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By – Saurabh Dwivedi

जिंदगी में सीने के अंदर का सुकून सबसे बड़ा सुख है। ये सुकून घर – परिवार में मिल सकता है और आवश्यक भी नहीं कि एक छत के नीचे रहते हुए सभी मन से महसूस करते हों और हम सुकून महसूस कर सकें।

कभी-कभी एक छत के नीचे रक्त के रिश्तों में लोग साधन मात्र बनकर रह जाते हैं। साधन की उपयोगिता होती है पर हृदय का सुकून साधन से महसूस नहीं होता।

बल्कि जिंदगी में कभी ऐसा भी होता है कि जिससे हम कभी मिले ना हों , मिल पाने की संभावना ना हो और सोशल साइट्स के जरिए सिर्फ तस्वीर देख सके हों। बातों ही बातों में अपनत्व का महासागर बह पड़ा हो। रिश्ते में शांति और सुकून की सफेद चादर का बिछ जाना महसूस हो , जैसे कभी ना खत्म होने वाली बर्फ की पहाड़ी। जो रिस रिस कर जल बन कर प्यास बुझा सकती है पर बर्फ का अस्तित्व बना रहेगा। एक ऐसा ही रिश्ता जिंदगी में सुकून बनकर मिल जाता है।

प्रेम में दोस्ती और दोस्ती में प्रेम एक ऐसा रहस्य है , जो रिश्ते को पूर्णता प्रदान करता है। आत्मीय प्रेम में दोस्ती का भाव सहजता प्रदान करता है और दोस्ती की शुरूआत से प्रेम की मंजिल भी तय हो जाती है।

दोस्ती सिर्फ लड़के और लड़के के मध्य ही नहीं बल्कि लड़की और लड़के के मध्य भी होती है। समाज की तमाम वर्जनाएं स्वयं ही टूट रही हैं। किसी विद्वान ने कहा था कि भारत में एक पूरूष और महिला कभी दोस्त नहीं हो सकते। पहली बार में बात सच प्रतीत होती है , फिर भी यह अधूरी बात है। दोस्ती पति-पत्नी के मध्य हो और आजकल होने लगी है तो वास्तव में एक पुरूष और महिला दोस्त ही हुए।

एक पुरूष और महिला प्रेमी – प्रेयसी होते हुए भी दोस्ती का रिश्ता जीते हैं , तो सचमुच यही आत्मीय प्रेम की सफलता है। जिंदगी के अनेक रंग होते हैं। एक रंग ऐसा भी है कि विवाह के बाद भी किसी पुरूष और औरत को किसी से प्रेम महसूस हो जाता है। तमाम सामाजिक मान – मर्यादा और पवित्रता – अपवित्रता के साथ पाप और पुण्य की सोच हावी होने के बावजूद भी अक्सर ऐसे रिश्ते बन जाते हैं।

असल में जिंदगी सिर्फ एक जन्म की नहीं होती। अगर अपनी जिंदगी को महसूस करें और पुनर्जन्म तथा पूर्व जन्म के सिद्धांत समझते हैं तो वही जीवन का प्रारब्ध होता है। इसलिये खून और सामाजिक बंधन के इतर भी जीवन के किसी भी पड़ाव में ऐसा रिश्ता बन जाता है , जिसकी कल्पना हमने नहीं की होती है।

स्वयं मैंने दोस्ती और प्रेम के रिश्ते को जिंदगी से महसूस किया। चूंकि हमारे देश में जीवन पर बहुत कम शोध होता है। भारत से ज्यादा जिंदगी पर शोध विदेशी धरती पर हुआ है। कहने के लिए हम आजाद हैं , पर घर के अंदर ही आजादी दम तोड़ देती है। फिर जीवन जीने के लिए तमाम सामाजिक आडंबर और रूढ़िवादी सोच से सामना। इसलिये भारत में कहाँ कोई अपना जीवन जी रहा है ? हम मोक्ष की बात करते हैं और जीवन के अस्तित्व को समझते नहीं , फिर मोक्ष कैसे मिलेगा ? सवाल उपजता है कि हम मानसिक गुलाम हैं ?

हाँ अगस्त के महीने के प्रथम रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। इस दिन हम दोस्ती पर चर्चा कर लेते हैं। गिने-चुने पौराणिक आधार पर दोस्ती का उदाहरण दे लेते हैं। उम्मीद करते हैं कि कोई ऐसा ही दोस्त मिल जाए और दोस्ती निभाए पर दोस्ती निभाना क्या ? दोस्ती जी जाती है।

स्वयं से सोचना होगा कि बचपन के कितने दोस्त हमारे साथ आज भी हैं ! जिंदगी में किसी से दोस्ती महसूस की तो उस दोस्ती को आज भी जी रहे हैं या नहीं ? वो महिला हो या पुरूष अथवा महिला की पुरूष से दोस्ती ही क्यों ना हो !

सुकून एक बार मिल जाए और सामाजिक वजह से या नियति के जोर से हम अलग – थलख भी हो गए हों तो क्या हम उस दोस्ती की तड़प को भी अंगिकार कर सकते हैं ? हाँ जहाँ सुकून है , वहीं तड़प है।

तेरा सुकून
बड़ा प्यारा है तो
तेरी तड़प भी
स्वीकार है
कभी आंसुओं को
पिया तुमने
आज इन आंसुओं को
स्वयं पी रहा हूँ
हाँ प्रेममय दोस्ती को
जिए जा रहा हूँ।

बेशक दोस्ती के उस फलसफे को जीना ही है। जिसे शायद समाज के सामने वक्त से पहले हम नहीं भी रख पाते हैं। एक वक्त आता भी है , जब हम सामाजिक पटल पर अपनी जिंदगी के हर पहलू को स्वीकार कर लेते हैं। किन्तु सोचना होगा कि कितने ऐसे लोग हैं , जो अपनी आत्मकथा लिख सके ? जिन्होंने स्वयं से समाज को मार्गदर्शन दिया हो। जिन्होंने प्रेम पर चर्चा की हो और जिंदगी के वजूद को महसूस कराया हो वरना सामाजिक परिपाटी पर मानसिक गुलामी का जीवन जी कर मृत्यु की शैया में लेटकर अलविदा कह गए हैं।

ये दोस्ती और प्रेम का ही अहसास है कि शब्दों और भावनाओं की कोई सीमा नहीं है। व्यक्त करके भी कुछ अव्यक्त सा रह जाता है। हाँ मेरी कलाइयों में हृदय से अभिसिंचित दोस्ती का बैंड है। मैं कह रहा हूँ ” हैप्पी फ्रेंडशिप डे” !
लव यू दोस्त !

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