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By – saurabh Dwivedi 

आपकी टिप्पणी आपका डीएनए बता देती है कि आपके अंदर राष्ट्रीयता, सामाजिकता है भी या नहीं ! रूस में टैंक ओलंपिक चल रहा है। जिसमें विश्व के 19 देशों की सेनाओं ने भाग लिया है। वर्तमान परिस्थिति में चीन और भारत की डोकलाम विवाद पर तनातनी का पारा चढ़ा हुआ है। 

कल एक शुभ खबर जी न्यूज के डीएनए से मिली थी कि भारत का T-90 भीष्म टैंक चीन के टैंक को पछाड़कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर चुका है। जबकि चीन के टैंक का रेस के दौरान पहिया निकल गया। 

इस दौरान चीनी सैनिकों का चेहरा देखते बन रहा था।जिसमें उनकी अकड़ गायब थी। बस टैंक की ताकत को देखते हुए आसमान की तरफ निहार रहे थे। 

बेशक हम कल युद्ध नहीं जीते किन्तु चीनी सैनिकों पर जो मानसिक दबाव दिख रहा था। उसे देखकर कोई भी भारतीय खुश होगा। लेकिन अफसोस जनक बात यह थी कि राजनीतिक विरोध तथा प्रतिस्पर्धा के चलते हमारे ही देश की शिक्षित कहलाने वाली पीढ़ी के नौजवान फेसबुक पर हास्यास्पद टिप्पणी करते हैं कि हाँ इससे डोकलाम भारत का हो जायेगा और चीन हार जायेगा। 

कोई आकर यह बताने लगता है कि चीन के पास भी रसियन टैंक हैं। संभव है कि कम होगें परंतु हैं। इसलिये इसमे खुश होने की बात नही है। इनकी टिप्पणी बड़ी हास्यास्पद प्रतीत होती है कि अपने ही देश के खिलाफ ऐसी टिप्पणी करके अपने ही चरित्र का हनन करते हुए स्वयं को सिद्ध करते हैं। 

ऐसे लोगों को बता देना चाहता हूं और फेसबुक के साथियों से अपील करूंगा कि इस पोस्ट के माध्यम से बता दीजिए कि टैंक रसियन हो भारतीय अथवा चीनी वो क्षमतावान होता है। टैंक एक मशीन है, जिसका संचालन सैनिक के द्वारा किया जाता है। फ्यूल, बम गोले कुछ भी हो लेकिन हौसला एक सैनिक का होता है। कोई भी रेस अकेला टैंक नही जीतता बल्कि उसे ड्राइव करने वाला और उसका पूर्ण संचालन करने वाले सैनिक जीतते हैं। 

कल भारतीय सैनिको की रूस टैंक ओलंपिक में शौर्य गाथा दिखी है। इस रेस को एक टैंक से ज्यादा सैनिकों के हौसले और कुशल संचालन ने जीता है, तो वहीं चीनी भाई लोगों को मुह की खानी पड़ी है और घबराए हुए चीनी सैनिकों को देखकर मुझे आनंद की अनुभूति हुई परंतु भारत में बैठे इन फेसबुकिया जयचंदो को आखिर कैसे समझाया जाए कि अब नेहरू काल नही है बल्कि यह मोदी युग है, जहाँ की सेना इतिहास रचना जानती है।

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