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लिखने की भूख कहूं ? या प्यास ? प्रेम लिखने की हूक उठती है तो तुम और तुम्हारी तस्वीर जेहन मे उभर आती है। दिल मे धड़क जाती हो चूड़ियों की खन खन कानों मे गूंज जाती है और होठो का रस स्याही बन जाता है , कोरे कागज पर कोरा इश्क लिखना शुरू करता हूं !

जैसे पीठ है तुम्हारी मेरे लिए कोरा कागज उस पर एक शब्द लिखता हूं तो तुम में प्रेम का अहसास  भावनाओं की लहर की तरह उठने लगता है जैसे जैसे तुम इश्क मे दमकती हो जैसे जैसे तुम्हारी आह्ह सुनता हूं तो और अधिक महसूस कर जी करता है कि लिखूं और लिखूं अंत तक उतर कर कि सिहरन पैदा हो तुम मे हर इक कविता पढ़कर और इश्क के खत पढ़कर……

मेरी एक उम्मीद तुम हो कि मेरे हर अहसास को जज्ब कर लोगी तुम मुझे संजो लोगी चूंकि तुम साहित्यिक प्रेम को जी सकती हो चूंकि तुम साहित्यिक प्रेम की अप्सरा सदा सदा के लिए रह सकती हो। तुम मे वो प्यास वो चाह फील होती है मुझे कि तुम लिखे हुए को पढ़कर महसूस कर अपने अंदर की प्रेमिका को जीवंत रखोगी।

मैं लिख लिख कर तुम्हे सुंदर से भी सुंदरतम बनाए रखूंगा। तुम हमेशा वैसे ही फील करोगी जैसे नहाकर निकलते हुए तरो-ताजा रहती हो और दर्पण में अपनी सुंदरता को देखकर जी उठती हो।

वाकई में अद्भुत कल्पना है तुम अपनी सुंदरता को देखोगी मैं उस सुंदरता को उस गढ़न को शब्दों से उतार दूंगा। तुम मेरी अद्भुत सी अद्वितीय नायिका हो , हो ना !

कभी तलुवों पर एक खत उकेर दूंगा। अहसास के शब्द तर्जनी उंगली से गढ़ दूंगा तो एक ऐसा खत तलुवों की गर्माहट से अंदर ही अंदर तुम मे प्रेम उर्जा भरता रहेगा , जानती हो इसलिए लिख पाता हूं कि मेरा अंतस कहता है कि तुम इन खत इन कविताओं को पढ़कर खुद को जिओगी और मुझे जीने का सहारा मिलेगा चूंकि तुम ही संकल्प हो और तुम ही काबिल हो जो शब्द मे ढलकर समा सकती है , हर रचना में ! 

” एक प्रेमी जो एक पुरूष के अंदर जिंदा है एक प्रेम जो किसी के लिए जिंदा है सिर्फ इसलिए कि वो महसूस कर सके। “

तुम्हारा ‘ सखा ‘

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