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जहाँ सोच है वहाँ रहा फिर खुला आकाश है और बाजार आपका है। युवाओं ने ठेठ देहाती सत्तू का बनाया शहरी और वैश्विक उत्पाद , इस प्रकार से युवा बन रहे हैं उद्योगपति ! सत्तूज की प्रसिद्धि और गर्मियों मे इसकी उपयोगिता सफलता की गारंटी है ले रहा है कोक जैसे उत्पादों की जगह , आदमी को स्वाद भी और स्वास्थ्य भी मिल रहा है।

साल 2018 का फरवरी महीना रहा होगा… स्कूल के जमाने के दो दोस्त सचिन और राजीव अरसों बाद फोन पर बात करते हैं,फिर अगले दिन मिलना भी तय होता है। बचपन की दोस्ती फिर उच्च शिक्षा के लिए बाहर चले जाना, सम्पर्क कैसे रहेगा फिर… आप ही बताइए…

हमदोनों में से एक उद्यमी था और एक उद्यमिता पर काम कर रहा था…
फिर मुलाकातों का सिलसिला कुछ और दिनों तक चला, फिर लगा कि अब साथ ही चलते हैं।

18 फरवरी 2018 को हमारी सोच ने मूर्त रूप धारण किया और “सत्तुज़” कम्पनी अस्तित्व में आई। हर बिहारी के दिल में सत्तू का एक अलग स्थान है। हर उम्र के लोग अपनी सुविधा के अनुसार सत्तू को अपने लिए बेहतर भोजन बना लेते हैं ; यथा- ये सुपाच्य है, ये डायबिटीज़ में बहुत फायदा करता है, इसका लस्सी बहुत बढ़ियाँ होता है,इसकी खुशबू बहुत अच्छी है,इससे मोटापा कम होता है… और भी बहुत कुछ खूबियाँ बता कर लोग इसे ना सिर्फ प्रयोग करते हैं बल्कि विश्वास भी करते हैं।

एक अकेले सत्तू के इतने फायदे हैं और सारे फायदे सभी को पता तक नहीं.. ये थोड़ा खल रहा था। जो बिहार में हैं उन्हें तो सत्तू मिल जाता है लेकिन जो अन्य प्रदेश में हैं उनको क्या मिलता होगा!? बहुतेरे प्रश्न दिमाग मे घुमड़ रहे थे, उत्तर ढूंढना था…

तय हो चुका था कि अब सत्तू उन हर जगह तक पहुंचेगी जंहा तक ये नहीं पहुंच पाया है। चूंकि सत्तू को हमने प्रोसेस करके आकर्षक पैकेजिंग की और ब्रॉन्डिंग की, FSSAI से एप्रूव करवाया और इसे हेल्थ ड्रिंक की श्रेणी में रखा ; इसलिए इसका नाम भी थोड़ा अलग रखने की कोशिश की… “सत्तुज़” 

सत्तुज़ को हर उस ग्राहक ने सराहा जिसने बाहर रहकर सत्तू की आस लगानी छोड़ दी थी। दरअसल लोग जागरूक हो गए हैं, रेट से ज्यादा लोग न्यूट्रिशन वैल्यू को प्राथमिकता देते हैं, सत्तुज़ चूंकि हेल्थ ड्रिंक है और आसानी से घुल भी जाती है। यकीन मानिये लोगों के कॉल्स देश के अलग – अलग शहरों से आने लगे कि इतने सालों बाद सत्तू को टेस्ट किया… गाँव की याद आ गयी।

सत्तूज स्टार्टअप

आमतौर पर ये धारणा थी की सबसे ज्यादा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में फेमस है लेकिन आज नॉन बिहार/यू.पी और झारखंड के लोग ऑनलाइन ऑर्डर सेकर मंगवाते हैं, इसे खाया भी जाता है और पिया भी जाता है। इसे बिहारी फास्ट फूड भी कह सकते हैं, ऐसा फास्ट फूड, जिसका किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं होता। सत्तू से कई तरह के स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं, इसमें लिट्टी-चोखा से लेकर सत्तू पराठे तो अब देशभर में लोग खाना पसंद करते हैं। बिहार में तो इसके नाम से एक लोक पर्व भी है, जो अप्रैल महीने में मनाया जाता है, नाम है सतुआन। इस स्टोरी में हम सत्तू का जिक्र इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज हम जिस शख्स की बात करने जा रहे हैं, उसके जीवन का लक्ष्य सत्तू को दुनिया भर में पहुंचाना है।

