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By – Saurabh Dwivedi

नारायण नारायण ! होली का पर्व हो और स्थान बांके बिहारी का दर हो , इससे खूबसूरत – सुखमय दृश्य शायद ही कहीं और मिले। सचमुच बांके बिहारी की शरण में आकर रोएं खड़े हो जाते हैं। सुख की सर्वोत्तम उपाधि इस दर के सुख को दी जा सकती है। जहाँ आम आदमी पर बरसते हैं पुष्प। पुष्पों की होली से चित्रकूट के बांके बिहारी मंदिर का मनोहारी दृश्य महसूस करने योग्य है।

सामान्यतः भक्तों की आवाजाही लगी रहती है पर होली की शाम भक्ति के रस से रसमय हो जाती है। यह व्यक्तिगत अनुभव है कि बिहारी जी के भजनों की धुन में अंतस में भक्ति रस प्रवाहित होने लगता है। परिसर के अंदर मौजूद क्या पुरूष , क्या औरत सभी नाचने लगते हैं।

पैर उनके भी थिरकने लगते हैं , जो वर्षों से नाचना भूल चुके हों। चूंकि जब मन बंध जाता है और तमाम प्रकार बाधाएं मर्यादा का रूप धारण कर विराजमान हो जाती हैं तब मनुष्य जीता तो है लेकिन खुलकर मोर की तरह नाच नहीं सकता। किन्तु उन पलों में एक गहरी साँस से महसूस होता है कि रक्त रक्त के कण – कण में सुख प्रवाहित हो रहा है और मन खुलने लगता है। फलस्वरूप भक्तों की भक्ति का रंग चढ़ जाता है।

होली की शाम को बांके बिहारी मंदिर चित्रकूट में कुछ ऐसा ही जीवंत दृश्य था। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मनुष्य के मन के विकार नष्ट होने लगते हैं और सात्विक विचार बढ़ने लगते हैं। सात्विक विचार के गुणतत्व बढ़ने से ही लोग भक्ति भाव में डूब जाते हैं। बिहारी जी के पुजारी और गीता का कथन भी है कि अंतर्मन में सात्विक विचार बढ़ने के समय साधना करने से परमात्मा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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