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बड़ा सवाल है ? राजनीति मे महिलाओं का उत्थान कैसे होगा ! और किस वर्ग की महिलाओं का उत्थान होगा। चूंकि संसद भवन हो या विधानसभा दोनो जगह कम संख्या मे ही सही लेकिन महिला सदस्य देखने को मिल रही हैं परंतु दलों के संगठन मे कितनी महिलएं खुले आसमान मे काम कर पाती हैं या नही !

पुरूष नेताओं की पत्नियां राजनीति मे कितना सक्रिय हैं इसके जवाब मे ही भारत की राष्ट्रीय और प्रादेशिक राजनीति में महिलाओं का स्थान तय हो जाता है दूसरी बड़ी बात है कि पुरुष नेता राजनीति करने वाली महिलाओं को क्या इतना स्पेस दे पा रहे हैं कि वे घर से बाहर निकलकर राजनीति करें ? क्या महिलाओं का संगठन की राजनीति मे महज प्रयोग भर हो रहा है या उतना सम्मान भी मिल पाता है।

इन सभी सवालों से राजनीति मे सफल महिलाएं भी इत्तेफाक रखेंगी। हमारे देश मे ही मीटू जैसा अभियान चल चुका है लेकिन यहां सिर्फ देह के प्रयोग की बात नही है बल्कि महिलाओं को सम्मान ना मिल पाने जैसी असल बात है जहां अक्सर बत्तमीजी का शिकार होती हैं , अगर वास्तविक हालात देखे जाएं तो पंचायत से पार्लियामेंट तक महिलाओं की भागीदारी पर मजबूत प्रश्नचिन्ह मर्दवादी मानसिकता के सामने खड़े होते हैं चूंकि मर्दों की राजनीति मे नेत्रियां बदनामी का शिकार भी होती हैं।

मर्द किसी भी दल मे मजबूत स्थिति मे हैं। इन दलों मे वूमन विंग होता है जो खासतौर से महिलाओं के लिए होता है लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की सरकार के समय से राजनीति मे महिला आरक्षण की बात होने लगी तो इसके कुछ वर्षों बाद राजनीतिक दल की प्रमुख दलीय कार्यकारिणी मे किसी ना किसी महिला को पद देना मजबूरी होने लगा चूंकि भाजपा ने महिला आरक्षण की पुरजोर वकालत की तो भाजपा ने सबसे पहले संगठन मे महिलाओं को महत्व देना शुरू किया।

किन्तु दर्पण मे चेहरा इसलिए दिखता है कि उसका एक भाग रंग रोगन रखा जाता है तो महिलाओं का राजनीति मे जो चेहरा दिख रहा है उसका एक भाग रंग रोगन है जो मर्दों का महिलाओं के प्रति व्यवहार पर निर्भर करता है।

अक्सर नारियों को अभिमानी मर्दों का सामना करना पड़ता है। उनकी बत्तमीजियों से दो चार होना पड़ता है यहां तक कि मर्द अपनी राजनीतिक ठसक के लिए नेत्रियों पर रौब झाड़ते नजर आ जाते हैं ऐसी सुर्खियां अक्सर सुनाई देती हैं।

जबकि इन्हीं मर्दों की पत्नियां राजनीति का क ख ग घ नही जानती होती हैं और इस मामले मे ङ होती है जिसको कहा जाता है अंगा माने कुछू नही लेकिन उनका ही पति राजनीति मे नंगा हो जाता है जो नंगा व्यवहार करता है तो चर्चा इस बात की बेहद आवश्यक है कि राजनीति मे सामान्य महिलाओं के लिए कितनी विकराल डगर है !

चिंतनीय है कि अगर पुरूष नेताओं की मंशा स्पष्ट होती तो अपने घर की महिलाओं को राजनीतिक संगठन मे काम करने का अवसर देते लेकिन अपवाद के अतिरिक्त शायद ही ऐसा उदाहरण मिले जहां पति सक्रिय नेता हो तो उनकी पत्नी भी सक्रिय नेत्री हो जैसे कि सपा हो या भाजपा अथवा कांग्रेस हर एक दल मे वूमन विंग होता है तो पुरूष नेता वूमन विंग मे अपनी पत्नियों के जरिए पार्टी को मजबूती प्रदान करते। वे महिलाएं दल के संगठन मे काम करती नजर आतीं परंतु ऐसा ना होने के पीछे के कारण बड़े गहरे हैं !

सिक्के का दूसरा पहलू अगर देखें तो जब भी महिला आरक्षण होता किसी चुनाव मे जैसे ग्राम पंचायत हो या क्षेत्र पंचायत अथवा जिला पंचायत तो इन नेताओं ने अपने घर की बहू – बेटियों और पत्नियों को चुनाव लड़ाकर अपनी राजनीति साधने का बड़ा काम किया है। जो जीतने के बाद रबर स्टैंप साबित हुईं। अर्थात यहां ही उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने का अवसर नही मिला।

इसलिए सोचना चाहिए कि महिलाओं की राजनीति पुरूषों की मंशा पर आधारित है जिसे साहित्य मे मर्दवाद या पुरुषवाद की संज्ञा दी जाती है और अब भी इसके खिलाफ नारीवादी लेखिकाएं या लेखक लिख रहे हैं कि नारी का व्यक्तित्व एक स्वतंत्र व्यक्तित्व हो जो अपने निर्णय खुद ले सके। क्षेत्र राजनीति का हो या जीवन का नारियों की इस स्वतंत्रता पर व्यापक स्तर पर चिंतन किया जा रहा है।

रामराज्य की स्थापना करने का विचार भारत भूमि का सबसे बड़ा विचार है। श्रीराम ने पत्थर हो चुकी अहिल्या का उद्धार किया था। कथानक के अनुसार गौतम ऋषि ने अपनी ही पत्नी अहिल्या को श्राप दिया था। जिस श्राप को श्रीराम अपने पैर के स्पर्श से खत्म किए थे जिससे अहिल्या पुनः जीवंत हो उठी थीं तो कलयुग के इस रामराज्य में राजनीतिक अहिल्याओं का क्या होगा ? जिन्हें राजनीतिक पुरूष दबाकर ही रखना चाहते हैं या रबर स्टैंप बनाए रखना चाहते हैं।

बेशक नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत केन्द्र की मोदी सरकार ने महिलाओं को 33% का आरक्षण दिया है परंतु बहुत आवश्यक है कि मर्दवादी नेताओं की मंशा स्पष्ट हो तब जाकर महिलाएं राजनीति मे वह मुकाम हासिल कर पाएंगी जिसकी वो हकदार हैं अन्यथा किस्से बड़े बदबूदार हैं और मर्दवादी नेता दागदार हैं। पुरूष नेताओं के सामने एक आवश्यक शर्त होनी चाहिए कि दल के संगठन मे उनकी पत्नियां भी जिम्मेदारी से कार्य करें तभी तो वास्तव में नारी शक्ति वंदन अधिनियम और आरक्षण का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।

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