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बचपन राष्ट्र और समाज का सूर्योदय है। जैसे भोर के सूर्य उगते हैं और उन्हें हम प्रणाम करते हैं ताकि सूर्यदेव की कृपा बनी रहे यही सनातन संस्कृति है और बचपन ऐसा ही लालिमा युक्त सूर्य के समान है जो हमारा भविष्य है जिससे एक राष्ट्र का तेज चहुंओर विश्व मे फैलता है।

अंतरराष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस मनाने के निर्णय के पीछे का उद्देश्य यही था कि बच्चों की जीवन रक्षा की जाए। अस्पताल मे जच्चा बच्चा की रक्षा हो सके इसके लिए हर तरह के प्रयास भारत मे किए गए हैं।

जब आधुनिक सुविधाएं कम थीं तो जन्म से पहले या जन्म के फौरन बाद मासूम मृत्यु का शिकार हो जाते थे। लेकिन अब घर मे नही अस्पताल मे बच्चों का जन्म हो रहा है और कोशिश मे सफलता मिली कि स्वस्थ बच्चों का जन्म हो रहा है।

पहली कोशिश मे बड़ी सफलता हासिल होने के बाद बच्चों को संस्कार देने की शुरूआत होती है। जिसमे एक माँ की भूमिका बड़ी होती है तो मैं भी एक माँ हूँ और मैं खुद कहना चाहती हूँ कि बेटा हो या बेटी दोनो को बराबर सम्मान और संस्कार देना न्याय समझा।

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मुझे मेरी मां ने हमेशा प्यार दिया और सम्मान व संस्कार दिए तो वही पीढ़ी आगे बढ़ रही है अब मैं एक मां हूँ तो मेरी बेटियों का जीवन उतना ही उत्तम है जितना मेरे बेटे का , यह सब कहने के पीछे का मतलब है कि माँ शहर की हो या गांव की वो एक समान है और बच्चों मे जीवन के प्रति अच्छी सोच को जन्म देने की प्रथम गोद मां की महत्वपूर्ण है।

पिता हमेशा अपने बच्चों को आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा देते आए हैं तो स्पष्ट है कि समाज की एक संरचना ऐसी तैयार की गई जिसमे मां – पिता अपने कर्तव्य का निर्वहन करेंगे तो भविष्य मे पीढ़ियां उन्हीं कर्तव्यों का बोध करेंगी।

और हमारा उदीयमान सूर्य का तेज वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली होगा इसके लिए भारत देश के अभिभावक सजग होकर परिवार का निर्माण करेंगे तो समाज और राष्ट्र सशक्त व समृद्घ होगा , एक ऐसी ही परिकल्पना को साकार करने के लिए वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस की शुरुआत हुई। यह दिन सबसे महत्वपूर्ण है जैसे वृक्ष की जड़ महत्वपूर्ण है वैसे ही अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस महत्वपूर्ण है , चूंकि बचपन परिवार और समाज की वह जड़ है जिसमे विश्व रूपी वृक्ष खड़ा है।

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