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स्वास्थ्य रक्षा तथा कृषि उत्पादन के क्षेत्र में पिछले तीन दशकों में औषधीय एवं सगंधीय पौधों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है| जहाँ इन पौधों की खेती कर भारतीय किसानों ने लाखों रुपये प्रति हेक्टर की रिकोर्ड आमदनी अर्जित की है वहीं आयुर्वेदिक, यूनानी, सिद्ध व होम्योपेथी सरीखी प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्दतियों तथा एलोपेथी जैसी आधुनिक विदेशी चिकित्सा पद्दति में इनका इस्तेमाल बढ़ा है| सिंथेटिक अंग्रेजी दवाइयों के कुप्रभावों से त्रस्त दुनिया भर के देशों में जड़ी-बूटियों द्वारा चिकित्सा का प्रचलन पिछले तीन दशकों में सबसे ज्यादा बढ़ा है| यही कारण है कि देश विदेशों में इनकी मांग बढ़ी है और आज समस्त चिकित्सा पद्दतियों में सर्वाधिक प्रयोग इन पौधों का हो रहा है|


मात्र तीन दशक पहले तक ‘खतरा-ए जान’ कह कर तिरिष्कृत होती रहीं इन जड़ी- बूटियों का आज शिखर तक पहुँचने का सफर कोई आसान नहीं रहा| इसमें भारत सरकार और उसके अनेक वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की कड़ी मेहनत और लगन शामिल है| इसके लिए भारत सरकार ने वर्ष २००० में पहले तो नेशनल मेडिशनल प्लांट बोर्ड की स्थापना की, फिर इस क्षेत्र में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिकों एवं वैज्ञानिक संस्थानों को प्रोत्साहित किया और इसी क्रम में २०१५ में इन चिकित्सा पद्दतियों पर आधारित एक स्वतत्र मन्त्रालय और उसके अन्तर्गत फार्माकोपिया फॉर इंडिजिनस मेडिशन का गठन किया| वर्ष २०१५ ही इन पौधों के साथ साथ आधुनिक कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘किसान चेनल’ के नाम से दूरदर्शन का एक स्वतंत्र चेनल प्रारंभ किया जिससे किसानों को इन पर २४ घंटे समस्त प्रकार की जानकारी उपलब्ध होती रहे|
जड़ी- बूटियों को इनकी आधुनिक पहचान दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका यदि किसी की है तो वे हैं इस क्षेत्र में कार्य कर रहे अनेक वैज्ञानिक, जिन्होंने उच्च कोटि के अनुसंधान करके इनके गुणों को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कसा और प्रमाणित गुणों को दुनिया के सामने रखा जिसके कारण लोगों में इनके प्रति विश्वास पैदा हुआ और इनका उपयोग और महत्ता बढ़ी |

दान ईश्वरीय इच्छा से देते हैं

इनकी बढ़ती मांग को पूरा करने तथा उच्च गुणवत्ता वाली जड़ी- बूटियों के उत्पादन के लिए उन्नत किस्मों का विकास किया तथा कम मात्रा में अधिक असरकारी प्रभाव उत्पन्न करने के लिए प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी तथा नए नए उत्पाद विकसित किये | इस क्षेत्र में कार्य कर रहे ऐसे ही एक प्रख्यात वैज्ञानिक का परिचय आज हम अपनी इस कड़ी में कर रहे हैं और इनका नाम है डॉ चित्रांगद सिंह राघव |

औषधीय एवं सगंधीय पौधों की खेती, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन, गुणवत्ता मूल्यांकन, उत्पाद निर्माण आदि के क्षेत्र में डॉ. चित्रांगद सिंह राघव कोई नया नाम नहीं है| वे पिछले ३२ वर्षों से भारत सरकार में अनुसंधान और विकास कार्य में लगे हैं | वर्ष १९८८ में रसायन शास्त्र में पीएच. डी. तत्पश्चात एम. बी ए करने के बाद डॉ राघव, लघु उद्योग मन्त्रालय, कृषि मन्त्रालय तथा इसके अधीन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व उसके संस्थानों में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं तथा वर्तमान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विज्ञान केन्द्र उत्तरकाशी के प्रधान वैज्ञानिक व अध्यक्ष पर पर कार्यरत हैं| इससे पूर्व वे वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा उससे पूर्व वर्ष २००५ से २००८ तक भारत सरकार के लघु उद्योग मन्त्रालय के राष्ट्रीय संस्थान ‘ सुरस एवं सुगंध विकास केन्द्र (एफ एफ डी सी ) कन्नौज के प्रधान निदेशक पद पर भी रह चुके हैं|
पिछले तीन दशकों में भारत में इस क्षेत्र में जो भी विकास हुए हैं सभी में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है| वर्ष २००० में जब स्वास्थ्य मन्त्रालय द्वारा नेशनल मेडिशनल प्लांट बोर्ड की स्थापना की जा रही थी तो मन्त्रालय के निमंत्रण पर डॉ राघव इसकी कार्य योजना के लिए होने वाली बैठकों में एक्सपर्ट के रूप में भागीदार रहे और इस प्रकार बोर्ड की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया| आयुष मन्त्रालय द्वारा चलाये गए नेशनल रूरल हेल्थ मिशन में भी एक्सपर्ट के रूप में अपना योगदन दिया| दूरदर्शन द्वारा किसान चेनल की शुरुआत करने के लिए भी भारत सरकार के निमंत्रण पर एक्सपर्ट के रूप में इन्होने अपना योगदान दिया|