बिहार के मधुबनी जिले में रहने वाले सचिन कुमार ने मुंबई में अपनी सेटल्ड नौकरी छोड़कर और वाराणसी से राजीव रंजन दास ने अपनी प्रोग्राम मैनेजर की जॉब छोड़कर बिहार के फेमस सत्तू को वर्ल्ड फेमस बनाने के लिए ​अपने गांव लौटकर एक स्टार्टअप शुरू किया है, नाम है सत्तुज। सचिन और राजीव इसके जरिए सत्तू को प्रोसेस कर अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बना रहे हैं, इसमें सत्तू पाउडर, रेडीमेड एनर्जी ड्रिंक और लिट्टी-चोखा रेडीमेड मसाला शामिल हैं।

सचिन कहते हैं, ‘हमने अपने वेंडर से पैकेजिंग से लेकर हर चीज फाइनल की थी और हमने उनसे रिक्वेस्ट की थी कि 14 अप्रैल को सतुआन पर्व मनाया जाता है और इस दिन सत्तू खाने और पीने का काफी महत्व होता है। इसलिए अगर हमारे पास पहला स्टॉक आ जाए तो मैं पहला पैकेट अपने मम्मी-पापा को देना चाहता हूं।’
सचिन ने सत्तू की सही प्रोसेसिंग के लिए फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग भी ली, ताकि उनके प्रोडक्ट्स में सभी चीजें सही मात्रा में हो।
सचिन कहते हैं कि पाउलो कोएल्हो ने अपनी किताब द अल्केमिस्ट में लिखा है कि ‘And, when you want something, all the universe conspires in helping you to achieve it.’ और इसी का हिंदी वर्जन हमने शाहरुख खान की फिल्म में सुना है कि ‘अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है।’ तो मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, किस्मत की बात है कि 14 अप्रैल 2018 को हमारे पास उसका पहला पैकेट आया। फिर हमने इसी दिन अपनी कंपनी गो रूरल फूड बेवरेजेस के तहत अपने ब्रांड सत्तुज की शुरुआत की।

मुम्बई की नौकरी छोड़ सचिन ने गांव आकर सत्तू पर पायलट स्टडी शुरू की

सत्तुज के सफर के बारे में सचिन बताते हैं ‘MBA के दौरान मैंने एंटरप्रेन्योरशिप की पढ़ाई की। मेरी फैमिली का रिटेल का बिजनेस था। उस दौरान मुझे लगा कि हम जो बिजनेस कर रहे हैं, उसमें हम बाहर का सामान लाकर बिहार में बेचते हैं, लेकिन बिहार का एक भी सामान हम बिहार से बाहर नहीं बेच रहे हैं। पढ़ाई के दिनों से ही मन में था कि ऐसा कुछ करें जिससे बिहार का नाम बाहर देशों तक पहुंचे, लेकिन यह सब करना इतना आसान नहीं था।’

MBA कम्प्लीट करने के बाद सचिन को मुंबई में और MSW करने के बाद राजीव को दिल्ली में अच्छी जगह नौकरी मिल गई। कुछ साल बाद सचिन को अमेरिका और राजीव को जापान जाने का भी मौका मिला, लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लग रहा था, वो अपने बिहार की जमीन पर कुछ अपना ही करना चाहते थे। 2008 में सचिन नौकरी छोड़कर अपने घर लौट आए। सचिन के इस फैसले से घर में कोई भी खुश नहीं था। इस दौरान वो हमेशा अपने आसपास ऐसा कुछ ढूंढ़ने की कोशिश करते रहे, जिसके जरिए वो बिहार की अलग पहचान बना सकें। उनकी यह तलाश सत्तू पर जाकर खत्म हुई।
सचिन कहते हैं कि यह रेडी मिक्स ड्रिंक ग्लूटेन फ्री, वीगन और प्रिजर्वेटिव फ्री है। ये कार्बोनेटेड ड्रिंक्स का अच्छा और हेल्दी ऑप्शन भी है।
2016 से सचिन ने सत्तू पर एक पायलट स्टडी शुरू की। उन्होंने अलग-अलग शहरों में यात्राएं कर यह समझा कि आखिर लोग सत्तू के बारे में कितना जानते हैं। सचिन बताते हैं, ‘इस दौरान हमारे सामने बहुत-सी चौंकाने वाली जानकारियां आईं। किसी को सत्तू बनाना नहीं आता था तो किसी के पास इतना वक्त नहीं होता था कि तमाम चीजें जुटा कर सत्तू बना सके। तब हमने तय किया कि हम मार्केट में सत्तू को रेडी-टू-मेड ड्रिंक के तौर पर लॉन्च करेंगे। हमने एक छोटा ड्रिंक पैक तैयार किया जो ट्रैवलिंग के दौरान आसानी से साथ रखा जा सके।’

