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By – saurabh Dwivedi

मैं जानता हूं कि जातिगत आरक्षण पर प्रश्न खड़ा करना कुछ जातिवादी आरक्षण के समर्थकों से बेगाने हो जाना होता है। जिसकी अब महज कम ही आवश्यकता महसूस होती है। इसका कारण इतना सा है कि प्रतिभाओं की साइलेंट डेथ हो रही है। जिस पर कभी किसी सरकार को चिंता शायद ही हुई हो। 
पिछले दिनों मेरे ही समक्ष एक प्रार्थना पत्र पिछड़ा वर्ग के एक विभागीय अधिकारी से लिखवाया जा रहा था। वो अच्छे पद पर पदासीन थे लेकिन “अधीक्षक” लिखने में असमर्थ थे। जब ऐसे लोग आरक्षण का लाभ लेकर अधिकारी बन जाते हैं और हिन्दी के ही महारथी नहीं हैं फिर आरक्षण से मायूस होती प्रतिभाओं का खात्मा आखिर क्यों किया जा रहा है ? 
बहुत से लोग कहते हैं कि सरकार आरक्षण के खिलाफ कुछ नहीं कर रही है। एक सरकार आरक्षण बंद कर सकती है। किन्तु आरक्षण खत्म करने से पहले ही जातिवादी राजनीति करने वाले लोग गृह युद्ध करा देगें। 
परीक्षाओं में माइनस मार्किंग इसका अच्छा और सबल तोड़ है। हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पुलिस भर्ती परीक्षा में माइनस मार्किंग की व्यवस्था लागू की है। ये आरक्षण हेतु हाई क्वालिटी का एंटीबायोटिक साबित होगा। बशर्ते सामान्य वर्ग की मायूष प्रतिभाएं बेस्ट एजुकेशन क्वालिटी पर ध्यान आकृष्ट करें। 
इसका प्रतिफल यही होगा कि जो ज्यादा से ज्यादा सही जवाब देगा। उसकी ही मैरिट हाई होगी और आरक्षण का बेजा लाभ कम मात्रा में प्राप्त होगा। इस व्यवस्था को फ्रंट का फाटक कह सकते हैं, जो प्रदेश में प्रतिभा को सम्मान दिलायेगा।

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