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By :- Saurabh Dwivedi

अतः मैं पल को विशेष मानता हूँ। वह पल बेहद व्यक्तिगत है। सबका अपना एक पल हो सकता है और मन से , आत्मा से प्रार्थना हो तो ईश्वरीय शक्ति प्रतिदिन प्रतिपल आपके आसपास होगी। मेरे संदर्भ में वह पल विशेष है।

जब भी भीड़ होती है , मेरा मन मंदिर जाने का नहीं करता। असल में एक मन कहता है कि विशेष दिन चल रहे हैं , मंदिर चलो ! फिर मेरा एक मन कहता है बहुत भीड़ होगी। इतनी भीड़ में भगवान से बात कैसे करोगे ? उनकी सेवा कैसे करोगे ? सत्कार कैसे करोगे ?

परमात्मा से कनेक्ट कैसे होगे ? मन और आत्मा से प्रार्थना कैसे कर पाओगे ? ऐसे अनगिनत सवाल भीड़ की परिकल्पना मे मेरे मन में उमड़ने लगते हैं !

असहज हो जाता हूँ एक धक्का लगने की कल्पना से , कि परमात्मा से प्रार्थना करूं और कोई अगल – बगल से धक्का मार दे तो टूट जाएगा मेरा कनेक्शन ? संभवतः कहा जा सकता है कि आंधी आए , तूफान आए तपस्या भंग नहीं होनी चाहिए परंतु वह तपस्या एकांत मे होती है और तपस्वी जब तपस्या के चरम पर पहुंच जाता है तब ऐसी बाधाएं प्रकृति जन्य शास्त्रार्थ पढ़ने – सुनने मे अवश्य आई हैं।

जैसे ध्रुव ने तपस्या की तो इंद्रासन हिलने – डुलने लगा। ऐसे तमाम इंद्रासन आज भी हिलत – डुलते हैं , जब जब कोई युवा सतत कर्म करता है। वह राजनीति का क्षेत्र हो या समाजसेवा का अथवा किसी कार्यालय का , लेकिन बढ़ते हुए कदमों से मजबूत कंधो से स्पष्ट विचारों से तमाम इंद्रासन आज भी हिलते – डुलते हैं।

इसलिये वैसी तपस्या की बात नहीं है। तपस्या की बात इसलिये की कि कोई भ्रम मे ना आ जाए। चूंकि मंदिर और भगवान की बात है। मंदिर में प्रार्थना की बात है। जब बहुत भीड़ होगी तब कैसे सहज रहा जा सकता है ?

मेरे लिए असंभव है कि इतनी भीड़ में परमात्मा से कुछ कह सुन सकूं। कोई प्रार्थना कर सकूं या फिर सहज मन से जलधारा अर्पित कर सकूं। धूपबत्ती समर्पित कर सकूं !

थोड़ी कम भीड़ होगी और अधिक अच्छा होगा कि बहुत कम लोग हों , उससे भी अच्छा होगा कि वक्त दोपहर का हो या शाम का भगवान के सामने मंदिर के अंदर अकेला होऊं ! मेरे लिए यह विशेष दिन होगा , एक विशेष पल होगा। भोर में बहुत सारे लोग सजग रहते हैं मंदिर जाने के लिए तो यह बड़ी असंभव बात है कि एकांत मिल जाए !

वैसे भीड़ मे भी अकेले होने का अनुभव किया जा सकता है पर यह भी एक तपस्या है। यह अनुभव करना कि निपट अकेला हूँ ! कोई आस – पास नहीं है और एक चूं की आवाज भी मन भेद ना सके ! ऐसा संभव होता है पर हमेशा नहीं। इस संभावना के लिए भी कोई कोना खोजकर थोड़ा वक्त देना पड़ता है। उस पर भी कभी तो डिस्टर्ब होने की संभावना बनी रहती है , मन के किसी कोने में यह भय समाया रहता है ।

अभी सावन के दिन चल रहे हैं। मेरा भी भोले बाबा के पास जाने का बहुत मन है। कम से कम मतगंजेन्द्र नाथ तक पहुंच जाऊं। किन्तु इन दिनों की भीड़ से भयभीत हो जाता हूँ। इसलिये मैं ताकता हूँ कभी दोपहर का समय भी कि इस समय तनिक संभावना है , कम लोग हों और मैं मन की आंखो से दर्शन कर लूं। प्रार्थना कर लूं और शीश नवाकर वापस आ जाऊं।

इसलिये मैं सोचता हूँ यदि समाज की सुनूं , शास्त्र की मानूं तो ईश्वर से मेरी मुलाकात कभी नहीं होगी। चूंकि ईश्वर दिन विशेष मे अधिक पूजे जाते हैं , वे दिन विशेष में अधिक कृपालू हो जाते हैं। इसलिये भी लोगों का जत्था रवाना होता है और दिन विशेष पर पूजा पाठ कर कृपा प्राप्त करते हैं।

पर मेरा मन कहता है पल भर की बात है। मन से भी ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं। हम घर बैठे सूक्ष्म देह से मंदिर पहुंच सकते हैं। परमात्मा से संवाद स्थापित कर सकते हैं। दिन कोई भी हो बस मन से महसूस करें पल भर की सात्विक भावना से परमात्मा की भावना का स्नेह मिल सकता है और यह संभव है !

जैसे मनुष्य का मनुष्य से टेलीपैथी द्वारा मानसिक संवाद स्थापित हो जाता है। मन की बात लोगों की जुबान पर आ जाती है तो परमात्मा ब्रह्मांड की शक्ति है और प्रयास करने से यह भी संभव है कि ब्रह्मांड की शक्ति से मानसिक संवाद हो जाए।

अतः मैं पल को विशेष मानता हूँ। वह पल बेहद व्यक्तिगत है। सबका अपना एक पल हो सकता है और मन से , आत्मा से प्रार्थना हो तो ईश्वरीय शक्ति प्रतिदिन प्रतिपल आपके आसपास होगी। मेरे संदर्भ में वह पल विशेष है।

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1 COMMENT

  1. इस विषय में तो यही कहूँगी कि, जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत दिखी तीन तैसी।

    हालाँकि इस बात से भी सहमत हूँ कि भगवान को खुश करने या भगवान से जुड़ने का कोई विशेष दिन नही होता।

    मतलब ये जरूरी नही कि जो पर्व पर जाएँ उन्हें भगवान मिल जायेंगे।

    मन पवित्र होना चाहिये फिर चाहे भीड़ में जाओ या एकांत में।