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by – saurabh Dwivedi

बचपन में क्रिकेट के मैदान में एक लाइन गुनगुनाया करते थे। “जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू”। जब बिहार में लालू की हार हो गई और नितीश कुमार सीएम पद से “सुशासन बाबू” के नाम से प्रसिद्ध हुए तो ऐसा लगा कि समोसे में आलू तो रहेगा परंतु बिहार में लालू अब नहीं रहेगा। 


राजनीति का ऊंट एक बार फिर करवंट बदलता है। महागठबंधन की सरकार बन जाती है। इस बार भी सीएम नितीश कुमार हैं पर सुशासन बाबू मि. इंडिया की तरह लुप्त हो चुके हैं। 


लालू यादव & परिवार सत्ता पर काबिज है। अख्खा इंडिया जानता है कि ये चारा घोटाला करने वाला नेता है। इनकी राजनीति का जलवा तब बिखरा जब बूढी होती आंखो के सामने ही बेटा और बेटी सबको राजनीति में सेटल कर दिया। एक माता – पिता का सपना पूरा हो गया कि उनके बच्चों का कैरियर बन गया। 


इधर केन्द्र सरकार ने बेनामी संपत्ति का कानून बना दिया। हाई प्रोफाइल मामलों में सबसे पहला प्रयोग तेजस्वी यादव, मीसा भारती और दूसरे राष्ट्रीय दामाद एवं जीजा जी पर पड़ा। भ्रष्टाचार की कलई उसी प्रकार खुल गई जैसे पीतल में गोल्डन पालिश कर सोना बना दिया जाता है। आखिर अंत में वो बता ही देता है कि ये दुनिया “पीत्तल दी” है। 


ये दुनिया पीत्तल दी इसलिये है कि भ्रष्टाचारी परिवार के पक्ष में पीत्तलों का एक कुनबा मोदी और अमित शाह को कोष रहा है। 


जैसे कि 2014 में लालू का जन्म ही नहीं हुआ था या लालू की शक्तियां छिन गई थीं। नरेन्द्र मोदी को लालू से कभी कोई खतरा रहा ही नही है। राजनीतिक पटल पर लालू मोदी के सामने कहीं भी नही टिकते हैं बल्कि फाऊल हो चुके हैं। 


पीत्तल दी दुनिया के लोगों को क्या कहना जो एक महाभ्रष्ट परिवार के साथ महाभारत का ऐलान कर रहे हैं। भूल चुके हैं कि महाभारत में भ्रष्ट अन्यायी ताकतवर हर योद्धा का एक ही अंत हुआ वह मौत थी। 


राष्ट्र निर्माण के इस युद्ध में भी पाण्डव और कौरव के सरीखे दोनो तरफ से सेना वैचारिक युद्ध लड़ रही है। चिंता सिर्फ वो करें जो छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर लालू यादव जैसे भ्रष्ट नेता का पक्ष रखते हैं। 


बिहार ही नही देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे नेता जनता की संजीवनी से पुनर्जीवित हो जाते हैं वरना ऐसे विषैले नेताओं को फन काढने से पहले ही जनता द्वारा कुचल देना चाहिए। 

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