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@Monika Sharma

हालिया बरसों में आम चुनावों से लेकर राज्यों की सरकार चुनने और स्थानीय निकायों में प्रतिनिधियों को अपना समर्थन देने तक, आधी आबादी निर्णायक भूमिका निभाने लगी है |  महिलाएं ना केवल बड़ी संख्या में मतदान के  लिए घर से निकलने लगीं हैं बल्कि बहुत हद सामयिक मुद्दों और माहौल के प्रति जागरूक भी हैं | महिलाओं में बढ़ती  राजनीतिक जागरुकता  उनका मत प्रतिशत भी बढ़ा रही है | 

बिहार के जनादेश में भी महिला मतदाताओं की अहम् भूमिका देखने को मिली है | इस बार 59.6 फीसदी महिला मतदाताओं ने मतदान किया है, जबकि  पुरुष मतदाताओं की हिस्सेदारी 54.7 प्रतिशत रही है |  पिछले चुनाव की तरह 2020 में भी महिला मतदाता निर्णायक भूमिका में रही  हैं।ग़ौरतलब है कि बिहार में  2015  में हुए विधानसभा चुनाव में कुल  मतदान प्रतिशत 56.66 फीसदी रहा था, जिसमें 53.32 फीसदी पुरुष और 60.48 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने मतदान किया | जबकि  2010 में बिहार में कुल 52.67 प्रतिशत मतदान में महिलाओं का मत प्रतिशत 54.49 और पुरुषों का मत प्रतिशत 51.12 फ़ीसदी था |  इस बार भी कोरोना आपदा के बावजूद महिलाएं अपने इस संवैधानिक हक़ का इस्तेमाल करने के लिए बड़ी संख्या में घर से निकलीं | 

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निर्वाचन के आयोग के मुताबिक  दूसरे और तीसरे चरण में आधी आबादी ने जमकर मतदान किया है | जिसका सीधा सा अर्थ है कि हमारी लोकताँत्रिक व्यवस्था में उम्मीदवारों की सियासी किस्मत लिखने में आधी आबादी की भूमिका अहम् हो चली है |नतीजन,  अब सियासी पार्टियाँ भी महिला  हितों और उनसे जुड़े मुद्दों  की बात  प्रमुखता से करती नजर आती हैं | चाहे क्षेत्रीय दल हों या राष्ट्रीय पार्टियाँ | महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य और लैंगिक समानता जैसे मामलों को लेकर अनगिनत बुनियादी पहलुओं पर अब सोचा जा रहा है | 

दरअसल, महिलाओं का बढ़ता मत प्रतिशत सियासत और समाज में कई मोर्चों पर आये बदलावों की भी बानगी है |  साथ  ही महिला वोटर्स  का आगे आना भावी बदलावों की नींव पुख्ता  करने वाली भागीदारी भी कही जा सकती है | सुरक्षा, शिक्षा , समानता और  जीने की सहजता से  जुड़े उन बदलावों की बुनियाद जिनका आधी आबादी को आज भी इंतजार  है | कहना गलत नहीं होगा कि बिहार में शराब बंदी और सुरक्षित परिवेश को महिलाओं ने अपना समर्थन दिया है | 

इस बार बिहार में युवा वोटर्स भी बड़ी संख्या में थे |  इनमें शिक्षित और सजग युवतियाँ भी शिक्षा और सुरक्षा को सबसे अहम् का माहौल ही चाहती हैं | यही वजह है कि  नितीश कुमार ने शराब बंदी और पंचायत में महिलाओं को दिए आरक्षण को अपनी कामयाबी बताया तो  तेजस्वी यादव ने आशा बहनों, आंगनबाड़ी सहायिकाओं और दूसरे महिला संगठनों की कर्मचारियों की नौकरी पक्का करने का वादा करते नजर आये | 

बीते कुछ बरसों में चुनावी प्रक्रिया में स्त्रियों की  हिस्सेदारी देश के हर राज्य में बढ़ी है | बावजूद इसके हालात ऐसे हैं कि सुरक्षा और समानता के मोर्चे पर भारत के हर हिस्से में उनके लिए तकलीफदेह स्थितियाँ बनी हुई हैं | इतना ही नहीं कमोबेश हर  प्रांत  में आज भी महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और श्रम से जुड़े मुद्दों को  मुखर आवाज़ नहीं मिली है। ऐसे में यह विडम्बना ही है कि संविधान ने भले ही महिलाओं को बराबरी के अधिकार दिये हैं  पर आज भी घर हो या दफ्तर, देश की आधी आबादी हर स्तर पर समान अधिकार और व्यवहार पाने को जूझ रही है। हालांकि जेंडर समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही शामिल है। पर हमारे देश की महिलाएं हर स्तर पर दोयम दर्जे का व्यवहार झेलने को मजबूर हैं । घर के भीतर जहां घरेलू हिंसा, भ्रूण हत्या, अन्धविश्वास और दहेज जैसी कुरीतियों ने उन्हें दोयम दर्जे  पर ला दिया है वहीं कार्य स्थल पर भी असंगठित ही नहीं संगठित क्षेत्रों में भी आधी आबादी हाशिये पर ही है। ऐसे में यह बात मायने रखती है कि महिला वोटर भी अब अपने  मत  के मायने समझने लगीं  हैं । जिसके चलते  शासन व्यवस्था  में महिला वोटर्स के बढ़ते आंकड़े महिला नेतृत्व ही नहीं और आधी आबादी से जुड़े मुद्दों को भी प्राथमिकता देने वाला बदलाव लाने की उम्मीद जगाते हैं |  