संस्थान के मुखिया के रूप में संस्थागत उपलब्धियों की बात करें तो सुरस एवं सुगंध विकास केन्द्र (एफ एफ डी सी ) कन्नौज के प्रधान निदेशक के रूप में अपने वैज्ञानिक ज्ञान और अनुभव का प्रयोग करते हुए इन्होने वर्ष २००५ और २००६ में संस्थान द्वारा पहली बार अनेक परफ्यूमरी तथा कॉस्मेटिक्स फोर्मुले तथा उत्पादों का विकास कर उन्हें उद्योग जगत को हस्तांतरित किया तथा उससे सालाना १ करोड से अधिक का रिवेन्यु पैदा कर सरकार को दिया, जिससे टेक्नोलॉजी विकसित करने और मुनाफा कमाने के १५ वर्ष पुराने इस संस्थान के समस्त रिकोर्ड्स टूट गए | इसी प्रकार पूसा, दिल्ली स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेस में अपने कार्यकाल के दौरान इन्होने अनुसंधान टीम के प्रमुख मेम्बर के रूप में संस्थान को पहला पेटेंट दिलाया| इस रिसर्च के द्वारा इन्होने ल्युकोडर्मा में प्रयोग की जाने वाली अंग्रेजी दवाई के साल्ट सोरेलिन को बाबची नामक पौधे से निकालने की तकनीकी विकसित करने की उपलब्धि प्राप्त की | इस दौरान इन्होने अनेक औषधीय पौधों पर महत्वपूर्ण अनुसंधान किए तथा उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पत्रिकाओं में प्रकाशित किया तथा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक कान्फ्रेन्सों, कार्यशालाओं आदि में प्रस्तुत किया | इस दौरान वर्ष २००३ में इनकी पुस्तक “औषधीय फसलों” के लिए इन्हें भारत सरकार के बायो टेक्नोलॉजी विभाग से जगदीश चन्द्र बोस अवार्ड से भी सम्मानित किया गया|

इनकी यह पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई की वर्ष २००३ में छापी गईं १००० प्रतियाँ चंद महीनों में बिक गईं और एडवांस में ही अतिरिक्त १००० पुस्तकों का पैसा अधिकृत विक्रेता के पास पहुँच गया जिसके कारण वर्ष २००४ में पुन: इनको इस पुस्तक का नया संस्करण २००४ में फिर से निकलना पड़ा | एक वैज्ञानिक, प्रोफेसर और लेखक के रूप में डॉ राघव के खाते में राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्तर की अनेक उपलब्धियां हैं जिनका पूर्ण विवरण इस लेख में करना संभव नहीं हैं परन्तु संक्षिप्त में यहाँ दिया जा रहा है| इनके अनुसंधान के फलस्वरूप इनके नाम चार पटेंट हैं जिनमें इन्होने ल्युकोडर्मा की दवाई का पौधे से निष्कासन तथा अन्य औषधीय पौधों से सरलता और प्रभावी तरीके से कम वक्त में दवाई का साल्ट निकलने के लिए एप्रेटस का डिजाइन पेटेंट शामिल हैं |

एवार्डों की बात करें तो जगदीश चन्द्र बोस अवार्ड के अलावा हाल के वर्षों में ही भारत सरकार के विभिन्न संस्थानों, विश्वविद्यालयों व वैज्ञानिक संगठनों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्सों के अवसरों पर अनेक अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है| इस क्रम में वर्ष २०१९ में एक प्रभावशाली वैज्ञानिक वक्ता के रूप में बैस्ट ओरल प्रजेंटेशन अवार्ड , अपनी रिसर्च उपलब्धियों को प्रभावशाली तरीके से जनमानस तक पहुचाने के लिए वर्ष २०१८ में बैस्ट एक्सटेंशन प्रोफेशनल अवार्ड, वर्ष २०१८ में ही बैस्ट पेपर प्रजेंटेशन अवार्ड, अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में बैस्ट पोस्टर प्रजेंटेशन अवार्ड, अपनी उत्क्रष्ट व अभूतपूर्व वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए वर्ष २०१७ में साइंटिस्ट ऑफ दी एयर अवार्ड, आदि से सम्मानित किया जा चुका है |

