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महत्वपूर्ण तथ्य है कि चित्रकूट को पर्यटक चाहिए या भक्त / श्रद्धालु चाहिए ? जैसे काशी मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है मथुरा-वृंदावन श्रीकृष्ण के लिए प्रसिद्ध है तो वहां विदेशी मुक्ति और भक्ति के भाव से ही आते हैं तो चित्रकूट मे संतो की शरण मे भक्त आएं या पर्यटक ? यह अंतर चित्रकूट की आत्मा को स्पष्ट कर देता है कि चित्रकूट आने का उद्देश्य क्या है ? चित्रकूट बुलाने का उद्देश्य क्या है ?

चित्रकूट : दीपावली महोत्सव के बाद धर्म नगरी चित्रकूट मे अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक सम्मेलन आयोजित हो रहा है। जिसमे देश – विदेश के विद्वान वक्ता प्रवक्ता शामिल होने जा रहे हैं इसको लेकर आनंद रिसॉर्ट मे प्रो. गोविंद नारायण त्रिपाठी , भाजपा के जिला उपाध्यक्ष आनंद पटेल , साहित्यकार मनोज द्विवेदी सहित पत्रकार संदीप रिछारिया ने पत्रकार वार्ता कर जानकारी दी है।

सम्मेलन के आयोजकों का मानना है कि चित्रकूट सृष्टि के जन्म का केन्द्र बिंदु है। यहीं त्रिदेवों की जन्मस्थली है। तपस्वी श्रीराम के नाम से विख्यात धर्म नगरी का इतिहास तो कुछ और ही है जो अब जनता के सामने आएगा। लोगों को बताया जाएगा ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की संरचना की थी। इसलिए वनवासी श्रीराम चित्रकूट आए थे जो तपस्वी संतो की शरण मे रहे चूंकि यह अनादि काल से दिव्य धरा है।

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लेकिन श्रीराम और कामतानाथ की वजह से प्रसिद्ध कामदगिरि पर्वत को विश्व धरोहर बनाने की मांग यूएनओ के अधिकारियों से की जाएगी तो वह केन्द्र बिन्दु भी महत्वपूर्ण होगा जहां ब्रह्मा जी ने बैठकर सृष्टि की संरचना की चूंकि असली इतिहास की अपेक्षा अनुसार यह व्याख्या और स्थान का चिन्हीकरण होना आवश्यक होगा जो सर्वमान्य हो सके।

इसकी कोई विशेष पुष्टि तो नही है लेकिन वायरल वीडियो के अनुसार नासा ने भी यह माना है कि चित्रकूट ही वह धराधाम है जहां से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। नासा अमेरिका की वह एजेंसी है जो वैज्ञानिक शोध के लिए जानी जाती है तो ऐसे मे नासा का यह धार्मिक शोध महत्वपूर्ण हो जाता है।

प्रेस वार्ता मे लगातार पर्यटकों को आकर्षित करने की बात कही गई कि जब पर्यटक जानेंगे कि चित्रकूट कितना महत्वपूर्ण है तो विदेशी पर्यटक भी यहां आएंगे। हालांकि विदेशी पर्यटकों के आने के लिए एयर कनेक्टिविटी की जरूरत होती है जो अब तक प्रयागराज और खजुराहो तक ही थी लेकिन अब चित्रकूट मे बनने वाले हवाई अड्डा से कनेक्टिविटी हो जाएगी तो वैसे भी खजुराहो और वाराणसी के हवाई रास्ते से विदेशी पर्यटक यहां धीरे धीरे आने लगते। अभी पर्यटक गोवा और मनाली जैसी जगहों की ओर आकर्षित होते हैं अब सम्मेलन के जरिए चित्रकूट की ओर आकर्षण स्थापित करने की कोशिश की संभावनाए नजर आ रही हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य है कि चित्रकूट को पर्यटक चाहिए या भक्त / श्रद्धालु चाहिए ? जैसे काशी मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है मथुरा-वृंदावन श्रीकृष्ण के लिए प्रसिद्ध है तो वहां विदेशी मुक्ति और भक्ति के भाव से ही आते हैं तो चित्रकूट मे संतो की शरण मे भक्त आएं या पर्यटक ? यह अंतर चित्रकूट की आत्मा को स्पष्ट कर देता है कि चित्रकूट आने का उद्देश्य क्या है ? चित्रकूट बुलाने का उद्देश्य क्या है ?

विश्व धरोहर घोषित होने के बाद भक्त कामदिगिरि पर्वत की सिर्फ परिक्रमा लगाएंगे या पर्यटक कामदगिरि पर्वत मे चढ़कर शोध करेंगे ? चूंकि भक्त और पर्यटक के बीच आत्मा का भाव और दैहिक भाव का अंतर होता है।

वैसे भी चित्रकूट ऐसा प्रसिद्ध स्थल है जहां हर महीने की अमावस्या को लाखों की तादाद मे श्रद्धा भाव से भक्त आते हैं। अगर कहीं सोमवती अमावस्या हो गई तो प्रशासन भीड़ के सामने पस्त हो जाता है जहां चौबीस घंटे मे औसतन बीस से पच्चीस लाख भक्त आकर परिक्रमा करते हैं।

सम्मेलन से यह बात निकलकर आएगी कि विदेशी विद्धान चित्रकूट की व्याख्या कैसे करते हैं और देशी संत चित्रकूटी संत समाज चित्रकूट के विषय मे कैसा धार्मिक आध्यात्मिक विश्लेषण करते हैं।

कुल मिलाकर कहा जाए तो सुर – असुर के समुद्र मंथन की तरह आगामी 22 नवंबर को रामायण मेला परिसर मे देश – विदेशी विद्वानों का मंथन होने जा रहा है। जिसकी एक एक बात महत्वपूर्ण होगी और चित्रकूट दर्शन एवं भारत का वास्तविक इतिहास पता चलेगा। जिसकी एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि चित्रकूट को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित किए जाने की मांग की जाएगी तो यह भी कौतुहल उत्पन्न करने वाला दिलचस्प मुद्दा है जैसेकि केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली देश की राजधानी होकर चर्चा मे बना रहता है।

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