SHARE

Saurabh Dwivedi

प्रशासनिक भ्रष्टाचार व कार्यों में देरी की वजह से उत्पन्न मानसिक उत्पीड़न सिर्फ जनता के लिए नहीं होता बल्कि जिस कुर्सी पर बैठकर जनता को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। उसी कुर्सी के लोग अपने ही प्रशासनिक विभाग के अफसर, कर्मचारी आदि के लिए भ्रष्टाचार के काल बने नजर आते हैं। पेंशनर्स की समस्या के अध्ययन पर यह बात निकलकर चीखती चिल्लाती है कि कार्यों के निष्पादन में उम्र की वजह से रिटायर होने वाले बुजुर्गों को सहायक निदेशक ट्रेजरी विभाग के अधिकारी व विभागीय अधिकारियों द्वारा समयानुसार पेंशन व अवशेष भुगतान नहीं किया जाता।

जबकि पेंशन एवं देय धनराशि के अवमुक्त किए जाने हेतु एक महीने का समय शासन द्वारा निर्धारित है। फिर भी पेंशनर्स को इन आफिसों के चक्कर दो दो वर्ष तक लगाने पड़ते हैं।

ये वो शिक्षित लोग हैं, जिन्हें नियम कानून ई सम्पूर्ण जानकारी है। इसके बावजूद घूसखोरी में लिप्त अधिकारियों की खबरें प्रकाश में आती हैं और मेडिक्लेम से लेकर पेंशन अंतिम रूप से निर्धारित करने में वर्षों समय लगने तथा रिश्वत लिए जाने का कुकृत्य किया जाता है। 

पेंशनर्स के लिए शासन द्वारा सरल जीवन व्यतीत करने हेतु हर सुविधा कागजों पर मुहैया है फिर भी अस्पताल से लेकर आफिस आफिस इनका संघर्ष जगजाहिर हो चुका है। 

ये संघर्ष भ्रष्ट प्रशासन का भ्रष्ट प्रशासन से है। इनके नकारेपन की पोल भी इस मामले में पूर्णतया खुल जाती है। अपितु कर्मठ व ईमानदारी की मिशाल कायम किए तमाम अफसय व छोटा से छोटा बाबू कर्मचारी भी मिल जाएगा। परंतु हमारी संस्कृति व सभ्यता में अधिक धन कमाने की कामना से रिश्वतखोरी सम्मलित हो चुकी है। 

आंकड़े दिखाने में माहिर प्रशासन प्रत्येक तीन महीने में कमिश्नर द्वारा लगाई जा रही अदालत में हेराफेरी वाली सफाई से झूंठे आंकड़े प्रस्तुत कर प्रशस्ति का प्रसाद पा लेते हैं। इनके द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों की जांच किसी स्तरीय संवेदनशील समिति द्वारा कराई जाए तो यकीनन दम तोड़ने की प्रतीक्षा कर रहे बुजुर्ग पेंशनर्स को मृत्यु से पहले ही सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना होगा। हाल-फिलहाल ऐसा ही देखने को मिला कि अंतिम पेंशन की ख्वाहिश में रिटायर व्यक्ति की मौत हो गई और इस पेंशनर्स दिवस के दिन पेंशनर्स संघ बांदा द्वारा उनको श्रद्धांजलि प्रदान की गई।

एडीएम बांदा बतौर अतिथि समस्या सुनने व निवारण करने हेतु डीएम की अनुपस्थिति में उपस्थित थे। लेकिन पेंशनर्स को सिवाय चंद शब्दों द्वारा आश्वासन के मुठ्ठी में समस्या हल करने वाला मसाला नहीं मिल सका। एडीएम साहब भी इतने मसालेदार सिद्ध हुए कि बैठक में आए और चलता बनें। 

जबकि पेंशनर्स संघ की मांग गम्भीर बीमारियों के स्थानीय ईलाज पर ध्यानाकर्षण करने का भी था। समस्या इस बात की है कि अगर किसी को मस्तिष्क संबंधी बीमारी हो गई। बांदा जिले में एक अदद न्यूरोलाॅजिस्ट नहीं है। इसलिये उनको दर्द निवारक दवा देकर चलता कर दिया जाता है। ये स्वास्थ्य समस्या एक ऐसे जिले में है जिसकी प्राचीनता से देश वाकिफ है।

आम जनता का कहीं कोई रोल नहीं है। इस पूरे मामले में अपने ही प्रशासनिक अफसर अपने ही विभागीय लोगों के काल बने हुए नजर आते हैं। जिनके अंदर से संवेदना मर जाने का स्पष्ट प्रमाण महसूस होता है। इसलिये पेंशनर्स संघ ने भविष्य में बड़ा आंदोलन खड़ा करने की योजना बनाई है।


साहब समस्याएं साहबों को भी हैं

आम जनता तो आम ही रह जाती “



image_printPrint
0.00 avg. rating (0% score) - 0 votes