डॉ राघव अनेक वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं व सोसाटियों के आजीवन सदस्य हैं तथा अनेक अन्य पत्रिकाओं के सम्पादकीय बोर्ड के सदस्य रह चुके हैं | वे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्सों, कार्यशालाओं , सेमिनारों आदि के बोर्डों में सलाहकार एवं चेयरमेन की भूमिका निभा चुके हैं तथा अनेकों अन्य विश्वविद्यालयों , कालिजों तथा टेक्नीकल संस्थाओं द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों में चीफ गेस्ट के रूप में सम्मानित हो चुके हैं| भारत सरकार के साइंस एंड टेक्नोलोजी मन्त्रालय के अधीन विभागों व संस्थाओं, जैसे डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलोजी (डी एस टी), काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सी. एस. आई. आर.), आदि के लिए शोध पत्रिकाओं के अर्जन व चयन के लिए गठित नेशनल नॉलिज रिसोर्स कन्सोर्टियम (एन. के. आर. सी.) में वर्ष २०१६से २०१९ तक विशिष्ट आमंत्रित एक्सपर्ट भी रह चुके हैं | अनेक विश्वविद्यालयों के बी. एससी. एम्. एससी तथा पीएच. डी. कोर्सों में परीक्षा एवं थीसिस एक्जामिनर व गाइड के रूप में भी अनेक वर्षों से उनका योगदान जारी है|

राष्ट्रीय महत्त्व की ५ शोध परियोजनाओं के प्रधान शोधकर्ता के रूप में तथा अनेक अन्य परियोजनाओं में सदस्य के रूप में उनका योगदान है| इन्हीं पिछले ५-६ बर्षों में उन्होंने अपने अधीन कार्यरत अनेक वैज्ञानिक /एक्सपर्ट द्वारा किये गए ७५ से अधिक रिसर्च ट्रायल्स को सुपरवाईज तथा मोनिटर किया है|
कॉस्मेटिक्स, परफ्यूमरी तथा हर्बल उत्पादों, जैसे एंटी एजिंग व एंटी रिंकल क्रीम्स, विभिन्न प्रकार की ब्यूटी तथा फेयरनेस क्रीम एवं लोशन, एलो वेरा जेल एवं क्रीम, विभिन्न प्रकार के नोर्मल तथा मेडीकेटीड हेर्बल शेम्पू, हेयर जैल, फ्लोर क्लीनर, हेयर आयल, बॉडी मसाज आयल, लिक्विड सोप, एरोमथिरेपी ऑइल्स तथा ब्लेंड्स, इसेंसिअल्स ऑइल्स, परफ्यूम्स आदि तथा मोटापा, ब्लड प्रेशर, अस्थमा, आर्थराईटिस, कमजोरी, शुगर, माइग्रेन, याददाश्त की कमजोरी, सिरदर्द, स्किन रोगों विकार आदि अनेक रोगों में प्रयोग किये जाने वाले लाभदायक सभी प्रकार के औषधीय एवं सगंधीय पौधों से सुगन्धित तेल तथा औषधीय गुणयुक्त तत्व (मेडीकेटीड ) तथा कंसंट्रेट एक्सट्रेक्ट निकालने में डॉ राघव को महारत हासिल है|
लेखक के रूप में डॉ राघव सेकडों की संख्या में औषधीय एवं सगंधीय पौधों के विभिन्न आयामों पर वैज्ञानिक व तकनीकी लेख लिख चुके हैं |

उनके कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशनों में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में ५० से अधिक उच्च कोटि के शोध पत्र, १० पुस्तकें, १२ बुक चेप्टर्स, ६ बुकलेट्स, भारत सरकार की संस्थाओं जैसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली, प्रसार निदेशालय, कृषि मन्त्रालय, साइंस एंड टेक्नोलोजी मन्त्रालय के संस्थान सी. एस. आई. आर. – नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड रिसर्च (निस्केयर) तथा स्वतंत्र रूप से प्रकाशित राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में ५० से अधिक तकनीकी तथा जन सामान्य के लिए लेख, १०० से अधिक तकनीकी बुलेटिन, तकनीकी फोल्डर, रिपोर्ट्स, पीरियोडिकल्स, डिजिटल एलबम्स, ट्रेनिंग मैनुअल्स, न्यूज़ पेपर आर्टिकल्स, आदि शामिल हैं |
संस्थान स्तर पर डॉ राघव अब तक सेकडों ट्रेनिंग के द्वारा हजारों लोगों को विभिन्न विषयों पर जागरूक तथा प्रशिक्षित करा चुके हैं तथा खुद भी अपने ज्ञान तथा अनुभव को आधुनिकतम बनाये रखने कि लिए देश विदेशों में अनेक ट्रेनिंग ले चुके हैं

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