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सपा प्रत्याशी के आने के बाद भाजपाई अपना जातीय गणित बिठाने लगे हैं। जमीनी स्तर पर रोचक चुनावी जंग के लिए भाजपा भी इस बार जल्द ही प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती है क्योंकि केन्द्र मे तीसरी बार सरकार बनानी है तो सांसद जीतने भी आवश्यक हैं और इस बार के चुनाव मे जन संपर्क का सबसे बड़ा महत्व है।

राजनीतिक दल जातीय दांव पेच से चुनावी दंगल की कुश्ती जीतने की पूरी कोशिश करते हैं। राष्ट्र स्तर पर धर्म की बात की जाती है किन्तु ग्रामीण स्तर पर जातीय समीकरण को ध्यान मे रखते हुए प्रत्याशी उतारे जाते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कुल 16 उम्मीदवार मे बांदा लोकसभा से शिवशंकर सिंह पटेल को टिकट की घोषणा कर जातीय समीकरण के मामले मे बीजेपी को चुनौती दी है।

सपा का कोर वोटर यादव माना जाता है तो भाजपा का कोर वोटर ब्राह्मण माना जाता है जिसमे वैश्य समाज बहुसंख्यक रूप से भाजपा को वोट करता रहा है। समय और समीकरण के अनुसार कभी ब्राह्मणों ने भी एकमुश्त वोट बसपा को दिए तो इस प्रकार वैश्य समाज भी वैश्य प्रत्याशी को देखते हुए कभी सपा को वोट कर चुका है।

सपा प्रत्याशी शिवशंकर सिंह पर आरोप वही हैं जो मुलायम सिंह यादव के परिवार पर लगते रहे हैं। कहते हैं जब शिवशंकर सिंह सत्ता की शक्ति रखते थे तो उन्होंने पत्नी कृष्णा पटेल को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया और भाई को ब्लाक प्रमुख बनाकर परिवारवाद का बड़ा नमूना दिखाया था।

हां बांदा मे एक मुद्दा विगत कुछ वर्षों से हावी है कि हमे बांदा का सांसद चाहिए क्योंकि बहुतायत चित्रकूट जनपद से सांसद बनते रहे हैं तो वहां की जनता को जन संपर्क मे समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस लिहाज से सपा प्रत्याशी को कुछ लाभ मिलने की आशंका जताई जा रही है लेकिन बहुत कुछ निर्भर है भाजपा के प्रत्याशी पर कि कौन आएगा मैदान मे……

● सिटिंग सांसद….

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स विधानसभा चुनाव को लेकर कहती हैं कि चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय को चुनाव जितवाने मे असफल रहे तो मानिकपुर विधानसभा चुनाव मामूली अंतर से जीता गया किन्तु विधानसभा चुनाव स्थानीय स्तर व्यक्ति के व्यक्तित्व और लोक व्यवहार पर भी निर्भर हो जाता है और अब के मतदाता के मिजाज को भी समझना होगा कि वह क्यों , कैसे और किसको वोट करता है ? मतदाता स्वतंत्र मानसिकता वाला हो चुका है और तुनक मिजाज भी है अगर उससे ठीक से नमस्कार भी नही हुआ तो भले जय श्रीराम बोलेगा किन्तु कमल की जगह साइकिल का बटन दबाने मे देर नही करता तो चुनाव हारने – जीतने की जिम्मेदारी व्यक्तिगत प्रत्याशी के लोक व्यवहार पर भी निर्भर करता है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि विधानसभा चुनाव की हार – जीत से टिकट वितरण संभव है क्योंकि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों और पीएम के फेस को लेकर होता है।

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इसलिए बड़ी संभावना है कि ब्राह्मण और लाभार्थी व परंपरागत वोट विनिंग फैक्टर साबित होगा इसलिए भाजपा किन्तु परंतु ना करते हुए एक बार फिर सिटिंग सांसद आर के सिंह पटेल को टिकथमा सकती है।

