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Saurabh Dwivedi 

कभी कभी मन कितना उदास हो जाता है। शायद ही उसका कोई पैमाना रहता हो। एकाएक हमारे अंदर इतना कुछ घटित होता कि बहुत कुछ मृतप्राय महसूस होने लगता है। 

इस एक वक्त में दिल दिमाग कुछ भी कहा हुआ नहीं करना चाहता। बस अंदर ही अंदर हम उदासी के कालचक्र में घिरते चले जाते हैं। इसके लिए आखिर जिम्मेदार कौन है ? इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? इस दुनिया में खुश कौन है ? खुशियों के लिए पैसा रूपया ही बहुत जरूरी है अथवा प्रेम अपनत्व ही सबसे बड़ी आवश्यकता है ? 

हर उम्र की अपनी एक खुशी होती होगी। जैसे बचपन में गुल्लक खोलने या फोड़ने से खनकते हुए सिक्कों से खुशी मिल जाया करती थी। क्या किसी उम्र में खनकते सिक्कों से खुशी मिलती है ? 

हाँ एक उम्र ऐसी भी आती जहाँ ठहर कर प्रेयसी की याद सताने लगती अथवा प्रेम की तलाश होने लगती है। हमें किसी से प्रेम महसूस होने लगता है और वो प्रेम नसीब में है या नहीं स्वयं को भी पता नहीं होता। कुल लोगों का मुक्कम्मल हो जाता और कुछ लोगों के लिए चंदा मामा दूर के हो जाते हैं कि सुख पूर्वक नींद के लिए कोई लोरी सुनाने वाला नहीं रह जाता कि आओ आओ चंदा मामा मेरे बच्चे को सुला जाओ अर्थात ऐसा कोई नहीं होता जिसके अपनत्व में हम सुखद नींद ले सकें फिर भी हमारी तलाश जारी रहती है अथवा कहीं आकर वो तलाश अटक सी जाती है। 

खुशनसीब होते वे लोग जिनकी जिंदगी में ऐसी सुखद नींद होती वरना बाकी की दुनिया सिर्फ सोने के लिए सोती जा रही है।

ऐसा नहीं है कि दर्द सिर्फ ऐसा ही होता है बल्कि इस दुनिया में यतीम और दिव्यांग का भी दर्द होता है। एक दुनिया इनकी भी होती है। ये लोग भी ऐसे ही जीना सीख लेते हैं। गीता दर्शन कहता है कि हमें दूसरों के दुख दर्द को महसूस करना चाहिए और उनके दुख से दुखी होकर दुख दूर करना चाहिए, स्पष्ट है कि दुख को महसूस कर दुख दूर करने के उपाय बताने चाहिये अथवा यथायोग्य मदद करनी चाहिए। मनुष्य मात्र का कर्तव्य भी यही है। 

हमें प्रेम से जीना चाहिए। इस दुनिया की एक सबसे बड़ी अदृश्य बीमारी अवसाद की है अथवा भविष्य में बनने जा रही है, जिसका कोई किसी से जिक्र नहीं करता, बूढ़ा, बच्चा और युवा व युवती कोई भी हो। बहुत कम लोग इस बात का जिक्र कर पाते हैं। 

हकीकत में इस बीमारी को वैद्य और दवा नहीं ठीक कर पाते हैं, बल्कि दोस्ती, प्रेम का अपनत्व जादू की तरह पल भर में अवसाद को खत्म कर देता है। इसलिये घर परिवार और संसार में प्रेम अपनत्व अवश्य होना चाहिए। जीवन के हर लक्ष्य के साथ अगर कुछ करना है तो वह प्रेम अपनत्व को जिंदा रखने के लिए कुछ करना है और करते रहना चाहिए। जिससे इस दुनिया में हम सब खुश रह सकें। 

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