यंग जेनरेशन को सत्तू बोरिंग लगता था इसलिए इसकी पैकेजिंग को अलग बनाया

सचिन ने सत्तू की सही प्रोसेसिंग के लिए फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग भी ली, ताकि उनके प्रोडक्ट्स में सभी चीजें सही मात्रा में हो। फिर उन्होंने प्रोडक्ट तैयार कराया और FSSAI सर्टिफिकेशन भी लिया। सचिन कहते हैं, ‘हमने सत्तू को नया रूप देने के साथ-साथ इसकी पैकेजिंग को भी अलग बनाया। क्योंकि, नई जेनरेशन को सत्तू काफी बोरिंग लगता था, इसलिए हमने अपने प्रोडक्ट को बाकी ड्रिंक्स जैसे ही पै​क किया।’
सचिन के इस स्टार्टअप के लिए उन्हें IIM कोलकाता से लोन और इंडियन एंजेल नेटवर्क (IAN) और बिहार इंडस्ट्री एसोसिएशन (BIA) से फंडिंग मिली है।
शुरुआत में सचिन ने सत्तू के तीन फ्लेवर्स बाजार में उतारे, इसमें जल-जीरा, स्वीट और चॉकलेट फ्लेवर शामिल थे। इसकी कीमत 20 रुपये लेकर 120 रुपये तक रखी, पैकिंग सैशे और डिब्बे में की गई। इसके साथ पेपर का एक गिलास और एक चम्मच भी दिया गया। यानी ग्राहक को बस गिलास में पाउडर और पानी को मिलाना और पीना है। सचिन कहते हैं कि यह रेडी मिक्स ड्रिंक ग्लूटेन फ्री, वीगन और प्रिजर्वेटिव फ्री है। ये कार्बोनेटेड ड्रिंक्स का अच्छा और हेल्दी ऑप्शन भी है।

सत्तुज बिहार का पहला स्टार्टअप जिसे IAN और BIA से फंडिंग मिली है

सचिन के इस स्टार्टअप के लिए उन्हें IIM कोलकाता से लोन और इंडियन एंजेल नेटवर्क (IAN) और बिहार इंडस्ट्री एसोसिएशन (BIA) से फंडिंग मिली है। सत्तुज बिहार का पहला स्टार्टअप है जिसे इन दोनों नेटवर्क्स से फंडिंग मिली है।

सचिन बताते हैं, ‘इंडियन एंजेल नेटवर्क के बहुत बड़े इन्वेस्टर हरि बालसुब्रमण्यम से मैं एक इवेंट में मिला था। मैंने वहां हरि सर को एक गिलास सत्तू पिलाया था। 5 मिनट के अंदर ही उन्होंने हमें कमिटमेंट किया कि वो हमारे स्टार्टअप को फंडिंग देंगे। मैंने कभी नहीं ​सोचा ​था कि बिना किसी बिजनेस प्रपोजल, पीपीटी, स्लाइड्स के सिर्फ प्रोडक्ट देखकर ​कमिटमेंट मिल जाएगा और वो भी सत्तू पिलाकर। उन्होंने तुरंत BIA को भी फोन किया, इसके बाद बिहार इंडस्ट्री एसोसिएशन ने भी तय किया कि क्यों न बिहार के स्टार्टअप में इन्वेस्ट किया जाए।’

आज सचिन की कंपनी में 10 लोग काम करते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और अपनी वेबसाइट के जरिए देश भर में अपने प्रोडक्ट पहुंचा रहे हैं। सचिन ने अपने हर प्रोडक्ट पर मेड इन बिहार लिखा है। पिछले फाइनेंशियल ईयर में सचिन की कंपनी का रेवेन्यू 10 लाख रुपए रहा। वहीं इस साल लॉकडाउन के बावजूद भी उनकी कंपनी ने यह आंकड़ा नवंबर में ही क्रॉस कर लिया है।

अभी तक सत्तुज़ को देश एवं विदेश स्तर पर 15 से अधिक अवार्ड मिल चुका है।

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Karwi Chitrakoot }

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