट्रीय आपदा के समय एक मजबूर व्यक्ति को देने का अवसर मिला। जिंदगी में सेवा कार्य से बड़ा सुख कहीं और नहीं है। वीरान सड़क में वह भूखा चला जा रहा था , उसका रखवाला ऊपर वाला ही था और मैं समय व इत्तेफाक से भोजन लिए हुए पहुंच गया , यह परमात्मा की परीक्षा और इच्छा ही थी। कोरोना संकट के समय ऐसी सेवा करना मानवता की सेवा करना है , जो भविष्य में हमेशा जारी रहेगी।

गांव की सोच राष्ट्र के साथ जोड़ने का कार्य.

आपको भी यदि कोई भूखा नजर आए तो उसकी मदद अवश्य करें और समाज को जागरूक रखने के लिए चेतना की यात्रा जारी रहनी चाहिए। अब सृष्टि में सृजन का कार्य रूकना नहीं चाहिए , तभी जिंदगी जिंदाबाद कही जा सकेगी।

” सोशल केयर फंड ” कृष्ण धाम ट्रस्ट ( रजि. सं. – 3 /2020 ) हेतु ऐच्छिक मदद प्रदान करें। हम ” गांव पर चर्चा ” और अन्य मदद भी जरूरतमंद को समय – समय पर प्रदान करते हैं। लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से जागरण यात्रा शुरू किए हैं।
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