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By – Saurabh Dwivedi

एक पत्र पाठक के नाम….

प्रिय आशुतोष भैया
सादर प्रणाम

अंतस की आवाज को मैंने जब भी लिखा सचमुच किसी सोने के हार में चुन चुन कर मोती रखने जैसा था। एक एक शब्द हृदय के धक – धक से रचता रहा। अहसास लिखता रहा और वह कविता बनती गई , फिर भी सोचा नहीं था कि जो कुछ भी कवितामय लिख रहा हूँ , किताब बन जाएगी।

अनायास ही समय आया और चिर व्याकुल हो संग्रह किया , फिर सम्पूर्ण प्रक्रिया को पार करते हुए किताब बन गई। यहीं से किताब वाले लेखक का जन्म हुआ। मेरा समर्पण ही जीवन बन गया। मेरे लिए जो अनमोल – अद्भुत कृति है , उसे आप जैसे व्यक्तित्व ने ना सिर्फ पढ़ा बल्कि सराहा भी।

प्रेम वैसे भी एक ऐसा विषय है। जिसके बारे में भारत के अंदर खुलेआम चर्चा – परिचर्चा करना अक्सर गुनाह हो जाता है। लोग ये ही कह देते हैं कि अरे देखो इस प्रेमी को , पागल कहीं का। सचमुच पागल नहीं होता तो अहसास रचना कैसे बन जाते ?

प्रेम में पागल होने का अर्थ ही है। सहज और सरल सी स्वीकार्यता एवं दुनिया के समक्ष अभय हो जाना। मेरे अंदर ही ऐसे अभय का जन्म हुआ कि इस किताब को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने में तनिक भी हिचक नहीं महसूस हुई।

जो भी है , जैसी भी है , बस पुष्प की भांति समर्पित कर दिया। हाँ यह एक सफर है , जो नितांत व्यक्तिगत अद्भुत सी कल्पना से चला तो जीवन , समय और समाज पर भी अनेक रचनाएं रच गईं।

मैंने जो कुछ भी किया , वह सहज है। किन्तु इसके बाद सफर शुरू होता है , वह लेखकीय दुनिया का सफर है। चूंकि मैंने स्वयं की जिंदगी और लेखन का किसी से कोई प्रतिस्पर्धा महसूस नहीं किया फिर भी विश्व एक बाजार है और किताब प्रकाशित हुई तो उसे पाठक लेते हैं या नहीं ? पाठक अर्थात पढ़ने वाला व्यक्ति। जिसे हमारा लेखन पसंद हो और वह भी जो सिर्फ पढ़ता हो तथा लिखता ना हो , ऐसे भी पाठक होते हैं।

फेसबुक एक ऐसी दुनिया है , जहाँ से आप जैसा बड़ा भाई मिला और लेखन को सराहने व प्रोत्साहन देने में आपकी बड़ी भूमिका रही। एक धन्यवाद जुकरबर्ग को भी बनता है , जिन्होंने ऐसे प्लेटफार्म दिया कि एक तिनके का सहारा भी यहाँ मिल जाता है।

यह पत्र लिखने का अर्थ सिर्फ इतना सा है कि मैं कृतज्ञता जता सकूं और समय – समय पर उन सभी को कृतज्ञता जताता रहूं ,जिन्होंने मुझ जैसे इंसान को लेखक कहा , अपना भाई कहा और एक रिश्ता माना। कृतज्ञता इसलिये भी कि आप द्वारा मिले प्रोत्साहन से ही मुझे ऊर्जा मिलती है और विश्वास है कि जीवन भर कुछ ना कुछ लिख कर राष्ट्र और समाज के प्रति कर्तव्य निभा सकूंगा।

लेखक

अहसास से भरा हुआ
सौरभ द्विवेदी
( अंतस की आवाज )

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