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इसलिए जब भी कोई बिकने की बात करे तो समझिए कि बिकने वाली खबरें बालू और ओवरलोड हैं और इसी व्यापार मे संलिप्त लोग अपने हितों के लिए चार लाइन वाली खबरें चलवाने का काम करते हैं क्योंकि इस व्यापार मे जैसे पहले गोलियां चला करती थीं अब उन बंदूकों का रूप बदलकर पत्रकार की कलम ने ले लिया है।

बिकने के सवाल पर


एक सवाल 500 ₹ में या 100 – 50 मे पान की तरह पत्रकार के बिकने का खड़ा होता है। एक लेखक बिक गया।

क्यों बिक गया ? किस मुद्दे पर बिकते हैं ? एक मुद्दा है बालू का ओवरलोड का और आरटीओ साहब के छापा मारने का ! डीएम साहब के छापा मारने का और ढाल का काम करते हैं एनजीटी के नियम !

मेरे लेखन का इतिहास उठाकर देख लिया जाए तो मैंने अब तक के लेखन काल मे कितनी बार बालू और ओवरलोड पर लिखा है ? फेसबुक , व्हाट्सएप , ट्विटर और मेरी वेबसाइट से लेकर विभिन्न समाचार पत्र / पत्रिका मे कहीं पर भी सौरभ द्विवेदी के हवाले से ओवरलोड और बालू चोरी आदि मुद्दे पर एक खबर और विश्लेषण नही मिलेगा।

दान की शक्ति लेखन की शक्ति

जहां तक मुझे याद है एकाध चांस प्रकृति के हित मानव जाति के जीवन के हित मे गंभीर विश्लेषण लिखा था। और फिर सोचा कि जो कंपनीज सीधे शासन और प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रही हैं उन पर कार्रवाई कितनी होगी ?

सरकार की पैनी नजर रहती है क्योंकि सरकार को रॉयल्टी पहुंचती है। जिसको धन मिलता है वो संरक्षण देगा ही क्योंकि सारा मामला टैक्स का है और सरकार को विकास के लिए सर्विस के लिए टैक्स चाहिए तो एक खबर क्या खात्मा कर पाएगी ? बालू के धंधे का , नही !

जब खबर कोई बार – बार लिख रहा है तो उसे नदी की चिंता है क्या ? अगर उसे नदी की चिंता होती तो वह नदी की धारा मे खड़ा होकर जलदाह कर उदाहरण प्रस्तुत कर देता पर देखा कभी रोज खबर लिखने वाला ऐसा कर पाया है ? क्योंकि उस खबर के अंदर की खबर कुछ और है जो भी कभी बाहर नही आती।

इसलिए जब भी कोई बिकने की बात करे तो समझिए कि बिकने वाली खबरें बालू और ओवरलोड हैं और इसी व्यापार मे संलिप्त लोग अपने हितों के लिए चार लाइन वाली खबरें चलवाने का काम करते हैं क्योंकि इस व्यापार मे जैसे पहले गोलियां चला करती थीं अब उन बंदूकों का रूप बदलकर पत्रकार की कलम ने ले लिया है।

कलम जब बंदूक बन जाती है तो उस व्यापारी की अंगरक्षक हो जाती है जो अपने से बड़े व्यापारी को शिकस्त देना चाहता है। इसलिए ट्रक की लड़ाई कास्ट पर आकर खड़ी हो जाए तो आम जन नही समझ सकता इस रहस्य को कि ट्रक वाले ठेकेदार कैसे चुनाव हो या सामाजिक समरसता का माहौल खराब करवाते हैं सिर्फ अपने व्यापार को बढ़ाने और अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए अर्थात स्थानीय स्तर पर भी ऐसी ही शक्ति की जंग है।

@hotelsphaticckt

मुझे बिकने का शौक होता तो आए दिन ये कलम बालू माफिया उगलती , ओवरलोड मेरे दिमाग मे चढ़ा रहता और एनजीटी के नियम दिल मे लिख लिए होते तो जन जन के बीच फर्क साफ होना चाहिए बिकने और ना बिकने का चेहरा स्पष्ट होना चाहिए क्योंकि होली मे शेर वाला मुखौटा खरीदकर कोई भी लगा सकता है लेकिन उसके अंदर के आदमी को आप पहचानते हो ना ?

मैं जन जन के रत्ती रत्ती भर के दान से स्वतंत्र पत्रकारिता / लेखन करने के लिए जिंदा हूं , मेरी आत्मा जागृत है।

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