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@Saurabh Dwivedi

गांव पर चर्चा कालूपुर / चित्रकूट : जिला मुख्यालय से सटा हुआ एक गांव है कालूपुर। जिसके गांव होने का अंतर कोई जानकार व्यक्ति ही लगा सकता है अन्यथा यह जनपद चित्रकूट का ही एक बड़ा भूभाग है , जिसके आसपास जनपद के अफसरों के कार्यालय हैं और राष्ट्रीय राजमार्ग से हूटर बजाती गाड़ियां तेज रफ्तार में निकलती हैं लेकिन रेल की पटरियों के किनारे गोवंश लावारिस की भांति नजर आ रही हैं क्यों ?

यह बड़ा सवाल है। देश – प्रदेश की सियासत हो या जनपद के अफसर हों गोवंश के लिए चर्चा मे बने रहते हैं। हाल ही मे कुपोषित बच्चों के पोषण के लिए गाय दान दी गईं तो गोपाष्टमी में गो – पूजन किया  गया। जिससे गाय की महिमामय तस्वीरें खूब आकर्षक नजर आईं।

हकीकत में ठंड बढ़ चुकी है। बढ़ती ठंड मे बच्चों को स्वेटर वितरण होने लगा है और आम आदमी तन पर ऊनी कपड़े डालने लगा है। अब गाय के लिए कौन सा ऊनी कपड़ा ? या कोई कंबल ? नहीं ….. नहीं गाय को सिर्फ छाए की जरूरत है। महज एक टीन सेड लगाने की आवश्यकता है।

इससे बड़ी बात भूख की है जो भूख नेताओं को लगती है , अफसरों को लगती है। ग्राम प्रधान कालूपुर को भी भूख लगती है और ग्राम सचिव को भी भूख लगती होगी फिर भी मुहल्ले की कुछ महिलाओं ने जो बताया वो बड़ा चिंताजनक है।

सड़क किनारे रहने वाली महिलाएं ठंड के दिनों मे धूप लेने छत पहुंचती हैं। उनमे से एक महिला ने कहा कि ” मैंने लगभग सात दिन पहले इन गायों को पैरा डालते हुए एक आदमी को देखा था “ उसके बाद से ये गाय जमीन पर उगी हल्की-सी घास को चरकर पेट भरने की कोशिश करती दिखती हैं। एक तरह से कहा जाए तो मिट्टी खाकर पेट भर रही हैं।

यहाँ ऐसे ही चलता है। सात – आठ दिन मे कोई आ जाए तो पैरा डाल देते हैं शेष आपको भूसा का एक सबूत तक नहीं मिलेगा। ऊपर से रात और सुबह की ठंड की मार से बचने के लिए कोई उपाय नजर नहीं आता अर्थात भूख – प्यास और ठंड से गाय मरने को मजबूर हैं।

रत्ती भर उगी घास चरती गाय या खा रहीं मिट्टी .

महिलाएं आपस मे बात करती हैं कि अभी क्या ? जरा और ठंड आने दो फिर एक एक करके गाय की लाश गिरने लगेगी। उन्होंने पिछले वर्ष की बात दुहराई कि पिछले साल की ठंड मे जाने कितनी गाय मर गईं।

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एक तरह से कहा जाए तो गाय के नसीब मे अब मौत है। वह पहले कटती थी , काटी जाती थी। एक बार मे गाय को मौत मिल जाती थी परंतु इस प्रशासन की भूमिका में गाय तड़प – तड़प कर मरने को मजबूर है। वहीं कागज मे सबकुछ दुरूस्त रहता है और कागजी घोड़े गोवंश की रक्षा – सुरक्षा मे अपनी रेस जीत रहे हैं।

यह हकीकत है कि रेल की पटरी के किनारे और सड़क के पीछे तक शायद ही किसी की नजर पहुंचे परंतु संवेदनशील मन और आत्मा से देखा जाए तब संभव है कि हृदय विदारक दृश्य से दिल दहल जाए। चित्रकूट जनपद प्रशासन को प्रधान और सचिव को तलब कर सटीक सवाल – जवाब करने चाहिए और सरकार की गोवंश वाली नीति का पालन कराना चाहिए वैसे तो सच है कि कागज मे चरवाहे भी होंगे और चारा भी मिल रहा होगा।
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