● विकल्प : 2019 मे भैरो प्रसाद मिश्र का टिकट कट गया तो उन्होंने धरना देकर सवाल किया कि कारण बताइए मेरा टिकट क्यों काटा गया ? उन्हें अपने कार्यों पर विश्वास था और यह भी विश्वास था कि पार्टी उन्हें ही एक बार फिर सांसद बनाएगी। अब 2024 मे एक बार फिर टिकट मांग रहे हैं जिनकी पिछले दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ से हुई मुलाकात चर्चा का विषय बनी हुई है।

सन 2014 से रामदयाल त्रिपाठी लगातार पार्टी फोरम मे अपनी बात रख रहे हैं। टिकट के प्रमुख दावेदार मे से एक हैं। जिन्होंने संघ और संगठन की सेवा समर्पण भाव से अनवरत की है। इसलिए वो अपना दावा पक्का मानकर चल रहे हैं।

मानिकपुर विधानसभा के पूर्व विधायक आनंद शुक्ला अपने जन्मदिन पर समर्थकों से उपहार मांग चुके हैं कि नमो एप के जन मन सर्वे मे मेरा नाम दर्ज कर शीर्ष पर बनाए रखें और पार्टी स्तर पर टिकट मिलने की चर्चा जोर से है। ऐसी ही चर्चा 2022 के विधानसभा चुनाव मे भी थी लेकिन सीट अपना दल के खाते मे चली गई और विधायक बने अविनाश द्विवेदी उर्फ लल्ली भैया।

इस तरह टिकट के दावेदारों मे जगदीश गौतम , चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय भी हैं तो बांदा जनपद से वैश्य समाज से अजीत गुप्ता और ब्राह्मण समाज से पूर्व सांसद रमेश चंद्र द्विवेदी , बालमुकुंद शुक्ला , पुरूषोत्तम पाण्डेय का नाम भी चर्चा मे है और एक नाम सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी का भी चर्चा मे रहता है।

वहीं इस सीट पर शीर्ष नेतृत्व द्वारा किसी को भी उतारने की संभावनाओं मे कुछ बड़े नाम की चर्चा भी रहती है जैसे प्रयागराज के नंद गोपाल गुप्ता नंदी लेकिन नगरपालिका अध्यक्ष नरेन्द्र गुप्ता भी वैश्य समाज से दावेदार बन जाते हैं और बांदा से अजीत गुप्ता भी चर्चा का विषय बने हुए हैं।

रामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ बनाने का मुद्दा लेकर चल रहे अर्चना नितिन उपाध्याय की भी चर्चा हो चुकी है। रामलला प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव पर झांकी निकालने के बाद ये चर्चा और पुख्ता हुई कि अर्चना उपाध्याय की लोकसभा चुनाव को लेकर दावेदारी है। जय बजरंग सेना की राष्ट्रीय प्रभारी ने इस बात की पुष्टि तो नही की लेकिन चर्चा का बाजार गर्म है।

कांग्रेस क्या करेगी ? कम्युनिस्ट पार्टी के अमित यादव एलायंस की मंशा पर सवाल भी उठा चुके हैं और लोकसभा चुनाव मे कम्युनिस्ट पार्टी का उम्मीदवार आएगा इसकी संभावना जता चुके हैं। पिछली बार कांग्रेस से बालकुमार पटेल प्रत्याशी थे जिनको 80 हजार मत प्राप्त हुए थे जो सजातीय माने जा रहे हैं लेकिन अब वो जेल मे हैं और डकैत राधे भी पुनः जेल की सलाखों मे पहुंच चुके हैं। जिससे लोकसभा चुनाव की आम और खास चर्चा खूब तेज हुई है।

सपा प्रत्याशी के आने के बाद भाजपाई अपना जातीय गणित बिठाने लगे हैं। जमीनी स्तर पर रोचक चुनावी जंग के लिए भाजपा भी इस बार जल्द ही प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती है क्योंकि केन्द्र मे तीसरी बार सरकार बनानी है तो सांसद जीतने भी आवश्यक हैं और इस बार के चुनाव मे जन संपर्क का सबसे बड़ा महत्व है।

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