महिलाओं का बढ़ता मतदान प्रतिशत हमारे सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में  आये बदलाव को भी परिलक्षित करता है | स्त्रियाँ अब सजग नागरिक की भूमिका में हैं |  पहले महिलाएं घर के पुरुष सदस्यों के  प्रभाव में आकर वोट करती थीं | पिता, भाई, पति जिसे वोट करते उनका वोट भी उसी प्रत्याशी को जाता था । साथ ही महिलाएं वोट डालने  के लिए घर से भी कम  ही निकलती थीं । लेकिन बीते कुछ बरसों में ना केवल महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा है बल्कि वे अपने मत को लेकर स्वतंत्र रूप से निर्णय भी कर पा रही हैं । बिहार में स्त्रियों के स्वतंत्र रूप से अपना मत देने की शुरूआत शराब बंदी के बाद  ज्यादा हुई |  महिलाओं ने उनके जीवन से हर पक्ष को  प्रभावित करने वाले शराब बंदी के निर्णय के लिए सरकार को खुलकर समर्थन दिया | जो कि बहुत व्यावहारिक और परिपक्व सोच की बानगी बना | माना भी जाता है कि जीवन के अनेक मसलों पर महिलाओं की प्रतिक्रिया पुरुषों के मुकाबले ज्यादा व्यवहारिक और सधी हुई ही होती है । ऐसे में लगता है कि महिला मतदाताओं के रूप में अब देश की आधी आबादी  वैचारिक ही व्यावहारिक स्तर पर भी प्रभावी भूमिका में आ गई है |

लोकताँत्रिक व्यवस्था वाले हमारे देश में नागरिकों को मिला मतदान का अधिकार ही  बदलाव और बेहतरी का आधार है | यही वजह है मतदान  केवल हक़ ही नहीं बल्कि दायित्व भी है | देश की  दशा और दिशा को समझते हुए नागरिकों का जागरूक होना और मतदान करना ही समाज और देश की भावी दिशा के चुनने का जरिया है |  सुखद  है कि अब महिला वोटर्स में मुद्दों के प्रति जागरूकता और मतदान के  प्रति अपनी  ज़िम्मेदारी को समझने का भाव भी देखने को मिल रहा  है |  साथ ही कोरोना महामारी के इस दौर में भय और निराशा पैदा करने वाले माहौल को धता बताकर यूँ उत्साह के साथ  मतदान करना महिला मतदाताओं की प्रतिबद्धता और जागरूकता  का प्रमाण है।

विचारणीय  है कि अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने का अधिकार देश के हर नागरिक का संवैधानिक हक़ है | पर इस मानवीय अधिकार को जीने के लिए सुरक्षित परिवेश और समानता का  परिवेश जरूरी है | दुखद है कि देश की महिलाएं आज भी भेदभाव और असुरक्षा के हालातों में जीने को विवश हैं | शिक्षित हों या अशिक्षित महिलाएं हाशिये पर ही हैं |  फिर चाहे असंगठित क्षेत्रों में महिला मज़दूरों के शोषण का मामला हो या उच्च शिक्षित महिलाओं में असमान वेतन मान  और ऊंचा पद ना दिए जाने का मसला | ना श्रम का सम्मान और ना ही अधिकारों की रक्षा | साथ ही हिंसा और अपराध एक बढ़ते आंकड़े तो चिंतनीय हैं ही |

निस्संदेह, अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है | यहाँ भी आधी आबादी के जीवन से जुड़ी अनगिनत समस्याएं  हैं, जिनके लिए महिलाओं का जागरुक होना आवश्यक है । मतदान प्रतिशत बढ़ना इसी जागरुकता का पहला क़दम है । इसका एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि अब  आधी आबादी सत्ता के चुनाव में  पूरी तरह निर्णायक भूमिका आ गई है | यही कारण है बिहार में महिला वोटर्स के बढ़े आंकड़े वाकई आधी आबादी की विचारणीय भूमिका को रेखांकित  करते हैं |  राजनीतिक दल यह समझने लगे हैं कि आधी-आबादी के सहयोग के  बिना सत्ता हासिल नहीं की जा सकती | इस सहयोग के लिए  महिलाओं से जुड़े मुद्दों  को समझना और उनका हल तलाशना होगा |  यह बदलाव महिलाओं का  समर्थन पा रहे प्रत्याशियों  की  ही नहीं आधी  आबादी की भी जीत है | 
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Karwi Chitrakoot }

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