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By – Saurabh Dwivedi

मैं बहुत सारे लोगों के लिए नहीं लिखता हूँ। बहुत कम लोगों के लिए लिखता हूँ। किसी एक के लिए लिखता हूँ। जिंदगी के लिए लिखता हूँ। उस एक जिंदगी के लिए जिसमें बदलाव की जरूरत है। वो हालात को समझती है। इस दुनिया के रहस्य से वाकिफ होना चाहती है। अतः लिख देता हूँ स्वयं की जिंदगी से संसार के लिए दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालय के मंच से ! हाँ फेसबुक एक विश्वविद्यालय ही है , जहाँ गुरू और शिष्य की भूमिका मे हैं। हर कोई यहाँ कुछ सिखा रहा है और सीख रहे हैं। एक ऐसा विश्विद्यालय जिसकी कोई परिधि नहीं है , अनंत है।

लिखने का अर्थ उस वक्त समझ में आता है। जब कोई ध्यान से पढ़ने वाला आकर बोलता है कि आपके लिखे हुए से जीवन में परिवर्तन हो गया। संकट के समय ताकत मिली। हाँ मैं ऐसी ही जिंदगी के लिए लिखता हूँ। जिसकी जरूरत वक्त बदलने के साथ किसी को भी पड़ सकती है।

जो पढ़ेगा वही कढ़ेगा। कोई एक व्यक्ति भी ध्यान से पढ़ता है तो इसके फायदे अनेक हैं। कोई एक वाक्य जिंदगी का रूपांतरण कर सकता है। कोई शब्द आपके शब्द कोष में संग्रहित हो लिखने के समय लेखनी की ताकत बन सकता है। धार बन सकता है और मिठास भी ! हाँ भाव और शब्द का यही स्वाद है।

इसलिये कोई जरूरी नहीं है कि अनगिनत लोग पढ़ें। निर्जन कुएं के पास कोई एक प्यासा व्यक्ति पहुंचता है। अपनी प्यास बुझाने के लिए। उस वक्त कुएं के अंदर का जल ही जीवन नजर आता है। जो प्यासा नहीं होगा वो कुएं की तरफ निहार कर चला जाएगा। उसे अभी आवश्यकता नहीं है। वो अपने आप में मस्त है पर यदि प्यास लग आई तो दौड़ा – दौड़ा आएगा कुएं की तट पर वहीं राहत की साँस लेगा। चूंकि उम्मीद पूरी होने की आश बंध जाती है।

इसलिये फर्क नहीं पड़ता कितना लंबा लिखा है। सिर्फ लिखा जाना चाहिए और संग्रह होना चाहिए। ताकि उपयोगिता बनी रहे। छोटा सा लिखना भी कला है और छोटा भी लिखना चाहिए। किन्तु समझने की बात है कि लंबी पोस्ट और खुले आसमान में चांद – तारों की भांति बिखरे हुए शब्दों से सही मन्तव्य नहीं लगा पाते फिर छोटे से लिखे हुए से कैसे आशा की जाए ? कि सही भावार्थ लगा सकेंगे ।

अतः कम लोग पढ़ें पर वक्त आने पर हर कोई पढ़ेगा। जब उनका वक्त आएगा। हाँ जीवन का रहस्य वक्त ही है। वक्त ही आभास कराता है। इस रहस्यवाद को समझना होगा। जिसने जीवन के रहस्यवादी अस्तित्व को समझ लिया इस संसार से भलीभांति वाकिफ हो जाएगा।

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